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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ८६. पराक्रम

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    कार्य की प्रसन्नता साहस के कदम के साथ सराहनीय, प्रशंसनीय मानी जाती है। सही योद्धा कभी भी पराक्रम से डरता नहीं है और साहस के साथ डेंटकर सामना करता है। जैसे सिंह पराक्रमी माना जाता है। इसी तरह गुरुदेव ने साधना के क्षेत्र में उपसर्ग परीषह को सहन करते हुए पराक्रमी योद्धा की तरह चलते हुए कार्य करते हुए, करवाते हुए प्रतिक्षण नजर आते हैं। वे कभी भी कैसी भी परिस्थितियों में अपने साहस को कभी नहीं छोड़ते हैं। जैसे बड़े बाबा के नये मंदिर में स्थापना के समय गुरुदेव का पराक्रम देखते ही बनता था। कितनी सामाजिक, प्रशासनिक, राजनैतिक परिस्थितियाँ उस समय विपरीत थीं, फिर भी उनका मन साहस से भरा हुआ था। वह कहते थे कि बड़े बाबा फूल की भाँति उठ जायेंगे। उनका साहस और विश्वास एक पराक्रम के रूप में परिवर्तित हुआ और वे विजेय योद्धा के समान बड़े बाबा के सामने भक्ति करते हुए चरणों में नतमस्तक हो गये। तभी से बड़े बाबा-छोटे बाबा की जोड़ी लोक में विख्यात हुई। आचार्य विद्यासागर अपर नाम छोटे बाबा। आचार्यश्री यह लोगों के जहन में समाहित होकर एक सूक्ति का रूप धारण कर जैन इतिहास में अंकित हो गया। कभी रोग परीषह के, रोग के आने पर भी साहस बटोर कर रोग का सामना कर निरोगता को हासिल कर परीषहजय प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे ही समता, साहस वो अपने संघ में भरते रहते हैं। मुनि वही होता है, जिसमें तात्कालिक निर्णय लेने की क्षमता हो और साहस से भरा कदम उठाने की योग्यता का हकदार हो। वही आचार्य गुरुदेव के पदचिह्नों पर चलने वाला शिष्य सफल योद्धा की श्रेणी हासिल कर लेता है। इन्द्रियों से युद्ध करने वाले योद्धा बहुत कम ही होते हैं पर शत्रु से युद्ध करने वाले दुनियाँ में भरे पड़े हैं। हम ५० वर्षों से देख रहे हैं आचार्यश्री सिंह के समान पराक्रम को धारण करने वाले इन्द्रिय विजेता आचार्य हैं।


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