भारतीय संस्कृति साधा जीवन उच्च विचार की शैली से प्रारम्भ होती है। इसे आचार्यों ने एक गृहस्थ के लिए अणुव्रत संज्ञा प्रदान की है। थोड़े में अपना गुजारा करना। दयाधर्म के पालन के लिए पशुओं का संरक्षण करना, इसी बात को ध्यान में रखते हुए गुरुदेव ने गायों के संरक्षण के लिए गाँव-गाँव, पाँवपाँव चलकर दयोदय केन्द्रों की स्थापना की प्रेरणा प्रदान की। गाय की रक्षा ही भारत के भारतीयों के आचार-विचार की रक्षा है। गाय होगी तो दूध, घी, दही, शुद्ध मर्यादित मिलेगा तो धर्म सहज पलेगा। पैकिट के दूध पर शुद्धता की गारंटी नहीं हो सकती है यह भारतीय संस्कृति पर प्रहार किया जा रहा है। डिब्बा बन्द सामग्री का व्यवहार रोकने के लिए पूरी मैत्री समूह का गठन जबलपुर में हुआ, जहाँ गृहस्थों के लिए शुद्ध सामग्री उपलब्ध होती है। देश की आजादी के बाद खादी का प्रचार व्यवहार कमजोर पड़ता चला गया और वस्त्रों की शुद्धता पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया। वस्त्रों को बनाने के लिए अहिंसा नहीं, हिंसा पद्धति का प्रयोग प्रारम्भ हो गया। वस्त्रों में मजबूती प्रदान करने के लिए मटन टैलो का प्रयोग होने लगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए हथकरघा का जन्म हुआ। गरीब देशवासियों के लिए रोजगार मिले, अहिंसा में विश्वास रखने वालों के लिए शुद्ध वस्त्र मिले, जिससे देश में रोजगार की समस्या का हल होगा। यह भारत देश की सभ्यता को कायम बनाये रखने वाला कदम मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक पसंद का कारण बना। साधु होकर देश की संस्कृति के बारे में विचारमग्न देख कौन प्रभावित नहीं होगा। इन ५० वर्षों में आत्म-साधना के साथ व्यवहार जगत् के कार्यों को भी स्थान मिला।