Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ५३. लोकोत्तर साधक

       (0 reviews)

    साधना की आराधना में जिनका प्रतिक्षण निकल रहा हो उन्हें दुख का कभी सामना नहीं करना पड़ता। जब भी उन्हें उसका फल देखने में आता है। तो वह सुखमय ही होता है। उस सुख के फल में सुखी नहीं होते और दुख के फल में दुखी नहीं होते। उनके सुख का यही रहस्य है। जितना कायक्लेश की साधना, उपवास, ऊनोदर, बेला, तेला आदि की साधना आचार्यश्री कुण्डलपुर, नैनागिरि, मुक्तागिरि के चातुर्मास काल में किया करते थे। अपने आवश्यकों को निर्दोष रीति से पाला करते थे। नौ उपवास के समय भी उनके देह की कान्ति देखते ही बनती थी। इन दिनों में कभी उनके चेहरे पर उदासीनता, दुख, कष्ट की झलक नहीं, देह-आत्मा की भिन्नता देखने मिलती थी। प्रतिकूलता में भी अनुकूलता का अनुभव जीवन में बराबर बना रहता है। कितनी ही बार दंशमशक मच्छरों के आतंक को सहन किया फिर भी प्रतिकार का मन में भाव नहीं आना, यही शरीर से निर्ममत्वपना, निरीहवृत्ति है जो ध्यान में लवलीन करा देती है। कभी वैय्यावृत्ति के समय ऐसे भी प्रसंग बने, द्रोणगिरि आदि में शीतकाल के समय अमृतधारा को श्रावक लगाकर चले गये। साम्यभाव से शीत परीषह को सहनकर धर्म के सुख में निमग्न हो गये। उदयगिरि, खण्डगिरि प्रवास के समय चींटियाँ शरीर पर चढ़कर कष्ट पहुँचा रही थीं। फिर भी प्रतिकार नहीं। नुकीले पत्थरों पर बैठकर सामायिक में लीन होना, पत्थरों की चुभन को नहीं आत्म अनुभव की झलक को देखने में लगे रहना। इसलिए आप लोकोत्तर साधक माने जाते हैं। आप बिना साधन के विहार करते चले जाते हैं। जहाँ शाम हो जाती है, वहीं रुक जाते हैं। जंगल में भी मंगलगान होने लगता है। साधन रहित होने से लोग अपने आप साधन जुटाकर वहाँ कुटिया बना देते हैं, अपनी भक्ति कर लिया करते हैं। ये सब साधना की लोकोत्तरता बढ़ती हुई चली जा रही है। आपके नाम से ही शिष्यों को पहचाना जाता है लेकिन आप कभी भी इसे स्वीकार नहीं करते कि यह मेरे कारण हो रहा है बल्कि ऐसा मानते हैं कि हम सबके पुण्य के इकट्ठा होने से ऐसा हो रहा है। यह गुरु का प्रसाद जान पड़ता है। इतनी बड़ी प्रभावना में कर्ताबुद्धि नहीं लाना, यही उनकी लोकोत्तर साधना ५० वर्षों से लोक ख्याति का कारण बनी है इसलिए आप लोकोत्तर साधक हैं।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...