अभिमान नहीं स्वाभिमान की रक्षा के लिए व्रतों का निर्दोष रीति से पालन करना। स्वाभिमान का मतलब है मान नहीं करना। अभिमान नहीं करना। मौनपूर्वक भोजन करना, यह हुआ स्वाभिमान की रक्षा के लिए याचनावृत्ति से बचने के लिए रूखा, सूखा, रसदार, स्वादिष्ट कैसा भी हो, अभिमान से रहित होकर स्वाभिमान के साथ ग्रहण करते हैं। कभी भी वे ऐसी प्रवृत्ति को धारण नहीं करते, जो उनके स्वाभिमान के दायरे से परे हों, दूर हों। वे अपनी सीमा में रहकर ही निर्दोष रीति से आगम की नीति से, प्रीति के भावों से भरकर ही चर्या का पालन करते हुए हमेशा नजर आते हैं। कभी उन्हें अपने व्रतों का या अपने पद का अभिमान नहीं होता। नवधाभक्ति के साथ आहार ग्रहण करना ही वास्तविक स्वाभिमान की विधि चर्या है। इन ५० वर्षों में गुरुदेव ने अपने शिष्य-शिष्याओं के लिए यही उपदेश दिया है। अपनी चर्या को स्वाभिमान सहित सम्पन्न करते हुए देखने को मिलते हैं।