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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ५१ ब्र० विद्याधर ने लिखा गुरुभक्तिमय समर्पित पत्र

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    १८-०२-२०१६

    मुँगाना ग्राम (प्रतापगढ़ राजः)

    प्राणी मात्र के मित्र सच्चे दिग्दर्शक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु...

    हे गुरुवर! आज मैं आपको एक और अलौकिक रहस्य का उद्घाटन करने जा रहा हूँ, संभवत: आप इस रहस्य को जानते हैं, किन्तु आपके भक्तों के सामने पड़े रहस्य के पर्दे को उठा रहा हूँ। जिससे सब को पता चल सके कि ब्रह्मचारी विद्याधर जी ने अपने मित्र को दिए वादे से वादाखिलाफी नहीं की। उन्होंने आपश्री के चरणों को पाकर निश्चित होकर अपने मित्र को पूर्ण आस्वस्त किया और उन्हें सच्चे गुरु की प्राप्ति का संदेश देकर आमंत्रित किया। ब्रह्मचारी विद्याधर जी ने प्रथम पत्र कन्नड़ लिपि में लिखा था, यह अन्तर्देशीय पत्र, मित्र जिनगोंडा के नाम से ०६-०९-१९६७ को सदलगा (तालुका-चिक्कौड़ी) पहुँचा। उस पत्र को मित्र मारुति जी अभी तक सम्हालकर रखे हुए हैं, उनसे वे पत्र विद्याधर के बड़े भाई महावीर जी ने प्राप्त कर उपलब्ध कराये और उनका हिन्दी (राष्ट्रभाषा) में अनुवाद कर सभी के लिए पठनीय बना दिए हैं। वह अनुदित पत्र आपको प्रेषित कर रहा हूँ

     

    ब्र० विद्याधर ने लिखा गुरुभक्तिमय समर्पित पत्र

    श्री

    वीतरागाय नमः

    किशनगढ़

    प्रिय मित्र को किशनगढ़ से विद्याधर का धर्म की आसक्ति उत्पन्न करने वाला पत्र.... यहाँ से आचार्य ज्ञानसागर महाराज जी का बहुत आशीर्वाद...! आपको पत्र लिखने में देर हो गई क्षमा करना क्योंकि आप २ पत्र लिख चुके हो उसमें से कुछ शब्दों को पढ़कर मुझे बहुत बुरा लगा, फिर भी नहीं नहीं ऐसा नहीं है ये गलत नहीं मैं इसे स्वीकार नहीं करता, इस वाक्य पर श्रद्धा रखकर मैंने अपना काम शुरु कर दिया, पुस्तक पहुँच गया मेरे पास [छंद केशरी व्याकरण] लेकिन दूसरे पत्र में आपने ऐसा लिखा है कि मुझे वैराग्य उत्पन्न हो रहा है और मुझे आने की इच्छा है, इस बात को सुनकर के मेरा हृदय कमल ऐसा विकसित हुआ- जैसे सूर्य के दर्शन से कमल अथवा चकवा पक्षी चंद्रमा के दर्शन से हर्षित हो आनंद से भर जाता है उसी प्रकार आपके वैराग्य के उत्पन्न होने की बात सुनकर ही मेरा हृदय इतना हर्षित हो रहा है कि हम व्यक्त नहीं कर सकते।’ तुम्हारे बारे में पूरे विचार महाराज जी तक पहुँचा दिए हैं और महाराज जी ने कहा है- ‘‘जिसके पास ऐसा वैराग्य से युक्त परिणाम हो, जो संयम पूर्णरूप से पालन कर सके ऐसी क्षमता हो और शरीर अच्छा है, उसको हम दीक्षा दे सकते हैं, इसको सुनकर मुझे बहुत आनंद हुआ

     

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    क्योंकि इन तीनों गुणों से तुम लोग भरे हुए हो, इसलिए इस समय तुम लोग घर छोड़ो तो अच्छा है। यदि आगे संसार में फंस गए तो मुक्ति होना कठिन है। इस समय तुम लोगों ने ऐसा विचार किया है तो ये मोक्ष का मार्ग है और एक बात है कि जब से मैं महाराज जी के पास आया हूँ मेरे में बहुत सुधार आया है यानि कि मेरे अन्दर और चारित्र आ गया है- एक महिने से मैंने नमक का त्याग किया है, समाधि होने तक मैंने नमक का त्याग किया था। महाराज का चारित्र बहुत उत्कृष्ट है चटाई वगैरह नहीं लेते। आप यहाँ आ गए तो आपका भी चारित्र बहुत उत्कृष्ट हो जायेगा। मुझे यहाँ आकर तीन महिने हो गए, २५वें दिन मैंने महाराज का केशलोंच किया, उस दिन लगभग २००० जनता थी, उस समय मुझे बोलने का समय दिया और मैंने २० मिनिट तक बोला, मेरे प्रवचन सुनकर महाराज को बहुत आनंद हुआ, उसी समय से मुझे बहुत बोलने आने लगा है। जब तक यौवन अवस्था है, जब तक स्वास्थ्य है, तब तक कल्याण कर लेंगे इसलिए जल्दी आओ मैं इंतजार कर रहा हूँ।

    -अपना तुम्हारा विद्याधर ब्रह्मचारी

    मेरी जिज्ञासा के साथ तुम्हें वंदन

     

    इस तरह गुरुचरणों को पाकर ब्रह्मचारी विद्याधर जी कितने आनंदित हुए थे और अपनी विशुद्धि को बढ़ा रहे थे तथा एक सच्चे मित्र बनकर अपना कर्तव्य का निर्वहन करते हुए अपने मित्रों को सच्ची सलाह-


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