जीवन जीने की कला संयम की साधना के साथ क्रमशः निखार को लिए हुए चलती रहती हैं। शांत रहने का परिणाम अशांत प्रवृत्ति वाले पुरुष को शांत होने की नित्य प्रेरणा देता रहता है। क्रूर से क्रूर हिंसक प्राणी भी अपनी हिंसा की प्रवृत्ति को छोड़ लाभदायी सिद्ध मंत्र की तरह काम करता चला जाता है। जटिल व कठिन प्रश्नों का उत्तर अंदर और बाहर से शांत होने पर अपने आप चला आता है। शांति का परिणाम क्षयोपशम को बढ़ाने में सहयोगी कारण बनता है। जब आदमी कोलाहल से रहित शांत वातावरण में चला जाता है तो उसका तनाव भी अपने आप उस शांत वातावरण में विलीन होता चला जाता है। ऐसे संयम साधक गुरुदेव ५० वर्षों में अंदर व बाहर से शांत बने रहे इसलिए बाहर में शांत छवि का दर्शन देकर सैकड़ों-हजारों युवक, युवतियों को विषय वासना से निकालकर हमेशा के लिए शांत बनाकर उनकी दिशा बदलकर दशा का परिवर्तन कराने वाले शांत छवि वाले गुरुदेव जयवंत हैं।