जो आत्मा के भेदविज्ञान में मर्मज्ञ होते हैं, वे ही जिनवाणी के रहस्य को जानने वाले सार तत्त्व को प्रकट करने वाले श्रुत के अभ्यासी, वाचना, पृच्छना, आम्नाय, धर्मोपदेश, अनुप्रेक्षा इन पाँचों अंगों को जानने वाले इनके अनुरूप चलने वाले, चलाने वाले, मुहूर्त-मुहूर्त श्रुत का चिन्तन करने वाले चिन्तकाचार, श्रुताचार, शब्दाचार, श्रोताचार, मंत्राचार, श्लोकाचार, टीकाचार दोहाचार, इन शब्दों के खिलाड़ी राख शब्द का खरा है। राही शब्द का हीरा ऐसे आगम मनीषी गुरुदेव जिनवाणी को आत्मा की खुराक बना बैठे हैं। गूढ़ से गूढ़, आगम सूत्र को सहज सुलझाने वाले, शंका का जवाब बिना रुके क्षणमात्र में आगम की युक्तियों से, तर्को से श्रोताओं को, विद्वानों को, शिष्य-शिष्याओं को संतोष प्रदान करने वाले, संतोष धन के दाता, जिनधर्म के विधाता, जैन शास्त्रों के सच्चे प्रहरी, जिनवाणी के अनुरूप अर्थ को प्रदान करने वाले आप अर्थाचार हैं। आपके ऊपर देश के बहुत सारे लोगों ने पी-एच डी० करके डॉक्टर की उपाधि प्राप्त कर आपके चारित्र को जैनेत्तरों तक पहुँचाने का प्रयास किया है। आपकी काव्यकला साहित्यकारों को मनमोहक जान पड़ती है। जो भी पढ़ता है वह जैन जगत् से प्रभावित हो जाता है। आप णमो अरिहंताणं की ध्वनि से पशुओं में सम्यग्ज्ञान प्रदान करने वाले जीव रक्षक संत शिरोमणि के रूप में जाने जाते हैं। जापानी कविता हाइकू लगभग ५०० की तादाद में सत्रह अक्षरों वाली मुनियों की प्रिय कविता बन गई है। गुरु महाराज का अनुकरण करके हाइकू छन्द में कविता लिखने के लिए कटिबद्ध हुए। इस प्रकार ५० वर्षों से जैन साहित्य हिन्दी साहित्य की सेवा करने वाले कन्नड़ भाषी गुरुदेव हिन्दी, बुन्देली बोलने में निष्णात जान पड़ते हैं।