२0-०३-२०१६
खान्दू कॉलोनी, बाँसवाड़ा (राजः)
आमूल चूल मांगलिक क्रान्ति के जन्मदाता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के क्रान्तिकारी चरणों में त्रिकालं वन्दनं...
हे गुरुवर! ३० जून के दीक्षा महामहोत्सव की चर्चा सर्वत्र फैल गई। अजमेर के दैनिक अखबारों में भी मुख पृष्ठ पर मुख्य समाचार के रूप में यह समाचार सुर्खियों में रहा। इस तरह कई अखबारों ने घर-घर में चर्चा का विषय बना दिया कि ऐसा अद्भुत दृश्य हम नहीं देख पाये, गजब हो गया, २२ वर्ष का जवान सुन्दर युवा नग्न साधु बन गया। इस समाचार से कई दिन तक अजैन जनता नूतन मुनि विद्यासागर जी के दर्शन करने के लिए आती रही। दूसरे दिन धर्म सभा में प्रभु दयाल जैन कोविद् कवि महोदय ने गीत प्रस्तुत किया। उससे पूर्व बोले-कल कल्याणकारी दीक्षा महोत्सव को देखकर मेरा हृदय भाव विभोर हो उठा और नवोदित मुनि की भक्ति में गा पड़ा इस तरह एक गीत बन गया। वह मैं सुना रहा हूँ
विद्याधर से विद्यासागर
जब खिल गया था ज्ञान उपवन,
इक बाल ब्रह्मचारी के मन।
बही धर्म की शीतल पवन,
और वैराग्य की फूटी किरन।
लेय दीक्षा बन गए विद्याधर विद्यासागर जी।
त्याग परिग्रह धारा, वेशदिगम्बर,
किया जग से किनारा, घर बार तजकर,
धन्य श्रीमन्ती के नंदन, भविजन के आनंदकंदन,
करता तुमको जग वंदन,
चरणों में आय आय शीश नवाकर जी। लेय दीक्षा०॥१॥
मोह ममता भी त्यागी, मन किया वशकर,
काम सुभट भी मारा, इन्द्रियाँ जयकर,
धन्य मल्लप्पा नंदन, दर्शन से हो मनरंजन,
गाता जग तुमरे गुनगान,
आरती गाय गाय पूजा रचाकर जी। लेय दीक्षाः ॥२॥
शान्ति-सिन्धु ने गाँव, शेड़वाल माई,
वैराग्य ज्योति नवे, बरस जगाई,
जैनबद्री के माईं, देशभूषण ऋषिराई,
प्रतिज्ञा शील कराई,
लीनी शरण फिर आय ज्ञानसागर जी। लेय दीक्षा०॥३॥
शान्ति अनन्त जिनके महावीर भ्राता,
भगिनी सुवर्णा जिनकी दूजी है शान्ता,
तोड़ा सबही से नाता, नाता ये जग भटकाता,
जग में नहीं सुख और साता,
पाने अक्षयपद ठानी शिव माँय, जाकर जी। लेय दीक्षाः॥४॥
भूमि सदलगा जन्मे, पावन बनाई,
निर्ग्रन्थ दीक्षा लीनी, अजमेर माई,
उम्र बाईस के माई, कुल की कीरत चमकाई,
महिमा जिन धर्म बढ़ाई,
इन्द्र भी हरषे थे दुराय नीर गागर जी। लेय दीक्षाः॥५॥
रूप बालक व जिन अविकारी,
शान्त सलोनी छवि, है अतिप्यारी,
चारित गगन के तारे, भविजन के मन उजियारे,
निज पर के हैं हितकारे,
चारित्र मूरत 'प्रभु' धर्म दिवाकर जी। लेय दीक्षाः ॥६॥
इस तरह अजमेर में वो दिन समाज के आनंदोल्लास के दिन थे। आबालवृद्ध नर-नारी हर दिन श्रद्धाभक्ति के सुमन समर्पण कर रहे थे। चारित्र विभूषण गुरुवर के चरणों में करता हूँ तन-मन अर्पण...
आपका
शिष्यानुशिष्य