२४-0३-२0१६
खान्दू कॉलोनी, बाँसवाड़ा (राजः)
प्राणीमात्र के साथ संवेदनात्मक जीवंत सरोकार स्थापित करने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के संयमित पद कमलों की भाव पूजा-वंदना करता हूँ...।
हे गुरुवर ! सन् १९६८ का वर्षायोग अजमेर नगर में आपने किया। उस समय का पूरा विवरण दिगम्बर जैन महासंघ अजमेर के महामंत्री इन्दरचंद जी पाटनी (टेलीकॉम) जी ने २७-१०-२०१५ को भीलवाड़ा में आँखों देखा वर्णन सुनाया। वह मैं आपको स्मृति ताजा करने हेतु लिख रहा हूँ
मुनि विद्यासागर जी का अजमेर में प्रथम वर्षायोग
"सोनी जी की नसियाँ में मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज का प्रवचन प्रतिदिन होता था। ५ जुलाई १९६८ को सर सेठ श्री भागचंद जी सोनी, पण्डित हेमचन्द जी शास्त्री, छगनलाल जी पाटनी, ताराचन्द जी गंगवाल, पण्डित विद्याकुमार जी सेठी, प्रोफेसर (प्राचार्य) निहालचन्द जी बड़जात्या, मा. मनोहरलाल जी, कजोड़ीमल जी अजमेरा, महेन्द्रकुमार जी बोहरा, कैलाशचन्द जी पाटनी, माधोलाल जी गदिया, वकील पदमकुमार जी बड़जात्या आदि अनेक गणमान्य समाज श्रेष्ठियों ने मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में बड़ी श्रद्धा-भक्ति से श्रीफल समर्पित करते हुए पूरे अजमेर समाज की उपस्थिति में निवेदन किया गुरुदेव हम सभी की विनम्र प्रार्थना है कि इस वर्ष का चातुर्मास अजमेर नगरी को प्राप्त हो जिससे हम लोग धर्म लाभ लेकर अपने आत्म कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर सकें। तब श्री ज्ञानसागर जी महाराज बोले-‘देखो!'
९ जुलाई १९६८ को अजमेर जैन समाज प्रात:काल नसियाँ जी में एकत्रित हो गयी और ज्यों मुनि संघ मंचासीन हुआ तब सेठ साहब श्री भागचन्दजी सोनी जी ने पुनः निवेदन किया तब मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने हँसते हुए आशीर्वाद दिया और कहा- ‘चार माह हमारा संघ अजमेर में ही धर्म ध्यान करेगा, धर्म साधना करेगा, यदि आप लोग भी धर्म लाभ लेना चाहें तो हम लोगों की साधना में बिना बाधा किए अनुकूल समय में आप लोगों के धर्म लाभ में संघ निमित्त बन सकता है, इसके बाद श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने संकल्प किया, दिशाओं का बन्धन किया।
१९६८-चातुर्मास में प्रतिदिन की दिनचर्या इस प्रकार रही
प्रातः शौच से निवृत्त होकर, ८ बजे से ९ बजे तक प्रवचन होता था। जो श्री ज्ञानसागर जी महाराज देते थे। फिर आहाराचर्या के लिए निकलते थे। चूँकि श्री ज्ञानसागर जी महाराज बुजुर्ग थे तो वे आस-पास के चौकों में ही जाते थे, किन्तु मुनि श्री विद्यासागर जी और संघस्थ क्षुल्लकगण दूर-दूर तक शहर के अन्य चौकों में भी चले जाते थे। इसके पश्चात् १२ बजे से सामायिक हुआ करती थी फिर दोपहर २:३० बजे से समयसार ग्रन्थ की कक्षा चलती थी। जिसमें श्री ज्ञानसागर जी महाराज समस्त धर्म शास्त्रों के प्रमाणों के आधार पर आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के अभिप्राय को समझाते थे और समाज के कुछ विद्वान् जिज्ञासा रखते थे, प्रतिप्रश्न करते थे तो गुरु महाराज उनसे आगम प्रमाण पूछते थे और जब कोई ग्रन्थ दिखाते थे तो महाराज उसकी संस्कृत या प्राकृत पढ़कर अर्थ समझाते थे और कहते थे नीचे जो हिन्दी में अर्थ है वह गलत है। ऐसी बहुत ऊहापोह चला करती थी। मुनि विद्यासागर जी बड़े ध्यान से सुना करते थे और बीच-बीच में प्रश्न भी किया करते थे। इस कक्षा में छगनलाल जी पाटनी, ताराचन्द जी गंगवाल, ताराचन्द जी पाटनी, प्रेमराज जी दोषी, कैलाश जी पाटनी, पण्डित श्री हेमचन्द जी, मा० निहालचन्द जी, सेठ श्री भागचन्द जी सोनी, प्रधानाध्यापक मनोहरलाल जी जैन, ब्रः सुगनचंद जी गंगवाल, ब्रः श्री प्यारेलाल जी बड़जात्या, पं० विद्याकुमार जी सेठी, पं० हरक चंद जी, मथुरालाल जी बज, छीतरमल जी दोशी, कजोड़ी मल जी अजमेरा, मूलचंद जी चाँदी वाल, विद्याधर ब्रह्मचारी के धर्म के माता-पिता हुकुमचंद जी लुहाड़िया, रविन्द्र कुमार जी, कविराज श्री प्रभुदयाल जी, पदमचंद जी-मनोरमा पाटनी, भागचंद जी बाकलीवाल, बसंतीलाल जी बाकलीवाल, माधोलाल गदिया परिवार, कपूरचंद जी एडवोकेट, प्रफुल्ल कुमार जी, शान्तिलाल जी बड़जात्या, मिलापचंद जी पाटनी, दीपचंद जी दोशी, महेन्द्र कुमार जी बोहरा, स्वरूपचंद जी कासलीवाल, प्रकाशचंद जी गोधा, पी. कुमार फोटोग्राफर, सोहनलाल जी गदिया, पूषराज जी गदिया आदि समाज के बुद्धिजीवी लोग महाराज श्री ज्ञानसागर जी के समक्ष तत्त्व चर्चा किया करते थे। शाम को श्री ज्ञानसागर जी महाराज के साथ मुनि विद्यासागर जी प्रतिक्रमण किया करते थे और फिर आचार्य भक्ति होती थी फिर संघ सामायिक में लीन हो जाता था। ८:३० बजे समाज के बन्धुजन वैयावृत्य किया करते थे। मुनि श्री ज्ञानसागर जी की वैयावृत्य मुनि श्री विद्यासागर जी किया करते थे। दिन में जब कभी समय मिलता तो वो पण्डित हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री द्वारा अनुवादित प्रमेयरत्नमाला की चिन्तामणि नामक हिन्दी टीका को अपनी कॉपी में लिखा करते थे।
अजमेर के हरकचंद जी लुहाड़िया सपत्नीक ने परमपूज्य वयोवृद्ध चारित्र विभूषण ज्ञानमूर्ति श्री १०८ ज्ञानसागर जी मुनि महाराज ससंघ के चरणों में निवेदन किया कि ३१ जुलाई से २ अगस्त तक आपके आशीर्वाद एवं सान्निध्य में भक्तामर का अखण्ड पाठ व पूजा जाप विधान करना चाहते हैं। तब गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज ने आशीर्वाद प्रदान कर दिया। इस अनुष्ठान में अजमेर के अनेक लोगों ने भाग लिया। प्रात:काल गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज का और दोपहर में मुनि विद्यासागर जी महाराज का मंगल प्रवचन हुआ। भादवा सुदी एकम् से तीज तक समाज की महिलाएँ रोट तीज व्रत रखती हैं। इस कारण बहुत सारी महिलायें मुनि ज्ञानसागर जी महाराज एवं विद्यासागर जी महाराज से आशीर्वाद लेने आयीं, मुनि विद्यासागर जी से उन महिलाओं ने निवेदन किया महाराज रोट तीज की कथा सुनाइए तो विद्यासागर जी को रोटतीज व्रत के बारे में जानकारी नहीं थी, उन्होंने गुरु ज्ञानसागर जी महाराज के पास भेज दिया, बाद में ज्ञानसागर जी महाराज ने दोपहर की तत्त्वचर्चा में इसका जिक्र किया।
रोट तीज के दिन मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज को चौके में रोट दिया गया। आहार के बाद जब वो वापस नसियाँ जी आए तब ज्ञानसागर जी महाराज से बोले- 'यहाँ पर क्या इतनी मोटी-मोटी (हाथों का इशारा करते हुए) रोटी बनती हैं ?' तब ज्ञानसागर जी महाराज बोले-‘महाराज! ये राजस्थान है ना यहाँ पर दशलक्षण पर्व से दो दिन पहले ये रोट तीज आती हैं और इस दिन घरों में रोटी आदि नहीं बनती, ये इतनी मोटी-मोटी रोट बनती हैं इसको रोट कहते हैं, इसमें घी भर देते हैं, बूरा डाल देते हैं और तुरई की सब्जी के साथ खाते हैं, इसलिए आज के दिन वही खिलाते हैं।' तब विद्यासागर जी बोले- ‘इससे क्या होता है, तो ज्ञानसागर जी महाराज बोले- 'इससे इन्हें दस दिन भूख नहीं सताती, व्रत, उपवास अच्छे से हो जाते हैं तब विद्यासागर जी हँसने लगे।
दशलक्षण पर्व में सेठ साहब भागचंद सोनी जी ने दशलक्षण पूजन विधान, सोलहकारण विधान, रत्नत्रय विधान के लिए माड़ना लगाया और ज्ञानसागर जी महाराज के प्रवचन के उपरांत चौथ के दिन समाज को आमन्त्रित किया कि जिन-जिन को भी पूजन विधान करना हो वो मेरे साथ खड़े होकर महाराज श्री से आशीर्वाद ग्रहण करें तब समाज के २०-२५ गणमान्य सज्जनों ने आशीर्वाद ग्रहण किया। प्रतिदिन प्रात: व मध्याह्न ३ बजे से नसियाँ जी में परमपूज्य मुनिराज ज्ञानसागर जी महाराज व पूज्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मार्मिक गम्भीर प्रवचन होता था।
अनन्त चतुर्दशी के दिन व प्रतिपदा को नसियाँ जी तथा शहर के मंदिरों में मुनि संघ के सान्निध्य में वार्षिक कलशाभिषेक हुआ और उसके बाद ऐरावत हाथी पर श्री जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा को विराजमान कर मंदिर के बाहर चारों तरफ एक परिक्रमा लगायी गयी। जिसमें भगवान के आगे अजमेर की दिगम्बर जैन संगीत भजन मण्डली भजन गाते हुए चल रही थी और मूलचन्द्र जी चाँदीवाल एवं नवीन जी गोधा आदि भाव नृत्य कर रहे थे। पूरी अजमेर समाज के लोग जय-जयकार कर रहे थे।
एकम् के दिन विधान समाप्त हुआ। तब मध्याह्न में अरिहन्त प्रतिमा का अभिषेक के पश्चात् समाज के समस्त पुरुष वर्ग ने हाथों में अर्घ की रकेवी लेकर सेठ साहब के साथ भजन गाते हुए मंदिर की एक परिक्रमा लगाई और महाअर्घ बोलकर जिनेन्द्र प्रभु के चरणों में अर्घ चढ़ाया और उसके बाद सभी नसियाँओं में कलशाभिषेक हुए और फिर उसके बाद पूरी समाज सरावगी मुहल्ले पहुँचती है और वहाँ सर्वप्रथम सेठ जी के गृह चैत्यालय में अभिषेक देखती हैं, फिर अलग-अलग धड़ों के मंदिरों में अभिषेक होता है, फिर सरावगी मुहल्ले के चौक में पूरी समाज एकत्रित होकर क्षमावाणी का कार्यक्रम करती है। सभी लोग एक दूसरे से क्षमा माँगते हैं और फिर सोनी नसियाँ में पूरी समाज एकत्रित होती है और जो रत्नत्रय व्रत करने वाले हैं, उनसे क्षमा माँगती है।
भाद्रपद शुक्ला दोज को परमपूज्य चारित्र चक्रवर्ती श्री १०८ आचार्यवर्य शान्तिसागर जी महाराज का समाधि दिवस धूमधाम से मनाया गया। मुनि द्वय के मार्मिक प्रवचन हुए। ०३-११-१९६८ को परमपूज्य गुरुवर श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज ने केशलोंच किया। केशलोंच के पश्चात् श्रीमान् सर सेठ भागचंद सोनी जी ने दोनों मुनिराजों को नवीन पिच्छिका भेंट की एवं संघस्थ क्षुल्लक सन्मतिसागर जी, सुखसागर जी, आदिसागर जी को नवीन पिच्छिका समाज के अन्य लोगों ने भेंट की और विद्यासागर जी की पुरानी पिच्छिका अनन्य भक्त कजौड़ीमल जी अजमेरा को प्राप्त हुई।" इस तरह मुनि श्री विद्यासागर जी प्रथम चातुर्मास में अजमेर में गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज की आज्ञा एवं अनुमति से ज्ञान-ध्यान-साधना करते थे। इस सम्बन्ध में आपकी अनन्य भक्त श्रीमती मनोरमा पाटनी। अजमेर ने एक संस्मरण सुनाया।
गुरु आज्ञा से साधना में लीन
"जैसे गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज अपने नियम के पक्के और अनुशासन के पक्के थे। ऐसे ही उनके शिष्य मुनि विद्यासागर जी भी बन गए थे। हमने कई बार मुनि विद्यासागर जी को आतेड़ की छतरियों में घण्टों-घण्टों सामायिक करते सुना और देखा है। आतेड़ की छतरियाँ उस समय शहर से ४-५ कि.मी. दूर जंगल में पहाड़ियों से घिरी हुई थीं। १-२ बार गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने मेरे पतिदेव (पदमचंद जी पाटनी) को कहा- विद्यासागर को शीघ्र बुलाकर लाओ। तो विद्यासागर जी छतरियों की ओर से आते हुए मिलते थे। उनको बोला- ‘गुरु महाराज ने आपको बुलाने के लिए कहा था। तो मुनि विद्यासागर जी बोले- मैं तो समय पर पहुँच जाता हूँ। आप लोग ढूँढा मत करो। मैं गुरुजी से अनुमति लेकर ही तो जाता हूँ।' आने के बाद मेरे पतिदेव ने गुरु महाराज को निवेदन किया कि विद्यासागर जी महाराज का कहना था कि मैं तो समय पर पहुँच जाता हूँ आप लोग ढूढ़ा मत करो, मैं गुरु जी से अनुमति लेकर ही तो जाता हूँ, तब गुरु ज्ञानसागर जी महाराज बोले- ‘आप लोगों को कैसे पता चलेगा विद्यासागर कैसी साधना कर रहे हैं, उनको देखोगे तभी तो पता चलेगा इसलिए मैं बोल देता हूँ।" इस तरह मुनि विद्यासागर जी की दीक्षा लेने के बाद गुरु ज्ञानसागर जी महाराज के द्वारा नित्य प्रति समयसार ग्रन्थ का स्वाध्याय करने से भाव विशुद्धि बढ़ गई तथा भावलिंगी साधु की सच्ची साधना में लीन हो गए और उनकी एकान्त साधना की रुचि बता रही थी कि वो जैसे परमपूज्य आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के द्वारा बताई गई शुद्धोपयोग दशा को अनुभूत करना चाह रहे हों। उस उत्कृष्ट भावदशा को नमन करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य