दुनियाँ में धर्म के मार्ग तथा धर्मात्मा बहुत देखने सुनने मिल जायेंगे। साक्षात् प्रकाश प्रदान करने वाला, धर्म को जानने वाला, उसको दिखाने वाले बहुत कम लोग हुआ करते हैं। इसके लिए बौद्धों ने मध्यम मार्ग चलाया क्योंकि वे परीषह को सहन करने में सक्षम नहीं थे। क्षुधा की बाधा, पिपासा की बाधा, एक बार भोजन करने वाली बात, परिग्रहरहितता, नग्नता, इनके दिमाग में न समा पाई। इन्होंने भी अपने आपको श्रमण कहा। मोक्षमार्ग साधक कहा। इसी प्रकार श्वेताम्बर सम्प्रदाय भी खड़ा हुआ जो दिगम्बरों से ही निकले। इन्होंने भी खान-पान की भिक्षावृत्ति में बदलाव किया और वस्त्रों को, कुप्य-भांडों को, उपकरण की संज्ञा प्रदान की। इन सबसे ऊपर उठने वाले तिलतुष मात्र भी परिग्रह नहीं रखने वाले, भरी जवानी में नग्नता को धारण कर निर्विकारता का साक्षात् दर्शन कराने वाले, बिना ओढ़ना के, बिना बिछौना के जीवनयापन करने वाले, बत्तीस अन्तरायों के भेद-उपभेद को पालकर ही भिक्षा को ग्रहण करना बाकी के बौद्ध, श्वेताम्बर भिक्षा शुद्धि से रहित, जीव-जन्तु बाल आदि को हटाकर भोजन को ग्रहण करने वाले, चर्या की कठोरता में सहजता-सरलता का दर्शन, जिनलिंग के द्वारा इस भ्रष्ट युग में निर्भीक होकर निर्दोष साधना, दीन-हीनता से रहित करने वाले, इसी के अनुरूप शिष्य-शिष्याओं से ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणियों से जीव हिंसा से रहित ऐसे कूप का पानी ग्रहण करके इस मिनरल वाटर के युग में जिनचर्या का पालन सहज और सरलता से बाधा रहित निर्बाध चल रहा है। वाद में न विवाद में, राग में न द्वेष में विश्वास है दिगम्बर भेष में। यही साक्षात् मुक्ति को देने वाला भेष होता है। जो गुरुदेव के द्वारा ५० वर्षों से एक रूप में, एक तर्ज में चला आ रहा है।