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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • आर्यिका पूर्णमति माताजी संस्मरण

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    Sambhav Jain

    ???
                      *संस्मरण*
                        ???

          *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी?*

    *गुरु ज्ञानी गुरु ध्यानी,गुरु श्री विद्यासागरा।*
    *गुरु साक्षात परमात्मा,तस्मै श्री गुरवे नमः।।*

    *?भूमिका-?गुरु-शिष्य का संबंध अमर है।* जब शिष्य अपने गुरु के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण कर देता है,उसकी हर एक श्वांस में गुरु का वास हो जाता है तब *असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते है। वही अद्भुत समर्पण की गहराई पूज्या आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी में है। अपने गुरु के प्रति माताजी का समर्पण अटूट,अगाध है।* उनके हर एक आत्मप्रदेशों पर गुरु का वास है।गुरु के स्मरण मात्र से ही उनकी सारी बाधाएं दूर हो जाती है।
    *?प्रसंग-?*
            बात दक्षिण भारत विहार के समय  इचलकरंजी की है।   *इचलकरंजी में आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी की अचानक श्वांस रुकने लगी।3 मिनिट तक उनकी स्थिति बिगड़ती रही।* कई वैद्य,चिकित्सक आये,लेकिन किसी की बुद्धि काम नहीं कर पाई।इधर नगर वासियों ने माताजी के स्वास्थ्य लाभ के लिए जाप शुरु कर दी।कोई भी बचने की अवसर न थे। *लग रहा था आज प्राण रूपी हंसा उड़ने वाला है।* सभी ने आश तोड़ दी थी,किसी को कोई उम्मीद नहीं थी।
    लेकिन माता जी को मन में पूरा विश्वास था,और माताजी ने आचार्य श्री जी के चित्र की तरफ इशारा किया और कहा- *?"अगर मिल जाए आशीष इनका तो जीवन छीन लेंगे मरण से,बस थोड़ी सी जगह देना चरण में....."?* फिर क्या था... माता जी का संदेश अपने आराध्य गुरु तक पहुंचाया गया और *गुरुदेव ने पवित्र स्नेह से भर कर दोनों हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया।*
          जैसे ही गुरुदेव ने आशीर्वाद दिया इधर दूसरी और तुरंत *माताजी की श्वांस सहज गई।* चिकित्सक बोले- *ऐसा कौन सा उपचार किया है?* 
              माताजी ने कहा- *कैसे बताये, चैतन्य चमत्कारी गुरु का है यह उपकार।*
           जिन्हें शब्दों में बांध नहीं सकते,अमाप है इन्हें माप नहीं सकते।
    गुरुदेव ने सूत्र दिया- *?"आत्मविश्वास ही श्वास है"?*
     यह सूत्र माताजी के हृदय को स्पर्श कर गया और माताजी ने कहा- *"गुरु पर विश्वास ही श्वांस है।"*
     बाहर में दुनिया कुछ नहीं कर पाती तब *गुरु का संबल* काम आता है।जब स्वयं की देह साथ नहीं देती तब *आत्मबल* काम आता है, यह अनुभूत हुआ कि-
    *"मेरा जीवन गुरुवर,तेरे चरणों की छाया है,*
    *जीवित ही हूँ तुमसे,वरना निर्जीव-सी काया है।"*
       
    *?ज्ञानधारा से साभार?*
    *✍?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?*
    ? प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा?

    ??????????
    *हमारी वेबसाइट* 
    www.vidhyasagarpathshala.com
    *पर भी सर्च कर सकते हैं।*
    administrator Avinash jain (Tony)
    ?????


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