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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ७१ गुरु ने कहा ब्रः विद्याधर जैनधर्म की बड़ी भारी निधि

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    १२-०३–२०१६

    तलवाड़ा (बाँसवाड़ा राजः)

    जन्मकल्याणक महोत्सव

     

    अनुभवी दूरदृष्टा श्रमण संस्कृति प्रहरी गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में अनन्त नमस्कार...

    हे गुरुवर! दादिया में अजमेर के विद्वान् श्रीमान् पण्डित विद्याकुमार सेठी, धीमान् श्री छगनलाल जी पाटनी, सर सेठ साहब श्रीमान् भागचंद सोनी जी, कजौड़ीमल अजमेरा, कैलाश पाटनी आदि ने आपसे ब्रह्मचारी विद्याधर जी की मुनि दीक्षा को टालने के लिए निवेदन किया था। तब आपने जो भाव व्यक्त किए थे वो आज सत्य होते देख रहा हूँ। आपके वचनों को सुनने वाले दादिया के हरकचंद झांझरी जी ने हू-ब-हू १९९४ अजमेर में लिखकर दिए थे, वह स्मृति आपको करा रहा हूँ....

     

    गुरु ने कहा ब्र. विद्याधर जैनधर्म की बड़ी भारी निधि

    "यहाँ दादिया में ब्रह्मचारी जी को सीधे मुनि दीक्षा देने का टायम निश्चित हो गया था। तो अजमेर से कई विद्वान् पण्डित जी, श्रीमान्-धीमान् सेठ साहब ने आकर ज्ञानसागर जी से निवेदन किया कि इतनी छोटी उम्र में सीधे मुनि दीक्षा देना उचित नहीं रहेगा। पहले क्षुल्लक दीक्षा देवें। तब गुरु महाराज ज्ञानसागर जी, सर सेठ साहब भागचंद जी सोनी से बोले- 'मेरी काफी उम्र हो गई है और ब्रह्मचारी जी को पूरा परख लिया है। मेरी उम्र संघ में ही गुजरी है। अत: अपने अनुभव से यह कार्य कर रहा हूँ। यह ब्रह्मचारी जी मुनि बनकर धर्म का बहुत नाम उजागर करेंगे। यह जैनधर्म की बहुत भारी निधि है, यह कोई साधारण त्यागी नहीं है इसलिए सीधे मुनि दीक्षा ही दी जायेगी।' यह गुरु महाराज का निर्णय सुनकर वो सभी लोग चले गए। गुरु महाराज दादिया से १४-१५ जून १९६८ को विहार कर तिहारी, श्रीनगर, बीर ग्राम होते हुए अजमेर २० जून १९६८ को पहुँचे।" इस तरह आप अजमेर शहर में दीक्षा देने के लिए पहुँचे। आपकी दृढ़ता को मैं नमन् करता हूँ और आपकी वचन सिद्धि का चमत्कार साक्षात् देख रहा हूँ। आपको क्या कहूँ-ज्योतिषाचार्य या निमित्तज्ञानी, सिद्धवक्ता या महासाधक आप जो भी हैं, आपश्री के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करता हुआ...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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