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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ४८ विद्याधर के गायब होने का रहस्य

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    १४–०२-२०१६

    टेकण (उदयपुर-राजः)

     

    भीतरी यात्रा में अतियात्रित अरिहंतों का अनुगमन करने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु....

    हे गुरुवर! आज मैं चेतना के अनोखे उल्लास में उन्मेषित विद्याधर के उस रहस्य का पर्दा उठा रहा हूँ। जब उनका मन घर में नहीं लग रहा था। चराचर को देखते हुए भी उसको अन्देखा कर कुछ खोजते से प्रतीत हो रहे थे। अपने आप में ही बात करते रहते थे। अन्तरंग की गुफा में घंटों-घंटों बैठकर भी अतृप्त सा अनुभव करते। इस कारण घर के लोगों से भी मौन संवाद करते थे। आखिर एक दिन वो घर से अचानक गायब हो गए। तब फिर क्या हुआ? इस सम्बन्ध में विद्याधर के अग्रज भाई ने बताया-

     

    विद्याधर के गायब होने का रहस्य

    "जिनगोंड़ा एक कृषक थे जो विद्याधर से चार-पाँच साल बड़े थे वे रात में लालटेन लेकर आते और विद्याधर को मन्दिर ले जाते थे, मन्दिर में जाकर विद्याधर स्वाध्याय सुनाता था, इस कारण दोनों स्वाध्यायी मित्र बन गए थे। दोनों ही घण्टों-घण्टों स्वाध्याय करते और धर्म चर्चा करते रहते थे। इन दोनों ने ही घर छोड़कर मोक्षमार्ग में बढ़ने का विचार बना लिया था किन्तु दोनों ने अपने परिवार को भनक भी नहीं लगने दिया। एक दिन जुलाई १९६६ में दोनों ही सदलगा से बिना बताये चुपचाप दोपहर में तीन बजे निकल गए। शाम को जब विद्याधर भोजन करने घर नहीं आया तो सोचा कि मन्दिर में होगा। अक्का ने मुझे बसदि (मंदिर) में देखने भेजा, किन्तु मुझे वहाँ पर नहीं मिला तो मैंने शेष दोनों मन्दिर जाकर देखा तो वहाँ पर भी नहीं मिला। घर पर आकर बताया तो माँ को चिन्ता लग गई, आधी रात निकल गई पिताजी बोले सो जाओ सुबह आ जायेगा। सुबह भी हो गई पर विद्याधर नहीं आया। सभी मित्रों से जाकर पता किया किसी को नहीं मालूम कहाँ गया, किन्तु जिनगोंड़ा घर पर नहीं मिला तब विचार आया कि जिनगोंड़ा के साथ किसी मुनि महाराज के पास गया होगा। राह देखते-देखते कुछ दिन निकल गए एक दिन परमपूज्य आचार्य देशभूषण महाराज का पत्र मिला, जो चूलगिरि जयपुर से भेजा गया अन्तरदेशी पत्र था।

     

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    पत्र आते ही पिताजी ने पढ़ा और मुस्कुराते हुए माँ से बोले-लो तुम्हारा बेटा बहुत बड़ा हो गया है, इतनी दूर चला गया है जहाँ से जल्दी लौट पाना सम्भव नहीं होगा, अब चार माह विद्याधर की राह देखना बेकार है, वह राजस्थान प्रान्त की राजधानी जयपुर में चूलगिरि तीर्थक्षेत्र पर चातुर्मास कर रहे आचार्य देशभूषण जी महाराज के पास अध्ययन करने के लिए गया है। अब उसको वापिस लाने के लिए जाना बेकार है क्योंकि पूरा अध्ययन करके ही चार माह बाद वापस आयेगा। तब अक्का (माँ) बोली-उसे वापस लाना चाहिए, तो पिताजी बोले उसका मन पढ़ने में लगा है तो उसे वापस लाना बेकार है, यह तो अच्छी बात है वह धर्म का अध्ययन कर रहा है करने दो, चार माह ही है फिर आ जायेगा और इधर उसका कोई काम भी नहीं है।

     

    और पत्र अक्का को पकड़ा दिया। फिर मेरे से पूछा तुमसे उसने पैसे माँगे थे? मैंने कहा नहीं, अक्का ने भी कहा मुझसे भी नहीं माँगे, तब मैंने कहा कुछ पैसे उसके पास जुड़े हुए थे और जिनगोंड़ा के साथ में होगा तब पिताजी बोले वही लेकर गया है पत्र में दोनों का जिक्र है।

    मैंने भी वह पत्र माँ से लेकर पढा उसमें ये लिखा था- ‘मल्लप्पा जी आपका बेटा हमारे पास आया हुआ है कोई बात की चिन्ता नहीं करना, वह बहुत होशियार है, होनहार है, हम उसको अच्छा बना देंगे। उसने अभी अच्छी तरह हिन्दी पढ़ना शुरु किया है, उसको पढ़ाने के लिए एक पण्डितजी को नियुक्त किया गया है। उसका विचार पूरा चौमासा तक पढ़ने का है, देखो! आगे उसका विचार क्या है? जिनगोंड़ा उसके साथ में आया है।

     

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    यह पत्र हिन्दी भाषा में था सम्भवतः आचार्य देशभूषण जी महाराज ने स्वयं ही लिखा था अथवा लिखवाया था। दादी माँ को विद्याधर से अत्यधिक प्रेम था। विद्याधर के जाने के बाद उन्हें पता चला तो वो पिताजी को बार-बार बोलने लगीं गिनी (विद्याधर का एक नाम) को जाकर लेकर आओ। तब पिताजी उनको सांत्वना देते वो चातुर्मास के बाद आ जायेगा पढ़ने के लिए गया है। विद्याधर के जाने के बाद दूसरे दिन ही मारुति आया तब पिताजी ने मारुति को डांटा था कि तुमको सब पता है विद्याधर कहाँ गया है? किन्तु तुम बता नहीं रहे हो। जब पाँच दिन बाद उसको हमने बताया तब उसे यह बात पता चली। घर पर उसके कपड़ों में दो पायजामा, दो कुर्ता, दो चड्डी-बनियान, एक गमछा (तौलिया) और एक थैली के अभाव को देखकर हम लोग समझ गए थे कि एक पायजामा, कुर्ता, चड्डी बनियान पहनकर और एक-एक रखकर ले गया है।शुरु से ही मितव्ययी एवं अपरिग्रह का भाव रहता था।

     

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    चातुर्मास के बाद भी वह नहीं आया तब दादी माँ ने और बहिनों ने अन्ना को कहा आप जाकर लाओ या दादा (बड़े भैया) को भेजो। कुछ दिन बाद कोथली से समाचार मिला कि आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज का संघ गोम्मटेश्वर महामस्तकाभिषेक महोत्सव में जा रहा है।३० मार्च सन् १९६७ को गोम्मटेश्वर बाहुवली भगवान् का महामस्तकाभिषेक प्रारम्भ हुआ और महोत्सव के बाद मई माह में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज ससंघ सदलगा से पच्चीस किलोमीटर दूर स्तवनिधि तीर्थक्षेत्र पर आये। समाचार मिलते ही प्रथम दिन ही मैं विद्याधर को लेने गया। वहाँ पर आचार्य देशभूषण जी महाराज के दर्शन किए तब उन्होंने हमको देखकर कहा- ‘क्यों महावीर विद्याधर को लेने आये हो तब हमने कहा हाँ। तो बोले ले जाओ, पर उसका मन नहीं लगेगा, वो वैरागी है और साधु सेवा में उसका बहुत मन लगता है। जब से हमारे पास आया है तब से लगभग एक वर्ष होने को है, उसकी सेवा वैयावृत्य में लग्नशीलता और समर्पण अलौकिक है।

     

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    चूलगिरि जयपुर चातुर्मास में एक दिन मुझे अर्ध रात्रि में बिच्छू ने ढंक मार दिया था, तब ऊपर पहाड़ पर कोई श्रावकगण नहीं थे और संघस्थ लोग नीचे जाने से डर रहे थे। कारण कि वहाँ जंगल है और शेर बगैरह आते रहते हैं। ऐसी स्थिति में ब्रह्मचारी विद्याधर अकेला ही पहाड़ी से नीचे चला गया, वहाँ से दवा लेकर आया और मुझको लगाई, उससे हमारा दर्द ठीक हो गया। उसकी निडरता और बहादुरी देखकर मैं समझ गया यह बहुत बड़ा साधक महापुरुष बनेगा। विद्याधर बलवान् भी है, जयपुर से श्रवणबेलगोला तक पैदल आया, रास्ते में कई बार मेरी डोली लेकर भी चला, पर वह थकता नहीं था, कठोर परिश्रमी है और उसकी मोक्षमार्ग में बढ़ने की इच्छा है। इसलिए जयपुर चूलगिरि में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया है और श्रवणबेलगोला में महामस्तकाभिषेक करके बहुत आनंदित उत्साहित हुआ उसी दिन सात प्रतिमा के व्रतों के भी संकल्प उसने ले लिए हैं। इसलिए हम उसे घर जाने की आज्ञा नहीं देंगे। आप ले जाना चाहते हैं और वो जाना चाहता है तो ले जाओ।

     

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    तब मैं, विद्याधर के पास गया, देखा तो वह लट्ठा के सफेद धोती-दुपट्टा पहने हुए था। सिर के बड़ेबड़े बाल-दाढ़ी-मूछ देखकर मैं अचम्भित रह गया। तब हमारी बात हुई उसने बताया जिनगोंड़ा एवं हमने आचार्य श्री देशभूषण जी से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया है और गोम्मटेश्वर बाहुबली भगवान् का ३० मार्च को महामस्तकाभिषेक किया तो अत्यधिक विशुद्धि बढ़ी तो उस दिन हम दोनों ने आचार्य महाराज से सात प्रतिमा के संकल्प ले लिए हैं। यह सुनकर हमने कहा घर चलो, ८ माह बहुत पढ़ लिया है। दादी माँ, अक्का, अन्ना सभी याद कर रहे हैं। तो बोला ४-६ वर्ष लग जायेंगे पढ़ाई करने में तब भी अध्ययन पूरा नहीं हो पायेगा यह कहकर अपने कार्य में लग गया। यह सुनकर मैं घर आ गया। दूसरे दिन पिताजी एवं मित्र मारुति उसे लेने गए तो विद्याधर उन्हें नहीं मिला तब अन्ना ने आचार्य देशभूषण जी महाराज को पूछा विद्याधर नहीं दिख रहा है वो कहाँ है? तो आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज बोले कल उसका बड़ा भाई लेने आया था तो वह समझ गया कि पिताजी भी आयेंगे और मुझको जबरदस्ती पकड़कर ले जायेंगे। मुझे संसार में नहीं फँसना। है इसलिए मैं उत्तर भारत जाता हूँ, ऐसा कहकर आशीर्वाद लेकर चला गया, लेकिन आप चिन्ता न करें वो लौटकर आ जायेगा, कहाँ जायेगा, उसे हिन्दी भी सही नहीं आती है अतः लौटकर आ जायेगा, ऐसा आश्वासन पाकर पिताजी घर वापस आ गए और घर पर आकर बताया। ४-५ माह तक पिताजी गुस्से में रहे घर का वातावरण अशान्त रहा, बस शान्त था कोई, तो वह थी माँ।"

     

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    इस प्रकार शरद की पूर्णिमा के चन्द्रमा की ज्योत्स्ना में जन्मा विद्याधर शुभ्र ज्योत्स्ना के भाव लेकर अनन्त की सीमा में ना जाने कहाँ पुनः खो गया, किन्तु माँ को विश्वास था शुक्लप्रकाश में जन्मी मेरे अन्तस् की ऊर्जा, दिव्य स्वप्नों का प्रतीक, मेरा विद्या अज्ञान अन्धकार में नहीं भटक सकता। तो फिर विद्याधर गया कहाँ... इस रहस्य को मैं आगे पत्र में खोलूँगा...। उस दिव्य ज्योति को प्रणाम करता हूँ... जो जीवात्मा में जाज्वल्यमान है।

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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