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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ७ महापुरुषत्व के लक्षण

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    १३-११-२०१५

    भीलवाड़ा (राजः)

     

    महाभाग्यवान् महापुरुषार्थी गुरुवर श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज के पावन चरण कमलों में त्रिकाल त्रिभक्तिपूर्वक नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु…

    हे दयानिधे! जैसे कोई कोई भाग्यवान् व्यक्ति अपने भाग्य को जन्म से ही साथ लाता हैं ऐसे ही विद्याधर भी अपने भाग्य को साथ लेकर आये थे। यह बात बड़े भाई महावीर जी की इस बात से ज्ञात होती है-

     

    महापुरुषत्व के लक्षण

    "विद्याधर बड़ा ही भाग्यवान् था। माँ बताती थी कि विद्याधर जब गर्भ में था तब तीर्थयात्रा पर गए थे और जन्म लेने के बाद लगभग डेढ़ वर्ष का हुआ तब भी सपरिवार भारत वर्ष के प्रसिद्ध तीर्थ गोम्मटेश्वर बाहुबली श्रवण बेलगोला जिला हासन (कर्नाटक) की यात्रा पर गए थे। उस वक्त एक घटना घटी। माता-पिता पूजा करने बैठ गए तब नटखट विद्याधर घुटने के बल हाथों को टेककर गोम्मटेश्वर के चरणों की तरफ बढ़ा एवं चरणों के पास जाकर लुढ़क गया मानो साष्टांग नमस्कार कर रहा हो और स्वयं ही उठकर बैठ गया और ऊपर देखकर हाथ उठाता, तो पास में बैठे लोग बोले यह बच्चा कितना होनहार है।”

     

    इस तरह अनेकों ऐसी बातें विद्याधर के महापुरुषत्व के लक्षण को द्योतित करती हैं। इसी तरह मल्लप्पाजी की सुपुत्रियाँ ब्रह्मचारिणी शान्ताजी एवं सुवर्णाजी ने भी इस प्रसंग में संस्मरण लिखकर भेजा जो इस प्रकार है-

     

    महापुरुष बाहुबली के संस्कारों ने पैदा किया महापुरुषत्व

    “भगवान् की भक्ति पूजा के भाव परिणामों की निर्मलता एवं शुभ क्रियाओं की उत्सुकता आदि आश्चर्यजनक परिणाम देती है तभी तो 'भावना भव नाशिनी होती है' यह कहा गया है। एक बार सदलगा गाँव के लोगों ने आकर माँ से कहा कि विद्याधर सभी भाई-बहनों में सबसे सुन्दर है ऐसा क्यों? तब माँ ने जवाब दिया कि जब बालक विद्याधर गर्भ में आया था तब मेरे मन में श्रवण बेलगोल के भगवान् बाहुबली के दर्शन करने की तीव्र इच्छा हुई और पूजन-भक्ति करके आए तभी जो पुण्य संचय हुआ उसके परिणाम स्वरूप सुन्दर बालक उत्पन्न हुआ। जिसके पास जो होता है उसकी आराधना से हम वही प्राप्त कर सकते हैं। चूँकि बाहुबली शरीर की अपेक्षा से कामदेव थे और साधना की अपेक्षा से कठोर तपस्या करने वाले थे। तभी तो अपने भाई और पिता से पहले लक्ष्य को प्राप्त किया। उसी प्रकार बाहुबली की आराधना से माँ को सुन्दर पुत्र एवं दृढ़ साधक जो कि पिता एवं भाई से पहले मानव जीवन के लक्ष्य को जानने-पाने वाला पुत्र प्राप्त हुआ।”

     

    Antaryatri mahapurush pdf01_Page_032.jpg

     

    इस तरह महापुरुषत्व के लक्षण बचपन से ही प्रकट होने लगे इस सम्बन्ध में ब्रत बहिन सुश्री शान्ताजी, सुवर्णाजी ने एक संस्मरण और लिखकर भेजा-

     

    पूत के लक्षण पालने में

    “जब विद्याधर डेढ़ वर्ष के थे तब माता-पिता के साथ श्रवणबेलगोला की यात्रा पर गए थे उस समय यात्रियों में से किसी ने कहा कि तुम्हारा बेटा भगवान् जैसा मनोज्ञ और सुन्दर दिखता है उसे भगवान् के पास बैठा दो और जब ७-८ वर्ष के हुए तो एक बार आचार्यश्री अनन्तकीर्ति महाराज के संघ की आर्यिका विमलमती जी के दर्शन करते समय उन्होंने कहा विद्याधर तुम सचमुच में भगवान् जैसे दिखते हो, भगवान् बनोगे? तब विद्याधर बोले-'हाँ'। घर आकर विद्याधर माँ से बोले-मुझे आर्यिका माताजी ने कहा-भगवान् जैसे लगते हो, भगवान् बनोगे? तो हमने कहा-‘हाँ’ मैं भगवान् बनूंगा। यह सुनकर घर के सभी लोग प्रसन्न हो गए।” इस तरह बचपन के मुँह बोले भगवान् सचमुच में आचार्य भगवान् बन गए। उच्च सिंहासन पर आरूढ़ होकर सभी को बोधि प्रदान कर रहे हैं। ऐसे आचार्य भगवान के निर्माता गुरु के चरणों में शत-शत नमोस्तु...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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