चन्दन को जितना भी घिसते चले जाओगे उतनी ही अधिक सुगंधी के साथ शीतलता को प्रदान करता है। यह उसका निजी स्वभाव है, इसी प्रकार मुनि अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शीतलता धारण करते हैं। उनके मुख से जब भी वचन निकलते हैं चन्द्रमा के समान शीतलता प्रदान करने वाले होते हैं। जब भी चलते हैं तब उनकी चाल सुहानी लगती है। उनके चरणों में आकर सारी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। जैसे थके हुए राही को वृक्ष के नीचे बैठने से शीतलता वह सुकून मिलता है वैसे ही गुरुदेव के चरणों में आने के बाद शांति और सुकून मिलता है। उनके आचरण को प्राप्त कर कर्मों का खात्मा होने में देर नहीं लगती। यही शीतलता सामने वाले व्यक्ति की फ्रेशनेस, प्रसन्नता का कारण बन समाधान को प्राप्त कर स्वभाव की ओर दृष्टिपात करने का अवसर प्राप्त होता है अपितु आत्मा में क्रोध, मान, माया, लोभ के इन भावों का समावेश होते हुए भी कभी उखड़ते हुए नजर नहीं आते क्योंकि मुनिव्रत शीतलता की समायोजना से ही प्रारम्भ होता है।
मुनि मन निर्मल जैसे गंगा को जल।
काटत करम मल.........
शिष्यों के लिये, शिष्याओं के लिये, समाजजनों के लिये, विद्वतजनों के लिये, राजनेताओं के लिये, युवक-युवतियों के लिये बालक-बालिकाओं के लिये हमेशा शब्दों से शीतोपचार करते हुए शीतल स्वभावी गुरुदेव ५० वर्षों से एक ही धारा में बहते हुए चलते हुए, बैठे हुए नजर आ रहे हैं।