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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ७५ ब्रः विद्याधर जी की मुनि दीक्षा का आँखों देखा वर्णन, दीक्षा पूर्व ब्र० विद्याधर जी ने किया शान्ति विधान, ब्र० विद्याधर जी के अग्रज ने रुलाया सबको, ब्र० विद्याधर जी ने किया तृतीय केशलोंच, सर सेठ भागचंद जी सोनी का प्रासंगिक उद्बोधन

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    १८-०३-२०१६

    खान्दू कॉलोनी, बाँसवाड़ा (राजः)

     

    भक्ति आँगन के अतिथि गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज! आपके चरणों में भक्तिपूर्वक नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु....

    हे गुरुवर! जब आपने समाज के निवेदन पर दीक्षा की तिथि निश्चित कर दी - अषाढ़ शुक्ला पंचमी ३० जून १९६८| तो सर सेठ भागचंद सोनी जी के नेतृत्व में दीक्षा की तैयारियाँ शुरु हो गई। दीक्षा से पाँच दिन पूर्व महोत्सव प्रारम्भ हो गया। इस सम्बन्ध में उस समय अजमेर के दिगम्बर जैन महासंघ के महामंत्री एवं हायर ग्रेड सीनियर सेक्शन ऑफिसर टेलिकॉम के श्रीमान् इन्दरचन्द जी पाटनी, जो पत्रकारिता में रुचि रखते थे और सोनी नसियाँ के बगल में रंगमहल में निवास करते हैं। उन्होंने मुझे २७-१०-२०१५ को पूरा आँखों देखा वर्णन लिखाया। वो मैं आपको दिखा रहा हूँ जिससे लोग महापुरुष के द्वितीय जन्म का मुनि का महोत्सव जान सकें-

     

    ब्रः विद्याधर जी की मुनि दीक्षा का आँखों देखा वर्णन

    "सन् १९६८ में जब सदलगा कर्नाटक के दक्षिण भारतीय ब्रह्मचारी विद्याधर जी की दीक्षा होना निश्चित हुआ, तब ६ दिन तक अजमेर नगर में शोभायात्रा (बिन्दोरी) निकली थी। प्रथम दिवस २५-०६-१९६८ को नला बाजार से शोभायात्रा प्रारम्भ हुई और दरगाह बाजार होते हुए फिर नया बाजार चौपड़ से आगरा गेट से निकलते हुए सोनी जी की नसियाँ पहुँचा। इस जुलूस में घोड़े, ऊँट, बग्घियाँ, ढोल, नगाड़े बैण्ड-बाजे एवं तरह-तरह की पोशाकों में युवाओं की टोलियाँ नृत्य करते हुए शोभा बढ़ाते चल रही थीं। यह जुलूस अजमेर के सेठ श्रीमान् मिश्रीलाल जी मीठा लाल जी पाटनी परिवार की ओर से निकाला गया था।

     

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    दूसरे दिन २६-०६-१९६८ को अजमेर के सेठ राजमल जी, मानकचन्द जी चाँदीवाल की ओर से ब्रह्मचारी विद्याधर जी की भव्य बिन्दोरी का जुलूस निकाला गया। जो खजाना गली, सरावगी मोहल्ला से गोधागवाड़ी होते हुए दरगाह बाजार, लाखन कोटड़ी से नया बाजार चौपड़ और वहाँ से आगरा गेट होते हुए सोनी जी की नसियाँ पहुँचा था।

     

    तीसरे दिन २७-०६-१९६८ को अजमेर के सेठ पूसालाल जी गदिया परिवार की ओर से भव्य जुलूस के रूप में ब्रह्मचारी विद्याधर जी की शोभायात्रा नया धड़ा पंचायती मन्दिर सरावगी मुहल्ला से घी मण्डी गेट होता हुआ नया बाजार चौपड़, गोल प्याऊ, पुरानी मण्डी, चूड़ी बाजार, पृथ्वीराज मार्ग से होता हुआ सेठ साहब सोनी जी की नसियाँ पहुँचा था।

     

    चौथे दिन २८-०६-१९६८ को अजमेर के सेठ माँगीलाल जी रिख़बदास जी बड़जात्या परिवार ने सरावगी मोहल्ला से उमराव जी स्कूल के पास से ब्रह्मचारी विद्याधर जी की भव्य शोभायात्रा निकाली। यह शोभायात्राघी मण्डी गेट से नया बाजार चौपड़ होते हुए आगरागेट से सोनी जी की नसियाँ पहुँचा।

     

    पाँचवें दिन २९-०६-१९६८ को बिन्दोरी का जुलूस निकालने के लिए केसरगंज अजमेर की जैसवाल दिगम्बर जैन समाज ने भव्य तैयारियाँ की और केसरगंज दिगम्बर जैन मंदिर से दिगम्बर जैन जैसवाल पंचायत ने निकाला जिसमें ७ हाथी बुलाये गए थे। जिसमें से ३ हाथी सर्कस के थे और ४ हाथी जयपुर से बुलाये गए थे जो विशेष आकर्षण के केन्द्र थे। इसमें ६ हाथियों पर केसरगंज के श्रेष्ठीगण बैठे थे और अन्तिम हाथी पर ब्रह्मचारी विद्याधर जी शोभा बढ़ा रहे थे और जुलूस में युवा टोलियाँ नृत्यगान करते हुए चल रही थीं, समाज के श्रेष्ठीगण पंचरत्न लुटा रहे थे और १५-२० हजार जनता जुलूस में सम्मिलित थी इस भव्य शोभायात्रा में जुलूस के दोनों ओर रंग-बिरंगी ट्यूब लाईट से जुलूस को रोशन किया जा रहा था एवं ब्रह्मचारी विद्याधर जी सफेद धोती-दुपट्टा में सोने-चाँदी का मुकुट लगाये हुए थे। सुन्दर घुँघराले बाल, छोटी-छोटी दाढ़ी-मूछ, बड़ी-बड़ी आँखे, गोरे चेहरे को देखकर नगर निवासी सुसज्जित हाथी पर बैठे ब्रह्मचारी विद्याधर को महाराजा समझ रहे थे। उनके पीछे पण्डित विद्याकुमार सेठी और विद्याधर के बड़े भाई (उसी वक्त नयाबाजार में जब जुलूस था तब सदलगा से आए थे वे मराठी टोपी लगाए हुए बैठे थे।) यह जुलूस केसरगंज से गवर्नमेन्ट कॉलेज से होता हुआ गोल-चक्कर पड़ाव से बढ़ते हुए मदार गेट, चूड़ीबाजार, नयाबाजार, आगरा गेट होते हुए सोनी जी की नसियाँ पहुँचा। इस बिन्दोरी की चर्चा दैनिक अखबारों में भी छपी।

     

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    ३०-०६-१९६८ को जुलूस प्रातः ७:३० बजे से सरावगी मुहल्ला से घी मण्डी गेट होते हुए नया बाजार चौपड़, आगरा गेट से सोनी जी की नसियाँ पहुँचा। इसमें ९ हाथी, ११ घोड़े, ११ बग्घियाँ, ५ ऊँट, ७ बैण्ड टोलियाँ, ५ ढोल-नगाड़े टोलियाँ, शोभायात्रा में शोभा बढ़ा रहे थे चूँकि पाँच दिनों से अजमेर नगर में भव्य दिगम्बर मुनि दीक्षा का प्रचार-प्रसार चल रहा था इस कारण अजमेर नगर के जैन-अजैन, आबालवृद्ध, नरनारी हजारों की संख्या में सम्मिलित हुए। सबसे बड़े सुसज्जित हाथी पर सुसज्जित महावत हाथी को ईशारा दे रहा था उस हाथी पर सफेद धोती - दुपट्टा और चाँदी का गोल मुकुट पहने हुए गले में तरह - तरह की गोटे की मालाएँ जिनके गले में डली हुई थीं ऐसे युवा शुक्लवर्णी सुन्दर देहयष्टि के धारक ब्रह्मचारी विद्याधर जी आकर्षण के केन्द्र बने हुए थे।

     

    जुलूस कीड़ी की चाल के अनुसार चल पा रहा था क्योंकि युवाओं की टोलियाँ नृत्यगान में इतने मशगूल थे कि मानो स्वर्ग लोक से देव ही उतर आए हों। शहर के प्रत्येक घर के मुखिया और स्त्रियाँ उन्हें शगुन स्वरूप भेंट दे रहे थे और यात्रा मार्ग में जितने भी मकान थे सभी पर सैकड़ों की तादाद में जनमानस झाँकझाँक कर देख रहे थे। उनमें जैन समाज के लोग सम्बोधन देकर अभिनन्दन कर रहे थे-त्यागी जी, भैयाजी, ब्रह्मचारी जी, जय जिनेन्द्र, वन्दना और अपने मकान के छज्जों पर से ही उन्हें भेंट में मुद्रा पकड़ा रहे थे। भव्य मुमुक्षु विद्याधर जी धर्म वात्सल्य भाव से वीतरागी प्रसन्नता लिए हुए उनकी भेंट को हाथ बढ़ाकर स्वीकार रहे थे। इस जुलूस में अजमेर के जैन श्रेष्ठी वर्ग के अतिरिक्त नगर के गणमान्य नेता श्रेष्ठी वर्ग भी शोभा बढ़ा रहे थे और सम्भ्रांत अजैन बन्धुओं के द्वारा भी जगह-जगह पुष्प अर्पित किए जा रहे थे।

     

    अन्तिम बिन्दोरी एवं दीक्षा देखने के लिए प्रातः काल से ही अजमेर के बाहर से लोगों के आने का ताँता लगा हुआ था, जयपुर, दूदू, किशनगढ़, कुचामन सिटी, रूपनगढ़, मौजमाबाद, नरायना, फुलेरा, दादिया, नसीराबाद, ब्यावर, पीसागंन, जेठाना, बीर, विजयनगर, गुलाबपुरा, चापानेरी, भीलवाड़ा, केकड़ी, सरवाड़ आदि स्थानों से हजारों की संख्या में लोग उपस्थित हो गए थे। सुबह से ही भीषण गर्मी अपना प्रभाव दिखा रही थी उसके बावजूद भी सड़क पूरी भरी हुई थी कहीं कोई पुलिस की व्यवस्था नहीं थी फिर भी आत्मानुशासक के इस दिव्य कार्यक्रम में सभी लोग आत्मानुशासित थे। पग-पग पर जयकारों के सिंहनाद से पूरा अजमेर शहर गुंजायमान हो रहा था।’’

    इस प्रकार अजमेर शहरवासियों ने ब्रह्मचारी विद्याधर जी की बिन्दोरियाँ निकालकर भव्यात्माओं को बता दिया था कि पतित से पावन, नर से नारायण, भक्त से भगवान, खुद से खुदा, इंसान से ईशु और आत्मा से परमात्मा कैसे बना जा सकता है ? देखो समझो और जिनशासन की शरण को ग्रहण करो। इसके बाद इन्दरचन्द जी पाटनी ने बताया

     

     

    दीक्षा पूर्व ब्र० विद्याधर जी ने किया शान्ति विधान

    "प्रात: काल से ही दीक्षा देखने वालों का तांता लगा हुआ था। धर्म के माता-पिता श्रीमान् हुकुमचन्द जी लुहाड़िया एवं उनकी धर्मपत्नी सुबह ब्रह्मचारी विद्याधर जी के लिए आकर्षक सोने-चाँदी के अष्ट अर्घ बनाकर लाए और विद्याधर जी के साथ शान्तिमण्डल विधान की पूजा अर्चना की। तत्पश्चात् प्रातः ११ बजे से भव्य शोभायात्रा प्रारम्भ हुई। शोभायात्रा की व्यवस्था हुकुमचन्द जी लुहाड़िया, कैलाशचन्द जी, स्वरूपचन्द जी, ब्रह्मचारी प्यारेलाल जी बड़जात्या ने की थी। समस्त शोभायात्रा का निर्देशन सर सेठ भागचन्द जी सोनी कर रहे थे। शोभायात्रा जैसे ही दीक्षा पाण्डाल में पहुँची तत्काल सेठ साहब, कजोड़ीमल जी अजमेरा, छगनलाल जी पाटनी, कैलाशचन्द जी पाटनी, महेन्द्र कुमार जी बोहरा, पण्डित विद्याकुमार जी सेठी, मा० ताराचन्द जी टोंग्या, मा० मनोहरलाल जी, पदमकुमार जी बड़जात्या आदि भक्त लोग मुनि ज्ञानसागर जी महाराज को साथ लेकर आए। तभी पाण्डाल में जयकारों का गुंजायमान प्रारम्भ हो गया।

    कार्यक्रम का संचालन पण्डित विद्याकुमार जी सेठी अजमेर ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंगलाचरण पण्डित चम्पालाल जी जैन विशारद, नसीराबाद ने किया। तत्पश्चात् प्रभुदयाल जी कोविद् जी ने इस सुअवसर पर स्वरचित दीक्षा मंगलगान प्रस्तुत किया-

     

    मंगल-गान

    (तर्ज-खिले हैं सखी आज फुलवा मनके, चित्र-गृहस्थी)

     

    बजे हैं देखो साज धरती गगन के, चले हैं मुनिराज दुलहा बनके।।टेक।।

    धन्य हैं विद्याधर ब्रह्मचारी, जिन्होंने दीक्षा निर्ग्रन्थ धारी,

    नग्न दिगम्बर, दूल्हा बनकर, शिव को वरने की है तैयारी।

    खिले हैं देखो आज फुलवा मनके, चले हैं मुनिराज०॥१॥

     

    श्री मल्लप्पा के सुत प्राण प्यारे, मात श्रीमन्तीजी के दुलारे,

    गाँव सदलगा, जन्म लीना, बालपने ही भाव धर्म के धारे।

    सम्मुख लिया शील आचार्य रतन के, चले हैं मुनिराज०॥२॥

     

    शान्तिनाथ और अनन्तनाथा, श्री महावीर हैं जिनके भ्राता,

    बहन सुवर्णा, अरु शान्ता, तोड़ दिया है अब सबसे ही नाता।

    हुए हैं ये तो आज वासी वनके, चले हैं मुनिराजः।।३।।

     

    ज्ञान का अर्जन करने के ताईं, शरण गुरु ज्ञानसागर की पाई,

    मन इन्द्रिय पर, पूर्ण विजयकर, मुनिवर दीक्षा की भावना भाई।

    सपन हुए साँच अब जीवन के, चले हैं मुनिराजः॥४॥

     

    समता सखी ने उबटन लगाया, शान्ति सलिल से न्हवन कराया, 

    रागद्वेष का मैल हटाया, मन और आतम को पावन बनाया।

    हटाई हैं कषाय भी चुन-चुनके, चले हैं मुनिराजः।।५ ।।

     

    पंच महाव्रत जामा सजाके, दस लक्षण का मोड़ बँधाके,

    रत्नत्रय का पहन के गहना, अन्तर अंगों को खूब सजाके।

    हुए हैं ये सवार चारित रथ पे, चले हैं मुनिराज०॥६॥

     

    आतम रंग की मेहेंदी रचाई, समिति, गुप्तियाँ गायें बधाई,

    बारह भावन नाचे छन-छन, सोला कारण बारात सजाई।

    लिये हैं तलवार तप की तनके, चले हैं मुनिराज०॥७॥

     

    शुक्ल ध्यान की अग्नि जलाके, होम करेंगे निज कर्म खपाके,

    शुभ बेला में मुक्ति रमा से, ब्याह रचेंगे शिवमहल जाके।

    करेंगे जय-जयकार त्रिभुवन इनके, चले हैं मुनिराज०॥८॥

     

    चारित चक्रवर्ती थे शान्तिसागर, वीर शिरोमणि थे वीरसागर,

    चालक हैं जो चारित रथ के, तीजी पीढ़ी में गुरुवर शिवसागर।

    उनके शिष्य 'ज्ञान' प्रियजन मनके, चले हैं मुनिराज०॥९॥

     

    ज्ञान की मूरत हैं दीक्षा गुरुवर, चारित्र मूरत हैं विद्यासागर,

    इनका संयम होगा अनुपम, होगी जहाँ में इनकी कीर्ति अमर।

    करेंगे यश गान सुर नर इनके, चले हैं मुनिराज०॥१०॥

     

    साढ़ सुदी पंचमी 'प्रभु'आई, साल दो हज्जार पच्चीस माईं,

    पहला अवसर दीक्षा मुनिवर, नगर अजयमेरु इतिहास भाई।

    वरण लिखे जायेंगे सुवरन के, चले हैं मुनिराजः॥११॥

     

    ब्र० विद्याधर जी के अग्रज ने रुलाया सबको

    "मंगलाचरण के तुरन्त पश्चात् ब्रह्मचारी विद्याधर जी के गृहस्थ अवस्था के बड़े भाई श्री महावीरजी जैन अष्टगे, सदलगा को बुलाया गया और उनसे ब्रह्मचारी विद्याधर जी ने मोक्षमार्ग की ओर बढ़ने के लिए एवं सांसारिकता से मुक्ति पाने के लिए आत्मसाधना व आत्मकल्याण के लिए मुनि दीक्षा ग्रहण करने हेतु अनुमति का निवेदन किया और जाने-अनजाने में भूलवश हुई त्रुटियों के लिए बड़े भाई व परिवारजनों से सहृदयता से क्षमायाचना की तब अग्रज श्री महावीर जी अष्टगे भाव विह्वल हो गए, आँखों में पानी भर गया और भारी मन से बोले- 'मैं अनुमति प्रदान करता हूँ।' यह दृश्य देखकर सभी दृष्टा श्रावकजन भी भावविह्वल हो गए। सभी की आँखों से आँसू बहने लगे। जयकारों के नाद से आकाश गुंजायमान हो उठा।" इस प्रकार बताते हुए इन्दरचन्द जी पाटनी भाव विह्वल हो उठे और रूमाल से आँसू पौंछने लगे। फिर आगे बताया

     

    ब्र० विद्याधर जी ने किया तृतीय केशलोंच

    “तत्पश्चात् ब्रह्मचारी विद्याधर जी ने गुरु महाराज श्री ज्ञानसागर जी के चरणों में नमोस्तु करते हुए दीक्षा हेतु आत्म निवेदन किया और श्री फल चढ़ाकर आशीर्वाद प्राप्त किया। मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने पिच्छी उठाकर ब्रह्मचारी विद्याधर जी के सिर पर लगाकर आशीर्वाद प्रदान किया। तत्पश्चात् ब्रह्मचारी विद्याधर जी ने 'नमः सिद्धेभ्यः' बोलकर केशलोंच शुरु कर दिया। यह उनका तृतीय केशलोंच था। इससे पहले प्रथम केशलोंच किशनगढ़-मदनगंज में किया। द्वितीय केशलोंच दादिया में किया। तृतीय केशलोंच जब वो मंच पर कर रहे थे तो खटखट की आवाज सुन श्रोतागण सिसक रहे थे। तभी संचालक महोदय पण्डित विद्याकुमार जी सेठी ने सर सेठ भागचन्द जी सोनी को उद्बोधन हेतु बुलाया, तब सेठ साहब बोले- 

     

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    सर सेठ भागचंद जी सोनी का प्रासंगिक उद्बोधन

    ‘सर सेठ भागचन्द जी सोनी ने मुनि ज्ञानसागर जी महाराज को नमोस्तु करके बोलना शुरु। किया-‘ब्रह्मचारी विद्याधर जी युवावस्था में होने व पंचमकाल की भौतिकता के आकर्षण के बावजूद। पंचेन्द्रिय विषयों को त्यागकर वीतरागता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। दिगम्बर साधु बनना बड़ा साहसिक कदम हैं। धन्य हैं, ऐसी भव्य आत्माओं के दर्शन कर हम भी धन्य हो गये, किन्तु कुछ लोगों को इस उम्र में दीक्षा लेने व सफलता हासिल करने में संदेह-सा अनुभव हो रहा है। मैं उनके संदेह को लेकर मुनि ज्ञानसागर जी महाराज के पास पहुँचा और उनको सारी स्थिति से अवगत कराया, तब गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज बोले- ‘हमने सब प्रकार से परीक्षण कर लिया है और मेरी परीक्षा में ‘विद्याधर खरा उतरा है अतः 'विद्याधर' दीक्षा ग्रहण करने योग्य है।' यह सुनने के बाद हमने विचार किया और समाज वालों से चर्चा की, विद्वानों से चर्चा की तो सभी ने मुक्त कण्ठ से समर्थन किया। इसके बाद हमने ब्रह्मचारी श्री विद्याधर जी की परीक्षा की, ये भोजन कैसे लेते हैं, सामायिक कैसे करते हैं, कितना सोते हैं, कितना पढ़ते हैं, लौकिक जनों से कितना सम्पर्क रखते हैं, गुरु के प्रति कितना समर्पण भाव है, धर्म का कितना ज्ञान है, वैराग्य कितना मजबूत है, क्या-क्या त्यागा है ? आदि हर प्रकार से मैंने स्वयं व अन्य से परीक्षा करवाई। तो विद्याधर जी हर परीक्षा में खरे उतरे व १०० में से १०० अंक प्राप्त किए। ऐसे मनोज्ञ, वीतरागता व वैराग्य से ओतप्रोत भव्य मुमुक्षु को कौन दीक्षा ग्रहण करने से रोक सकता था और आज आप सबके समक्ष वह क्षण उपस्थित है। मैं इसकी जवाबदारी लेता हूँ। इनकी दीक्षा के उपरान्त किसी को भी कोई शिकायत नहीं मिलेगी। आप देखेंगे परमपूज्य मुनि श्री आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी की परम्परा को श्रेष्ठ ऊँचाईयों पर ले जायेंगे, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।' सेठ जी के उद्बोधन में कई बार उपस्थित जनसमुदाय ने उल्लसित होकर तालियाँ बजाकर हर्ष प्रकट किया। अन्त में तालियाँ बजाते हुए जयघोष करके समर्थन किया। इसके बाद और भी विद्वानों का उद्बोधन हुआ।

     

    सबने देखा अलौकिक चमत्कार

    “लगभग डेढ़ घण्टे में ब्रह्मचारी विद्याधर जी ने केशलोंच पूर्ण किया, उसके बाद ज्ञानसागर जी मुनि महाराज ने दीक्षा के संस्कार किए और विद्याधर जी को वस्त्र त्याग करने के लिए कहा, तत्काल ब्रह्मचारी जी खड़े हुए और धोती-दुपट्टा उतारे और लंगोट खोलकर जैसे ही हवा में उछाली तभी चमत्कार हो गया बहुत जोरों से बादलों के गरजने की आवाज आई, मानों स्वर्गलोक के देव बैण्ड-बाजे बजाने लगे हों और जोरदार बारिश शुरु हो गयी। लगभग ५० हजार के आस-पास जन समुदाय जहाँ गर्मी से हाल-बेहाल हो रहा था, घनघोर बारिश के चलते शीतलता का अनुभव करने लगा। ५-१० मिनट के लिए केवल दीक्षा पाण्डाल व उसके आस-पास बारिश बरसती रही। यह चमत्कार देख जनता ने जयकारों से आकाश व समस्त वातावरण को गुंजायमान कर दिया। ऐसा लग रहा था मानो देवताओं और जनता के मध्य भक्ति प्रदर्शन की होड़-सी लग गई हो। १० मिनट बाद यकायक पानी बरसना बंद हो गया, हवायें चलने लगीं और धूप निकल आई। सभी को मन ही मन एहसास हुआ कि यह चमत्कारी मुनि दीक्षा है, जो नए इतिहास को लिखेगी तथा जिसकी संयम की सुगन्धी वीतरागता का पराग लिए दशों दिशाओं में फैलेगी। चतुर्थ काल का आभास करायेगी।"

     

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    विद्याधर बने विद्यासागर

    "जैसे ही जयकारों का नाद रुका उसके बाद गुरुज्ञानसागर जी महाराज ने नवदीक्षित मुनि को संयम के उपकरण पिच्छी-कमण्डलु प्रदान किए और नामकरण संस्कार किया। बोले- 'अभी तक आप लोग ब्रह्मचारी को विद्याधर जी कहकर बुलाते थे अब यह संसार का नाम त्याग किया जाता है और आज से पूरी दुनियाँ इन्हें मुनि विद्यासागर जी के नाम से पहचानेगी।' जैसे ही नामकरण हुआ तभी सर सेठ भागचन्द जी ने गुरु-शिष्य की जयकार लगवायी-परमपूज्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की... जय, परमपूज्य मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज की... जय-जय-जय... पूरा पाण्डाल जयकारों के नाद से पुनः गूँज उठा। उसके बाद धर्म के माता-पिता हुकुमचन्द जी लुहाड़िया ने नवदीक्षित मुनि को नमोस्तु कर जिनवाणी-शास्त्र भेंट किया। उसी समय वैराग्य के इस महाप्रभावी दृश्य को देखकर किशनगढ़ के शान्तिलाल जी (सिराणा वाले) जिनकी ४२ वर्ष की उम्र और टेलीफोन एक्सचेंज अजमेर में सेवारत थे को वैराग्य उत्पन्न हो गया और वो गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा माँगने लगे। तब ज्ञानसागर जी महाराज ने उनकी गार्हस्थिक परिवेश देखकर उनको घर पर रहकर साधना की शिक्षा दी। तभी उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत ले लिया और बाद में ज्ञानसागर जी महाराज एवं मुनि विद्यासागर जी महाराज के निर्देशन में साधना करते रहे। प्रतिमाएँ ग्रहण कर। अंत में समाधिमरण किया।"

     

    नवोदित मुनि विद्यासागर जी ने की अमर घोषणा

    "एक अद्भुत दृश्य हमारी आँखों ने देखा-जब नवदीक्षित मुनि पूज्य श्री विद्यासागर जी ने गुरु श्री ज्ञानसागर जी महाराज को नमोस्तु किया तब मुनि श्रीज्ञानसागर जी महाराज ने भी पिच्छी उठाकर प्रति नमोस्तु किया। इसके पश्चात् मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज को संक्षिप्त में बोलने को कहा गया, तब मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज मात्र इतना बोले- ‘गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी मुनि महाराज की जय, मैंने अपने आत्म कल्याण हेतु यह दीक्षा ग्रहण की है और गुरु महाराज ने मुझे दीक्षा देकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। मैं गुरु महाराज को विश्वास दिलाता हूँ कि भगवान महावीर की वाणी को जैसा आचार्य कुन्दकुन्द महाराज आदि ने बताया है वैसा ही मोक्षमार्ग स्वीकार करके उस पर मैं निर्दोष रीति से चलूँगा, आपके दिए मुनि पद में किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगने दूँगा। गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी मुनि महाराज की... जय।' इसके पश्चात् मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज अपने संघ सहित सोनी जी की नसियाँ प्रस्थान कर गए।" इस तरह अजमेर जिले के दर्शक आज तक उस दृश्य को भूले नहीं हैं। इसी प्रकार व्यावर के पदम गंगवाल ने दीक्षा के समय बारिस के चमत्कार के बारे में बताया-

     

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    लंगोट के उछालते ही सुगन्धित वर्षा हुई

    “जैसे ही विद्याधर जी ने लंगोट उतारकर हवा में उछाली भयंकर गर्मी में ४०-५० हजार दर्शकों की साक्षी में चमत्कार हो गया। घनघोर वर्षा शुरु हो गई १० मिनिट तक वर्षा होती रही, जिससे पूरा वातावरण शीतल सुगन्धमय बन गया और चंदन मिश्रित अष्टांग धूप की सुगन्ध सर्वत्र फैल गई, १० मिनिट बाद बादल कहाँ चले गए पता नहीं चला। शाम को सर्वत्र चर्चा फैल गई मात्र पण्डाल के ऊपर ही वर्षा हुई और उसकी सुगन्ध सबके दिलोदिमाग में बस गई। जिसको आज तक अजमेर जिले के निवासी भूल नहीं पा रहे हैं।" इस प्रकार और भी लोगों ने आँखों देखा वर्णन कर कई विशेषताएँ बतलाकर गुरु गौरव से हृदय को आनन्दित कर दिया। दादिया के श्रीमान् हरकचंद जी झाँझरी ने १९९४ में मुझे अन्तिम बिन्दोरी के बारे में लिखकर दिया था। वह मैं आपको बता रहा हूँ क्योंकि आप तो निस्पृही साधक थे आपने किसी को महोत्सव के बारे में पूछा कि नहीं मुझे ज्ञात नहीं, इसलिए आप तक प्रेषित कर रहा हूँ-

     

    निस्पृही दीक्षार्थी विद्याधर जी

    “दीक्षा से पहले ५ रोज तक शाम को अंधेरा होने के बाद बिन्दोरी निकाली गई थीं। आखरी बिन्दोरी में सेठ साहब भागचंद जी सोनी ब्रह्मचारी जी से अरज करी कि अन्तिम बिन्दोरी में आप सेरवानी मोड़तुर्रा लगाकर राजशाही वेशभूषा में हाथी पर विराजमान होवें तो बिन्दोरी की शोभा बहुत बढ़ जायेगी। तब ब्रह्मचारी विद्याधर जी बोले- ‘जब हम पूरे कपड़े ही छोड़ रहे हैं तो कपड़े पहनें ही क्यों ?' तो सेठ साहब ने गुरु महाराज से कह दिया तो ब्रह्मचारी जी मौन रहे किन्तु उन्होंने वेशभूषा नहीं पहनी। तो फिर सर सेठ भागचंद जी सोनी अपने हबेली से सोने-चाँदी का मुकुट लाकर बड़ी नम्रता से बिन्दोरी के वक्त ब्रह्मचारी जी के सिर पर लगा दिया। ब्रह्मचारी जी सफेद धोती-दुपट्टा पहने हुए ही हाथी पर बैठे। २ कि.मी. लम्बा जुलूस बिन्दोरी का था। ऐसा जलसा किसी भी धर्म का इतना बड़ा कभी भी नहीं निकला।" इसी तरह दीपचंद जी छाबड़ा नांदसी वालों ने आँखों देखा वर्णन सुनाया-

     

    बिन्दोरियों के जुलूस में सेठ साहब का उत्साह

    "मैं २९ जून १९६८ के दिन अजमेर सोनी जी की नसियाँ गया था। सायं लगभग ७:३० बजे ब्रह्मचारी विद्याधर जी सफेद-धोती-दुपट्टा पहने हुए थे और उनके गले में गोटे की माला श्रावकों ने डाली और श्रीफल लेकर गुरु महाराज के पास आए। ब्रह्मचारी जी ने गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज को बैठकर पंचांग नमोस्तु किया। गुरुदेव ने मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दिया। तभी पीछे से सर सेठ भागचंद जी सोनी, कजोड़ीमल जी अजमेरा, छगनलाल जी पाटनी, माधवलाल जी गदिया आदि गणमान्य जन उपस्थित हुए और सेठ साहब ने गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज से कहा- हम लोग भावी मुनि, मनोज्ञ ब्रह्मचारी विद्याधर जी को बिन्दोरी के लिए ले जाना चाहते हैं आपकी अनुमति एवं आशीर्वाद चाहिए। तब गुरुवर ज्ञानसागर जी बोले- ‘३-४ दिन से बिन्दोरियाँ निकाल रहे हो क्या अभी भी इच्छा पूरी नहीं हुई?' तब सेठ साहब बोले-गुरु महाराज! महाभाग्यवान् राजकुमार के समान तेजस्वी विद्याधर जी को देखकर हम लोगों के भाव अंतरंग से गीले हो रखे हैं। भावनाएँ हृदय में समा नहीं रहीं हैं। इसलिए पंच महाव्रत लेने वाले त्यागी की महिमा ५ दिन तक सभी को। दिखाना चाहते हैं और आज पाँचवा दिन है आशीर्वाद दीजिए सानंद संपन्न हो, तब गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने विद्याधर जी के सिर पर तीन बार पिच्छिका रखकर आशीर्वाद दिया और सेठ जी आदि पर भी पिच्छिका रखकर उत्साहवर्धन किया। इसी तरह अजमेर के आपके अनन्य भक्त श्रीमान् कैलाशचंद पाटनी ने भी अपनी आँखों से देखा वाकया मुझे सन् १९९४ अजमेर में सुनाया। जो इस प्रकार है।

     

    नवदीक्षित मुनि को गुरु का प्रथम सम्बोधन

    "३० जून का वह दिन अन्य दिनों की अपेक्षा काफी गरम था। सुबह से ही लू के थपेड़े लग रहे थे। फिर भी हजारों की संख्या में जैन-जैनेतर समूह उमड़ा जा रहा था। पाण्डाल खचाखच भरा हुआ था। इस कारण पाण्डाल से दोगुनी जनता बाहर गर्मी में खड़ी थी लेकिन सभी बड़ी उत्सुकता से सारे कार्यक्रम को देख रहे थे। सभी की नजर उस महान् निर्ग्रन्थ तपस्वी के दर्शन के लिए लालायित हो रही थीं, जो वहाँ आकर बाल ब्रह्मचारी युवावस्था में मोक्षमार्ग पर आरूढ़ होने के लिए नग्न दिगम्बरी दीक्षा लेने वाले थे। जैसे ही गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज मंच पर आए। लोगों ने जय-जयकार करना शुरु कर दिया। भीड़ में हलचल मच गई। एक क्षीणकायज्ञानमूर्ति जिसके मुख पर असीम सौम्य और तेज टपक रहा था और जिसके हाथ प्रत्येक प्राणी को मंगलमयी आशीर्वाद के लिए उठ रहे थे। इतनी भयंकर गर्मी व शोरगुल के बावजूद भी गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी शान्तचित्त होकर अपने में ही लीन होकर बैठे थे। दीक्षा के दृश्य को देखकर जनता विचलित हो उठी। सभी की आँखे गीली हो उठी थीं। दीक्षा के बाद गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने नवदीक्षित युवा मुनिराज श्री विद्यासागर जी महाराज को महत्त्वपूर्ण अमृत सम्बोधन दिया- अब तुम्हें आत्मकल्याण के लिए आगे देखकर बढ़ते जाना है। जो जीवन बीत चुका है उसके बारे में क्षणमात्र भी विचार नहीं करना है। मुनि का धर्म है ऊपर देखने का क्योंकि उसका लक्ष्य है मोक्ष को प्राप्त करने का। अत: मोक्ष की ही साधना करना है। जबकि गृहस्थ को नीचे देखकर आगे बढ़ना है क्योंकि अभी सांसारिक अवस्था है। गृहस्थ ने अपने से बड़ों को देखकर ईष्र्या की और नीचे वालों से घृणा की तो वह अपना कल्याण नहीं कर पाता। अत: सदा अपने व्रतों का ध्यान रखना। जिस उत्साह और विशुद्धि से मोक्षमार्ग में कदम रखा है। ऐसा ही उत्साह और विशुद्धि बनाए रखना। तो कल्याण अवश्यंभावी है।" इस तरह मुनि विद्यासागर जी के निमित्त से आपश्री का अमृत प्रवचन सभी को सुनने को मिला। दीक्षा के प्रसंग में एक विशेष बात और ज्ञात हुई। जो आपके आशीर्वाद के चमत्कार की हैं। यद्यपि आप वह बात जानते हैं, किन्तु आपको बताकर मुझे अपार खुशी हो रही है कि मेरे गुरुनाम गुरु की साधना कितनी अतिशयकारी थी। इस सम्बन्ध में अजमेर की आपकी अनन्य भक्त ब्रह्मचारिणी बाई कंचन माँ जी ने एक। संस्मरण सुनाया था। वह लिख रहा हूँ-

     

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    गुरुनाम गुरु ज्ञानसागर जी के आशीर्वाद का चमत्कार

    "विद्याधर जी की दीक्षा के समय अजमेर की समाज वालों ने १० हजार व्यक्तियों की रसोई बनायी थी, किन्तु बाहर से आने वालों की भीड़ ज्यादा बढ़ गई। २०-२५ हजार लोग आ गए और बढ़ती जा रही थी। तब कमेटी वाले घबड़ा गए और वो लोग गुरु महाराज ज्ञानसागर जी के पास गए और अपनी समस्या बताई कि जनता तो बढ़ती ही जा रही है। हम लोगों की इज्जत दाँव पर लग गई है। गुरुदेव भोजन कम न पड़ जाए, आशीर्वाद दीजिए। तब गुरु ज्ञानसागर जी महाराज बोले- एक थाली में रसोई परोसकर कपड़े से ढाँककर हमारे पास रख दो और एक व्यक्ति को शुद्ध वस्त्र पहनाकर बैठा दो। कमेटी वालों ने ऐसा ही किया और उस दिन पूरी जनता ने भोजन कर लिया किन्तु रसोई खत्म नहीं हुई। यह था गुरु महाराज का चमत्कार।" इस प्रकार अनेकों लोगों ने तरह-तरह से आँखों देखी अनुभूतियाँ मुझे बताईं। ऐसे भावलिंगत्व के धनी गुरु-शिष्य के चरणों में अपनी विनयांजली अर्पित करता हआ...

     

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    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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    JAIN SAKSHAM

    · Edited by JAIN SAKSHAM

      

    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

    नमोस्तु गुरु भगवन

    हम पर भी अपनी कृपा कीजिये

    👏👏👏👏👏👏

     

     

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