२६-०३-२०१६
वीरोदय (बाँसवाड़ा राजः)
कल्पद्रुम महामण्डल विधान
अन्तस् की समग्र सम्वेदना से सत्ता का भावबोध प्राप्त करने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के ज्ञानाचार को प्रणाम करता हूँ....
हे गुरुवर! अजमेर में उस दिन सबके मुख पर एक ही बात थी कि मुनि विद्यासागर जी का गृहस्थ अवस्था का परिवार जिनधर्म समर्पित, शुद्ध, परम-पवित्र, श्रद्धा-भक्ति, विनयशील, दानशील, मधुर व्यवहार भाषी परिवार है। जिस दिन सोनी नसियाँ में ब्रह्मचारी विद्याधर जी के माता-पिता, भाई-बहिनों ने बड़े ही ठाटबाट से आप द्वय गुरु महाराजों की पूजा की थी। इस सम्बन्ध में अग्रज भाई महावीर जी ने बताया-
मल्लप्पा जी ने सपरिवार चढ़ाये १०८ स्वर्ण पुष्प
"पिता जी के साथ हम सपरिवार अजमेर नगर आहारदान हेतु चौका लेके गए तब अन्तिम दिन सोनी जी की नसियाँ में मुनि द्वय गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी मुनि महाराज एवं श्री विद्यासागर जी मुनि महाराज की पूजा का कार्यक्रम रखा। उसमें अजमेर समाज भी सम्मिलित हुई थी हम सभी ने अजमेर के कवि प्रभुदयाल जी जैन द्वारा रचित मुनि ज्ञानसागर जी महाराज एवं मुनि विद्यासागर जी महाराज की पूजा सस्वर भक्ति भाव से की थी। उस पूजन में हम सब परिवार ने मिलकर १०८ स्वर्ण पुष्प समर्पित किए थे।
तब गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज का मार्मिक प्रवचन हुआ था। तत्पश्चात् सर सेठ साहब भागचन्द्र जी सोनी, अजमेर जैन समाज के प्रमुख आदि ने माता-पिता को भरी समाज में सम्मान किया और अपने भाषण में बोले ‘स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्' संसार में ऐसी माताएँ बहुत कम हुआ करती हैं, जो ऐसे पुत्र को जन्म देती हैं कि वह अपना कल्याण तो करता ही है साथ ही माता-पिता, देश-समाज का भी कल्याण करता है एवं दुनियाँ में माता-पिता का ही नहीं वरन् मानव मात्र का नाम रोशन करता है। धन्य हैं ऐसे माता पिता जिनके लाड़ले ने अजमेर राजस्थान को धन्य कर दिया और इतिहास में नाम अमर बना दिया। इसके बाद संचालक निहालचंद जी मास्टर साहब ने पिताजी को बोलने के लिए कहा तब मुनि संघ के समक्ष पिताजी बोलने के लिए खड़े हुए और बोले-आचार्य ज्ञानसागर जी मुनि महाराज की जय। मुनि विद्यासागर जी महाराज की जय। मुनि संघ की जय। हमको हिन्दी साफ नहीं आती है। आप लोग समझ लेना। मुनि ज्ञानसागर जी महाराज ज्ञानी महाराज हैं और जौहरी हैं। दक्षिण भारत के रत्न को पहचान लिया और उसे तराश दिया। हमने आपके बारे में सुना है कि आप संस्कृत के विद्वान् पण्डित रहे हैं। आपने बहुत सारा साहित्य लिखा है और ब्रह्मचारी अवस्था में मुनियों को पढ़ाया है। तो हमने विद्याधर को आपको गोद दे दिया है। अब आप इसको अपने जैसा ही विद्वान् पण्डित बनाना। जिससे ये अपना और दूसरों का भला कर सके और हमें भी ऐसा आशीर्वाद दे देना हम भी संयम मार्ग में बढ़ सकें और हर चातुर्मास में आपकी सेवा में आ सकें।" इस तरह विद्याधर के सुसंस्कारों की पृष्ठभूमि में माता-पिता, कुल-परम्परा की भूमिका प्रकट हो जाती है। सम्यक् धर्म की परम्परा को प्रणाम करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य