आत्मा में, मन में, शरीर में हलचल मचाने वाली हैं तो पाँच इन्द्रियाँ हैं। इन्द्रिय अपनी माँग के लिये मनुष्य के अन्दर हलचल मचा देती है, दिमाग को चक्कर में डाल देती है। जिह्वा इन्द्रिय है इसलिए किसी भी इन्द्रिय को चाहे मत रोको पर अपनी जिह्वा इन्द्रिय को अवश्य लगाम लगाओ क्योंकि बेलगाम जिह्वा बहुत दुख देती है। रसना इन्द्रिय के वश में होने से सब इन्द्रियाँ वश में हो जाती हैं। आचार्य गुरुदेव ने रस परित्याग करके रसना इन्द्रिय को जीतकर अन्य इन्द्रियों पर यों ही लगाम लगा दी। जैसे उन्मार्गगामी दुष्ट घोड़ों का लगाम के द्वारा निग्रह करते हैं, वैसे ही गुरुदेव ने तत्त्वज्ञान की भावना से इन्द्रियरूपी अश्वों का निग्रह कर मन की एकाग्रता को ज्ञान के द्वारा बचाये रखकर पाँचों इन्द्रियों के विषयों को यों ही चकनाचूर करने की सामर्थ्य त्याग के भाव से सहज ही स्वाध्याय के उद्यम चिन्तन के द्वारा इन्द्रियों से मुख मोड़कर मन को जीतने वाले, इन्द्रिय संयम को धारण करने वाले, प्राणि संयम को धारण करने वाले, रस परित्याग करने वाले, इष्ट-अनिष्ट दोनों के भाव से ऊपर आत्म स्वभाव में रहकर नीरस में रस का आनन्द लेने वाले बेरस को इन्द्रियों को इतना ही प्रदान करते हैं, जिससे इन्द्रियाँ पुष्ट न हों, मन चंचल न हो और धर्मध्यान का क्रम बना रहे और अनुप्रेक्षाओं के चिन्तन में सदा लगे रहना इसलिए आप कभी शारीरिक भोजन के बारे में नहीं आत्मा की खुराक के बारे में चिन्तन करते हैं। आत्मा की खुराक इन्द्रिय रहितोऽहम् की भावना से चलती है। इन्द्रियों से ऊपर उठकर चलने वाला ही भेदविज्ञान की ओर जाने की योग्यता रखता है। इन्द्रियों का पोषण करने वाला आत्म पोषण से वंचित रहता है इसलिए आचार्य गुरुदेव कभी इन्द्रियों की बात नहीं मानते। वे इन्द्रियों के दास नहीं बनकर आत्मा की बात मानते हैं। इन्द्रियों पर विजय करने वाले हैं। शरीर थकने पर लेटने का विचार आते ही यही कहते हुए नजर आते हैं कि शरीर कहता है कि आराम करो पर आत्मा कहती है कि सामायिक करो, ध्यान करो और ध्यान में बैठ जाते हैं। इन ५० वर्षों में गुरुदेव का यही संदेश रहा इन्द्रियों की नहीं आत्मा की सुनने वाला इन्द्रिय विजेता होता है, वही जितेन्द्रिय कहलाता है।