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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • २६. अष्टोत्तरशत गुणमण्डित

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    आगम में वर्णित गुणों की गुणमाला के मनन-चिंतन में जिनका जीवन बीत रहा है, कर्मों से रीत रहा है, ऐसे पूज्य गुरुदेव आत्मा की रक्षा के लिए मन, वचन, काय से त्रय गुप्ति का पालन करते हैं। प्रवृत्ति में सावधानी बनी रहे, इसके लिए पाँच समितियों का पालन करते हैं। दश धर्मों से ही साधुता पलती है। इसलिए दस धर्मों में लगे रहते हैं। बाईस यातनाओं को कष्टों को परीषहों को समता के साथ, दंशमशक आदि को सहन करते चलते हैं। प्रत्येक पल बारह अनुप्रेक्षा शीत, उष्ण चिन्तन-मनन तीर्थंकरों के मार्ग के अनुसरण की ओर गमन कराने वाली है। बारह तप का पालन जीवन भर चलता रहता है। इसी तरह आलोचना, प्रतिक्रमण आदि नौ प्रकार के प्रायश्चितों के माध्यम से दोषों का परिमार्जन करते रहते हैं, ऐसे ही ज्ञान-दर्शन-चारित्र और व्यावहारिक विनय में २४ घंटे व्यतीत करते हैं, यह दिन को नहीं, कर्म को काटने की पद्धति है। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए दश प्रकार की वैय्यावृत्ति धर्म का पालन कर नये-नये मुनि महाराजों के विशुद्ध परिणामों को सेवा-वात्सल्य के द्वारा बढ़ाते रहते हैं। उन्हीं मुनियों के अन्दर पाँच प्रकार के स्वाध्याय जैसे वाचना करना, शंका का समाधान करना, मौखिक पाठ, धर्मोपदेश से जिनवाणी को उनके अन्दर समाहित करते हैं। गुरुदेव अन्दर बाहर से निर्मोही साधक हैं। इसलिए आगम की आज्ञा का पालन करना, आज्ञा विचय धर्मध्यान को आदि कर दश धर्मध्यान के पालक हैं और श्रुतवाणी को आधार बनाकर ही कभी पृथक् चिन्तन की धारा को बनाकर शुक्लध्यान को प्राप्त करने की भूमिका में लगे हुए हैं। इसी को आधार बनाकर धर्मध्यान की आराधना में लगे रहते हैं। यही उनका १०८ गुणों की आराधना कर क्रम ५० वर्षों से चल रहा है।


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