११-०३–२०१६
तलवाड़ा (बाँसवाड़ा-राजः)
गर्भकल्याणक महोत्सव
निज आन्तर साम्राज्य को विस्तारित करने वाली विद्याओं कलाओं के ज्ञाता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के ज्ञानाचरण को नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु...
हे प्रशस्त ज्ञानी गुरुवर ! नसीराबाद से आप पुनः दादिया ग्राम गए तब वहाँ पर विद्याधर जी के विधानपूजा करने के भाव हुए। इस सम्बन्ध में आपके भक्त हरकचंद जी झाँझरी ने १९९४ में मुझे एक संस्मरण लिखकर दिया। जो मैं आपको लिख रहा हूँ
ब्रः विद्याधर जी ने की सिद्धचक्र महामण्डल विधान-पूजा
"हमारे गाँव दादिया में गुरु महाराज ज्ञानसागर जी दूसरी दफा २० मई १९६८ को पधारे और लगभग १५ जून १९६८ तक रहे। तब ब्रह्मचारी विद्याधर जी के भाव हुए और उन्होंने मुझसे कहा सिद्धचक्र मण्डल विधान-पूजा करना चाहता हूँ। तब गुरु महाराज से समाज ने आशीर्वाद लिया और सिद्धचक्र महामण्डल विधान पूजा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। ब्रह्मचारी विद्याधर जी स्वयं उस विधान में सम्मिलित हुए और दादिया के सभी लोग उसमें बैठे। सवा लाख जाप हुआ। ब्रह्मचारी जी मधुर वाणी में पूजा पढ़ते और अर्घ चढ़ाते थे। सभी को उनके साथ पूजा करने में बहुत आनन्द आया। ब्रह्मचारी जी उस समय भी अपना अध्ययन-मनन बराबर समय पर करते रहते थे। टायम(टाईम) के बड़े दृढ़ थे। सब कार्य टायम पर ही करते थे। और पूरी पूजा करने के बाद आहार करने जाते थे। उनकी शुद्धि-विशुद्धि-उत्साह-भक्ति-विवेक पूर्ण पूजा अनुष्ठान देखकर हम लोगों को लगने लगा था कि ब्रह्मचारी विद्याधर जी महान् ज्ञानी मुनि बनेंगे। पूजा के बाद ब्रह्मचारी जी के साथ गुरु महाराज के पास जाकर अर्घ चढ़ाते थे। गुरु महाराज आशीर्वाद देते थे।" इस प्रकार ब्रह्मचारी विद्याधर जी एक सच्चे श्रावक की क्रियाओं का पालन करते थे। उनकी चर्या क्रिया ज्ञान को देखकर वहाँ की समाज प्रभावित होती थी। ऐसे त्यागी को घर पर आहार कराने के लिए लोग तरसते थे, आहार कराकर गौरव का अनुभव करते थे। ऐसे आदर्शों को नमस्कार करता हूँ...
आपका
शिष्यानुशिष्य