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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ७६ नूतन मुनि विद्यासागर जी की प्रथम पारणा

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    १९-०३-२०१६

    खान्दू कॉलोनी, बाँसवाड़ा (राजः)

     

    श्रमण संस्कृति प्रहरी गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में अंतरंग नमोस्तु करता हूँ...।

    हे गुरुवर! आज मैं दीक्षा के दूसरे दिन का वह वर्णन लिख रहा हूँ, जो सब की श्वासों को बढ़ा रहा था। जब सब की धड़कने बढ़ गई थी। इसका कारण था नव नवोन्मेषी मुनि श्री विद्यासागर जी की पारणा किस पुण्यवान् को कराने का अवसर मिलता है। आहार देखने की ललक लिए हजारों लोग रहस्यमयी भय से आशंकित थे। इस सम्बन्ध में इन्दरचन्द जी पाटनी दिगम्बर जैन महासंघ अजमेर के महामंत्री जी ने पुनः आँखों देखा आह्लादित करने वाला संस्मरण सुनाया-

     

    नूतन मुनि विद्यासागर जी की प्रथम पारणा

    "दीक्षा के दूसरे दिन नसियाँ क्षेत्र में एवं सरावगी मोहल्ला, सुन्दर विलास, बापू नगर, अग्रसेन नगर आदि जगहों पर घर-घर, द्वार-द्वार आहारदान हेतु पड़गाहन करने हेतु श्रावक-श्राविकाएँ उत्साहित हो रहे थे। जैसे ही सोनीजी की नसियाँ से नवदीक्षित मुनिराज आखड़ी लेकर/ विग्रह लेकर सभी गृहों को देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए सरावगी मोहल्ले की ओर बढ़े। नवदीक्षित मुनि के आहार देखने हेतु जनता उनके पीछे चल रही थी। जैसे ही सरावगी मोहल्ले के महापूत मंदिर के सामने श्रावक शिरोमणि सर सेठ भागचन्द जी सोनी अपने पत्नि, बच्चों, बहुओं सहित पड़गाहन रहे थे। जैसे ही मुनि विद्यासागर महाराज ने उन्हें देखा और उनकी विधि मिल गई। वो उनके सामने खड़े हो गए। सेठ परिवार ने तीन परिक्रमा लगाई शुद्धि बोली और गृह। प्रवेश कराया और भोजनशाला में उन्हें उच्चासन पर विराजमान करके पाद प्रक्षालन किया। तत्पश्चात् सोने चाँदी के अर्घों से पूजा की और फिर नमोस्तु करके शुद्धि बोली तब मुनि विद्यासागर जी ने अँजुलि खोली हाथ धोने जल दिया गया फिर उन्होंने कायोत्सर्ग किया और अँजुलि बाँधकर खड़े हो गए और आहार शुरु हुआ। तब लाइन से अजमेर की जनता ने आहार दान देखकर अनुमोदना कर पुण्यार्जन किया। एक दृश्य यह भी देखा जब सेठ साहब मीठा देने की कोशिश कर रहे थे किन्तु मुनि विद्यासागर जी ने हँसते हुए अँजुलि बंद कर दी। सेठ साहब ने बहुत कोशिश की किन्तु मुनि विद्यासागर जी ने ब्रह्मचारी अवस्था में ही मीठे, नमक का त्यागकर दिया था, इस कारण उन्होंने नहीं लिया, सेठ जी ने उन्हें बहुत मनाया-हमारी जिन्दगी में यह दुर्लभ अवसर बार-बार नहीं आएगा, किन्तु मुनि श्री विद्यासागर जी ने अपना नियम नहीं तोड़ा। आहार के पश्चात् आहार दान की खुशी में सेठ साहब ने सभी दर्शकों को मिष्ठान व श्रीफल वितरण कराये और बैण्ड-बाजों के साथ सोनीजी परिवार सहित व दर्शकों की भीड़ के साथ में नाचते हुए सोनीजी की नसियाँ तक छोड़ने आए।" इसी प्रकार दीपचंद छाबड़ा नांदसी वालों ने भी मुझे १६-११-२०१५ भीलवाड़ा में इस प्रसंग में एक संस्मरण सुनाया-

     

    सिद्ध साधक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज की वचन सिद्धि

    "१ जुलाई १९६८ को परमपूज्य मुनि श्री नवदीक्षित श्री विद्यासागर जी मुनिराज का प्रथम आहार की पारणा सर सेठ भागचन्द जी सोनी की कोठी सरावगी मोहल्ला अजमेर में महत् प्रभावना के साथ सानंद सम्पन्न हुई। सेठ सोनी परिवार गाजे-बाजों के साथ उन्हें सोनी नसियाँ तक छोड़ने आया। नसियाँ जी के मन्दिर के बाहर खुले परिसर में गुरुवर ज्ञानसागर जी महामुनिराज एवं नवदीक्षित मनोज्ञ मुनिराज श्री विद्यासागर जी महाराज विराजमान हुए फिर उच्चासन पर विराजमान गुरुदेव को मुनिराज श्री विद्यासागर जी ने नमोस्तु निवेदित किया तब गुरुदेव ने पूछा- "आहार कैसा हुआ?" तो मुनि श्री बोले- 'अच्छा... निरन्तराय हुआ। तत्पश्चात् गुरुदेव ने समाज को आशीर्वाद दिया और सभी लोग चले गए। तब सर सेठ सोनी जी बोले गुरु महाराज आपने क्या संस्कार दे दिए कि नवदीक्षित मुनि भी वर्षों वर्षों साधी गयी साधना के रूप में चर्या पालन कर रहे हैं। तब गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज बोले-‘यदि यह शरीर पाँच साल भी टिक गया तो मुनि श्री विद्यासागर जी बड़े ही निपुण सर्व विद्याओं में पारंगत हो जायेंगे।

     

    परमपूज्य गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज की वाणी सिद्धसाधक की वाणी है। जिनको वचनसिद्धि प्राप्त थी। उनके श्रीमुखारबिन्द से निःसृत वचनानुसार उनकी शरीर की आयु ठीक ५ वर्ष की अवशिष्ट रही, जो मुनि श्री विद्यासागर जी के लिए चिन्तामणि रत्न के समान वरदान साबित हुई। इन पाँच वर्षों में मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज महा मनोज्ञ, कठोर अनुशासन प्रिय, विशालतम मुनि संघाधिपति, यशस्वी, तपस्वी, दिगम्बर जैन निर्ग्रन्थ आचार्य परमेष्ठी भगवान, निर्यापकाचार्य, आगम और अध्यात्म के विशिष्ट ज्ञानी, उत्कृष्ट साधक, साहित्याचार्य, व्याकरणाचार्य, न्यायाचार्य, सिद्धान्ताचार्य, ज्योतिषाचार्य, महाकवि आदिआदि योग्यताओं को प्राप्त कर लिया। आज उनकी यशः पताका सम्पूर्ण विश्व में लहरा रही है। अति निकट भव्य जीवात्माओं को ही उनका सान्निध्य प्राप्त होता है और वे उनके जीवन निर्माता बन गए हैं।" इस तरह आपके शिष्यानुशिष्य हम सभी आपकी वचनसिद्धि सुनकर गौरवान्वित महसूस करते हैं । हे दूरदृष्टा! जैसा आपने कहा था, आज वैसा ही हम अपने गुरु की यशकीर्ति देख रहे हैं। अनुपम अद्वितीय गुरुशिष्य के चरणों में नमोस्तु करता हुआ....

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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