२६-0२-२०१६
भूगड़ा (बासवाड़ा राज०)
जन्मकल्याणक महोत्सव
चलते फिरते तीर्थ गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में भावों की विशुद्ध पूर्वक प्रणाम करता हूँ...
हे गुरुवर! किशनगढ़ चातुर्मास की एक विशेष बात आपको याद होगी कि जब विद्याधर को आपने तीर्थयात्रा जाने की बात कही थी किन्तु उन्होंने मनाकर दिया था। इस सम्बन्ध में श्रीमती कनक जैन (दिल्ली) हाल निवासी ज्ञानोदय, अजमेर ने बताया-जब हम किशनगढ़ गुरु महाराज के दर्शन करने के लिए आए तब यह बात पता चली, वही बात मैं आपको लिख रहा हूँ-
ज्ञानतीर्थ की वंदना का संकल्प
“सन् १९६७ में किशनगढ़ के कुछ सज्जनों ने ब्रह्मचारी विद्याधर को निवेदन किया कि यात्रा के लिए बस जा रही है आप भी चलिए तीर्थ यात्रा हो जावेगी, तब ब्रह्मचारी जी ने मना कर दिया, बोले-मुझे बहुत पढ़ना है। तो वे सज्जन आचार्य श्री ज्ञानसागर जी के पास आए और बोले-गुरु महाराज हम लोग यात्रा पर जा रहे हैं, विद्याधर जी को चलने का निवेदन किया तो वे मना कर रहे हैं, तब गुरुवर ज्ञानसागर जी बोले-विद्याधर! तीर्थ यात्रा पर चले जाओ, मना क्यों कर रहे हो ? तब विद्याधर बोले-महाराज! मैंने आपके चरणों में वाहन का त्याग कर दिया है और मुझे ज्ञान तीर्थ की यात्रा करनी है, जो मैं कर रहा हूँ। आपके चरणों को छोड़कर मुझे कहीं नहीं जाना है।" इस तरह विद्याधर एक सच्चे अन्तर्यात्री थे, जो ज्ञानरथ पर सवार होकर गुरु के सम्यग्ज्ञान तीर्थ की वन्दना करने निकल पड़े थे। ऐसे सम्यग्ज्ञान तीर्थ की मैं वन्दना करता हूँ। अपने गुरु के रत्नत्रय तीर्थ की मैं सदा वन्दना करता रहूँ इस भावना के साथ....
आपका
शिष्यानुशिष्य