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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ६० ब्र० विद्याधर की आदर्श दिनचर्या

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    0१-७३-२०१६

    घाटोल (बासवाड़ा राजः)

     

    सर्वत्र अप्रमत्त भाव से विचरण करने वाले सत्ता मात्र के प्रति अहिंसक आचरण के पालनकर्ता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पवित्र चरणों में सदा नतमस्तक हूँ...।

    हे गुरुवर! आपने मदनगंज-किशनगढ़ चातुर्मास के पश्चात् विहार किया और पुनः दूसरे दिन वापस आ गए। समाज में हर्ष की लहर व्याप्त हो गई थी क्योंकि ज्ञानी गुरु को कौन छोड़ना चाहेगा और आप जैसे ज्ञानी गुरु को पाकर कौन हर्षित नहीं होगा? किन्तु निर्बन्ध को कौन बाँध सका है। आपने कुछ दिन बाद पुनः विहार कर दिया और १२-०२-१९६८ को दादिया ग्राम पहुँचे थे। भव्य स्वागत हुआ। आपके साथ में क्षुल्लक श्री सन्मतिसागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री सिद्धसागर जी महाराज एवं क्षुल्लक श्री शंभूसागर जी महाराज तथा त्यागीगण भी थे। यह समाचार जैन गजट (पाक्षिक अखबार) २२ फरवरी १९६८ को प्रकाशित हुआ। दादिया के श्रीमान् हरखचंद झाँझरी ने मुझे १९९४ में दीपावली के दिन एक पत्र लिखकर दिया था। उसमें विद्याधर की दिनचर्या और साधना के बारे में कुछ इस तरह से लिखा था। वह मैं आपके बहाने जग को बताना चाह रहा हूँ, क्योंकि आप तो स्वयं उसके साक्षी हैं

     

    ब्र० विद्याधर की आदर्श दिनचर्या

    "मदनगंज-किशनगढ़ चातुर्मास (१९६७) पूर्ण करने के बाद गुरु महाराज ज्ञानसागर जी संघ सहित फरवरी माह में दादिया ग्राम पधारे थे।

    हमारे ग्राम में एक दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ मंदिर जी है। जिसमें तीन वेदियाँ हैं। गाँव में १५ घर दिगम्बर जैनियों के हैं, जिसमें जैनियों की संख्या १४0 है और ग्राम की जनसंख्या ४५00 है। गुरु महाराज के संघ में ब्रह्मचारी विद्याधर जी भी थे। ब्रह्मचारी विद्याधर जी की पूरे दिन २४ घण्टे इस प्रकार रोजाना की दिनचर्या करते थे - सुबह ४ बजे से सामायिक करना, ५:३० बजे तक अपनी धर्म क्रियायें करके फिर शौच को जाना, उसके बाद नहा-धोकर स्नान करके भगवान का अभिषेक व अष्टद्रव्य से पूजन करना। ८ बजे से गुरु महाराज ज्ञानसागर जी महाराज को रात का अध्ययन पठन किया हुआ मुखाग्र सुनाना। उसके बाद जो गुरु महाराज अध्ययन कराते उसको पढ़ना-मनन करना। १० बजे गुरु महाराज ज्ञानसागर जी की शुद्धि कराना और उनके आहार में जाना। आहार शोध करके देना, उसके बाद श्रावकों के द्वारा उनका निमंत्रण किया जाता तब उनके यहाँ पर ही भोजन करना।अंतराय होने पर भोजन-पानी छोड़ देना, पूरे दिन भर कुछ नहीं लेना।एक ही टेम(समय) भोजन करना, पूरा दिन पढ़ना-अध्ययन करना, दोपहर एवं शाम को सामायिक करना। शाम की सामायिक डेढ़ से दो घण्टे तक करना। इसके बाद रात्रि ९-१० बजे तक भजन मंडली के साथ भजन बोलना एवं खुद के बनाए हुए नित्य नये भजन बोलना। १० बजे ठीक टेम भजन बंद करके रात को १२ बजे तक अध्ययन मनन करना। २४घण्टे में मात्र ३-४घण्टे ही निद्रा लेना। फिर सुबह ४ बजे उठना।

     

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    ब्रह्मचारी विद्याधर जी ने दूसरा केशलोंच दादिया में किया था। बाल काले, घने, घुघराले और मजबूत थे। बड़ी कठोरता से केशलोंच किया जिससे सिर में गर्दन के पीछे चमड़ी टूट गई व लहू आ गया था। बिना कोई प्रकार की वाणी (राख) लगाये ही केशलोंच किया था। जब गुरु महाराज ने माथा को लोंच किया हुआ देखा और हम लोगों ने बता दिया था। तो गुरु महाराज बोले-ब्रह्मचारी जी आपने ऐसा क्यों किया ? भस्मी वगैरह तो लेकर करते। यह लहू तो नहीं आता। तब विद्याधर जी बोले-एक बार ऐसा करके देखना था।

     

    गुरु महाराज ज्ञानसागर जी महाराज का यह सिद्धान्त उत्कृष्ट था कि वे छोटे-छोटे गाँव में धर्म की प्रभावना होती रहे इसलिए वो छोटे-छोटे गाँव में विहार करते थे। दादिया से विहार करके २ कि.मी. चलकर छोटा लाम्बा गए। वहाँ जैनियों के ३० घर और एक मंदिर है और गाँव की आबादी ४५०० है। वहाँ से ५ कि.मी चलकर मण्डावरिया ग्राम गए, वहाँ ४ घर जैनियों के हैं, १ मंदिर है और गाँव की आबादी ८०० की है। वहाँ से ८ कि.मी. चलकर तिहारी गए। वहाँ १ दिगम्बर जैन घर है, १ दिगम्बर जैन मंदिर है, उस मंदिर में बँवरी बनी हुई थी, किन्तु भगवान करीबन ४५ साल से विराजमान नहीं थे, पीछे उच्चासन पर विराजमान किए गए। गाँव की कुल आबादी ४००० की है। वहाँ से ८ कि.मी. चलकर मोराझड़ी ग्राम गए, वहाँ ७ दिगम्बर जैन घर हैं और गाँव की आबादी १५०० की है, यहाँ पर १ दिगम्बर जैन मंदिर है, जिसका नाम अतिशय क्षेत्र पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर है। जो दो मंजिला है। मोराझड़ी से ५ कि.मी. चलकर चानसिण गए वहाँ दिगम्बर जैन घर हैं, १ मंदिर २ मंजिला का है। गाँव की आबादी ७०० की है। वहाँ से ५ कि.मी. चलकर सनोद गए, वहाँ ११ दिगम्बर जैनियों के घर हैं। एक बड़ा मंदिर है। सनोद से मैं दादिया घर वापस आ गया। बाद में पता चलने पर अराई ग्राम गया। अराई किशनगढ़ रियासत में है। अराई ग्राम में भूगर्भ से निकला हुआ सहस्रकूट चैत्यालय है। जो बहुत पुराना है। इसके साथ और भी प्रतिमाएँ निकलीं थीं। यहाँ जैनियों के पहले बहुत घर होंगे मगर उस वक्त जब प्रतिमा निकली थी तब नहीं थे। रियासत राजाजी ने प्रतिमाजी को किसी भी आस-पास के जैनियों को नहीं ले जाने दी और हुकुम दिया कि यहाँ मंदिर बनाकर विराजमान करके, यहीं पर सेवा-पूजा कर सकते हो तो करो वरना हमारे ही ठिये के मुजीम करेंगे।

     

    जिस पर ८ गाँव के जैनी भाईयों ने १ दिगम्बर जैन मंदिर बनाया और आम बाजार में १५ दुकानें बनाई ताकि उसके भाड़े से भगवान की सेवा-पूजा हो सके। मंदिर बहुत बड़ा है, उसमें बहरा (तलघर) भी बनवाया गया है, जिसमें भी प्रतिमा जी विराजमान की गई हैं। यहाँ पर माहेश्वरी के २५ घर हैं। गाँव की आबादी ६००० है। यहाँ पर उच्छव (उत्सव) मनाया जाता है। यह उच्छव ८ गाँव वाले अभी भी आसौज वदी तीज को मनाते हैं। सवारी निकाली जाती है। खूब हरष उच्छाव होता है। मंदिर की पूजा-प्रक्षाल की व्यवस्था ८ गाँव से सालाना उगाई करके की जाती है। प्रबन्ध कारण कमेटी का चुनाव होकर सुचारु रूप से कार्य होता है। इस अराई ग्राम में गुरु महाराज २ दिन रहे फिर यहाँ से ८ कि.मी. चलकर सिरोंज गए। वहाँ दिगम्बर जैनियों के ८ घर हैं, १ दिगम्बर जैन मंदिर है, गाँव की जनसंख्या २००० है। यहाँ से ९ कि.मी. चलकर रहलाणा गए, यहाँ पर दिगम्बर जैनियों के १० घर हैं। एक बड़ा मंदिर है, जिसमें दो बँवरियाँ हैं, गाँव की आबादी २५०० है। ५ कि.मी. पर रहसुली ग्रामगए, यहाँ पर १५ दिगम्बर जैनियों के घर हैं, १ मंदिर है। गाँव की आबादी १७०० की है। यहाँ से दूदू गए ७ कि.मी. पर है, यहाँ पर २० घर दिगम्बर जैनियों के हैं, १ मंदिर है। १ दिगम्बर जैन नसियाँ है, गाँव की आबादी ६००० है। यह जयपुर रोड पर आम सड़क के पास हैं। दूद् से मैं घर वापस आ गया। उधर से गुरु महाराज नसीराबाद गए थे।" इस तरह आपश्री के साथ ब्रह्मचारी विद्याधर जी पैदल विहार कर उत्तर भारत की संस्कृति और भाषाज्ञान को बढ़ा रहे थे। आप श्री की दूरदृष्टि को नमस्कार करता हुआ...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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