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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ५९ परीषहजयी साहसी विद्याधर

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    २९-०२-२०१६

    भूगड़ा (बासवाड़ा राजः)

    मोक्षकल्याणक महोत्सव

    सदेह में विदेह के भोक्ता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को मेरे कोटि-कोटि वंदन...

    हे गुरुवर! आज मैं आपको वह घटना याद करा रहा हूँ, जिससे आप कुछ विचलित से हुए थे किन्तु विद्याधर जी के जवाब से आपके हर्षाश्रु आ गए थे जिसे आप सहजता से छिपा दिए थे और रातभर आशीर्वाद देते रहे होंगे तो लाड़ले ब्रह्मचारी सुबह हँसते हुए मिले थे, जिसको किशनगढ़ के वो लोग आज तक नहीं भूले। जो उसके साक्षी थे। इस सम्बन्ध में शान्तिलाल गोधा जी (आवड़ा वाले) मदनगंज-किशनगढ़ से लिखते हैं

     

    परीषहजयी साहसी विद्याधर

    ‘‘सन् १९६७ मदनगंज-किशनगढ़ चातुर्मास के दौरान एक दिन रात्रि में ब्रह्मचारी विद्याधर जी को बिच्छू ने काट लिया। तब ज्ञानसागर जी महाराज ने समाज के व्यक्तियों को शीघ्र उपचार करने के लिए कहा। तत्काल एक वैद्य को बुलाया गया। तब विद्याधर जी ने उपचार के लिए मना कर दिया। समाज के सारे लोगों की चिन्ता बढ़ गई। उनकी तकलीफ को देख सभी उन्हें मनाते रहे। प्रमुख लोगों ने पूछा-आप मना क्यों कर रहे हो? तो ब्रह्मचारी विद्याधर जी बोले- ‘मुझे मुनि बनना है तब कैसे सहन करूँगा ?' और बिना उपचार के ही चटाई पर लेट गए, पीड़ा को सहन करते रहे। हम सभी लोग अन्यमनस्क हो, तरह-तरह की शंकाएँ लेकर गुरुजी के पास गए तो सुनकर उनके मुख पर गर्वोन्मुक्त मन्द मुस्कान फैल गई और फिर हम लोग घर वापस चले गए। दूसरे दिन सुबह जब समाज के लोग पहुँचे। तब ज्ञानसागर जी महाराज को सारी बात बतलाई। तो ज्ञानसागर जी महाराज ने विद्याधर जी को बुलवाया और पूछा-‘स्वास्थ्य कैसा है?' तो विद्याधर जी हँसते हुए बोले- ‘आपके आशीर्वाद से बिल्कुल ठीक हूँ। यह सुनकर गुरु महाराज प्रसन्न हो गए और हम सभी विद्याधर जी की ऐसी उत्कृष्ट साधना देखकर हतप्रभ रह गए।'' इस तरह विद्याधर जी मुनि बनने की उत्कट भावना लेकर साधना में लीन थे। जिससे उनकी साहस एवं सहनशीलता का परिचय मिलता है। ऐसे श्रेष्ठ साधक ब्रह्मचारी को पाकर आप भी गौरवान्वित हुए होंगे। आपके गौरव को प्रणाम करता हूँ। मुझमें भी ऐसी सहन शक्ति प्रगट हो, इस भावना के साथ...

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    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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