१४-११-२०१५
भीलवाड़ा (राजः)
सरल-सहज-शान्त स्वभावी, यथाजातरूपधारी गुरुवर ज्ञानसागरजी मुनि महाराज के श्री चरणों में त्रिकाल त्रियोग शुद्धिपूर्वक त्रिभक्तिमय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु…
हे ज्ञानकला कुंज गुरुवर! आज बड़े भाई महावीर अष्टगे ने बताया कि कैसे विद्याधर का नाम ‘पिल्लू’ या 'गिनी' पड़ा और दक्षिण की भाषागत विशेषताएँ भी बतलाईं। विद्याधर माता-पिता को जो सम्बोधन करता था, वह मैं आपको बता रहा हूँ-
विद्याधर बनाम 'पिल्लू गिनी'
“जब विद्याधर छोटा-सा था और हाथों के बल घिसटने लगा तब अक्का (माँ) उसको प्यार से पिल्लू कहकर बुलाती थी। दक्षिण प्रान्त में छोटे बच्चों को लाड़ प्यार से पिल्लू कहते हैं। वह जन्म से ही परिवारजनों का और पड़ोसियों का लाड़ला था। उसको जो भी देखता। वो विद्याधर को खिलाये बिना नहीं रहता। दिन-भर कोई न कोई उसे गोदी में उठाकर प्यार करता ही रहता था और वह भी सबके पास चला जाता था। न तो किसी से डरता था और न ही रोता था। इस कारण सभी उसे लेने की कोशिश करते थे। पड़ोसियों का समय भी उसके बिना नहीं करता था। माँ को जब उसकी याद आती तो हम लोगों को कहती पिल्लू कहाँ है उसे लेकर आओ। तब उसे ढूँढते कि वो किसके घर है। पड़ोसियों ने प्यार-प्यार में उसे ‘गिनी' कहना प्रारम्भ कर दिया था। ‘गिनी' शब्द कन्नड़ भाषा का है जिसे हिन्दी में ‘तोता' कहते हैं।
जब विद्याधर थोड़ा बड़ा हुआ तो बोलना शुरू हो गया, तो मेरी और बड़ी बहन सुमन की तरह पिताजी को ‘अन्नाजी' और माँ को 'अक्काजी' कहने लगा था। वैसे कर्नाटक में पिताजी को 'अप्पा' और माँ को 'औवा' बोलते हैं किन्तु हम लोगों का 'अन्ना' व 'अक्का' बोलने का कारण यह था कि पिताजी के एक छोटे भाई और दो बहिनें थीं। वे पिताजी (मल्लप्पा) को 'अन्ना’ कहते थे एवं माँ (श्रीमन्तीजी) को 'अक्का' बोलते थे क्योंकि कन्नड़ में बड़े भाई को ‘अन्ना' और बड़ी बहन या भाभी को 'अक्का' बोलते हैं इस कारण हम भाई-बहिन भी उनके जैसे ही माँ एवं पिताजी को 'अक्का' एवं 'अन्ना' कहने लगे किन्तु कन्नड़ भाषा में लिखने में पिताजी को 'तन्दे' एवं माँ को 'ताई' लिखते हैं। विद्याधर आदि हम सभी बच्चे सुबह उठकर माता-पिता को प्रणाम बोलते थे और त्योहार आदि विशेष दिनों में चरण स्पर्श भी करते थे। अड़ोस-पड़ोस के बड़े बुजुर्गों को अन्ना जी प्रणाम अक्का जी प्रणाम बोलते थे।" भारतीय भाषा में कितना अपनत्व और प्यार होता है, इस बारे में आप अच्छी तरह परिचित हैं ही, साथ ही राजस्थानी भाषागत वैशिष्ट्य से भी।
आपका कृपाकांक्षी
शिष्यानुशिष्य