0४–०३–२०१६
घाटोल (बासवाड़ा राजः)
जन्मकल्याणक महोत्सव
भवभव के नीरंध्र अज्ञान अंधकार को ज्ञानप्रभा से भेदने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में त्रिकाल प्रणति अर्पित करता हूँ...
हे गुरुवर! अब मैं नसीराबाद के कुछ संस्मरण आपको प्रेषित कर रहा हूँ| ब्र. विद्याधर जी आपके साथ-साथ जहाँ भी जा रहे थे वहाँ के लोग उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होते और उनकी मधुर बातों से शिक्षा लेते। विद्याधर की साधना ऐसी साधना थी जिसको देखकर हर कोई अचम्भित हुए बिना नहीं रहता था। आज जब नसीराबाद के किसी भी समाज जन से उस समय की बात करते हैं तो वो ब्र. विद्याधर के अनेकों संस्मरण सुनाते हुए नहीं थकते। कुछ एक प्रसंग आपको लिख रहा हूँ। नसीराबाद के प्रवीण गदिया जी ने बताया -
ब्र. विद्याधर जी ने पाप-पुण्य की समझाइस दी
"अप्रैल-मई दो माह नसीराबाद में मुनि ज्ञानसागर जी महाराज ने संघ सहित प्रवास किया। उनके साथ में बहुत सुन्दर ब्रह्मचारी विद्याधर भैया जी भी थे। नसीराबाद वालों को जब यह पता चला कि भैया जी कर्नाटक के हैं तो समाज के लोग और युवा लोग जो कभी मंदिर नहीं जाया करते थे। वे भी उनके दर्शन के लिए मंदिर जाने लगे थे, लेकिन ब्रह्मचारी जी अपनी क्रियाओं में दत्तचित्त रहते थे। किसी को भी मिलने का समय नहीं दिया करते थे। एक बार हम कुछ युवा लोग सामायिक के समय पर गए। तो वो कमरा बंद करके सामायिक कर रहे थे। हम लोगों ने खिड़की से झाँक कर देखा तो वो पूर्ण दिगम्बरावस्था में खड़े होकर सामायिक कर रहे थे। तब हमारे एक साथी ने जयकारा किया मुनि विद्याधर महाराज की जय और हम लोग वहाँ से चले गए। शाम को पुनः गए तो ब्रह्मचारी विद्याधर जी बोले-'दोपहर में आप लोगों ने ऐसा... जय बोला था। ऐसा बोलने में पाप लगेगा और मुनि ज्ञानसागर जी महाराज की जय बोलोगे तो पुण्य लगेगा।" इस प्रकार उनकी ज्ञान और साधना दोनों ही आगम के अनुसार चल रही थी। प्रवीण गदिया जी ने विद्याधर जी की एक और विशेषता बतलाई-
अधिक वस्तु परिग्रह का रूप
"नसीराबाद प्रवास में हम कुछ युवा विद्याधर जी से बहुत अधिक प्रभावित हो गए थे। तो रोज उनको देखने जाते थे। वो युवा, जवान, आकर्षक, मीठी बोली, प्रसन्न मुद्रा, गोरा-चिट्टा वदन, काले-घुंघराले बाल और उनकी मोहक मुस्कान आज तक याद है। उनसे हम लोग बोलते थे आपको किसी चीज की आवश्यकता हो तो हम लोगों को कह देना किन्तु उन्होंने बस एक बार स्लेट-पैंसिल का इशारा किया। उसके अलावा और कुछ नहीं लिया। हम लोगों ने बहुत निवेदन किया कि आप २-४ पैंसिल रख लो। तो बोले न बाबा न अधिक तो परिग्रह का रूप बन जायगा | "इस तरह विद्याधर जी का परिग्रह का दृष्टिकोण साफ-साफ समझ में आता है और वो परिग्रह से बचकर अपरिग्रह की साधना कर रहे थे। ऐसे त्यागी मेरे गुरुदेव को सदा प्रणाम करता हुआ....
आपका
शिष्यानुशिष्य