११-०२-२०१६ सालेड़ा अतिशय क्षेत्र
(उदयपुर-राजः)
अंधियारे भवारण्य के ज्ञानप्रकाश गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को त्रिकाल वंदन करता हूँ...
हे गुरुवर! आज मैं आपको आपके शिष्य, पाक कलाकार विद्याधर के बारे में बताता हूँ। इस सम्बन्ध में विद्याधर की बहिनें ब्रह्मचारिणी सुश्री शान्ता जी, सुश्री सुवर्णा जी ने प्रश्न का जवाब लिखकर भिजवाया
पाक कलाकार विद्याधर
“भोजन करना अलग बात है, भोजन बनाना अलग। जिसे पाक कला के नाम से जाना जाता है। पाक कला से संस्कृति का परिचय सहज हो जाता है। इस कला में महिलाएँ निपुण होती हैं, किन्तु पुरुषों का निपुण होना कला संज्ञा को प्राप्त होता है। भाई विद्याधर जी माँ के साथ अक्सर भोजन बनाने में सहयोग करते रहते थे तो वो भी पाक कला निपुण बन गए थे। एक बार पर्युषण पर्व के दौरान विद्याधर ने माता-पिता को पूछा-आप आज विधान में कौनसा चरु (नैवेद्य) चढ़ायेंगे? आप बतायें। मैं आपको बनाकर दे दूंगा। तब विद्याधर जी ने मैदा और शुद्ध घी से करंजा (गुजिया), कमल पुष्प बनाकर माँ के हाथ में दे दिया था। उस सुन्दर और मनमोहक चरु को चढ़ाकर माँ पिताजी हर्षित हुए थे। त्योहार में अपने मनपसंद पकवान बनाकर सभी को खिलाते थे।"
इस प्रकार विद्याधर माँ के साथ भोजन बनाने में सहयोग करता रहता था। तो अनायास ही पाक कला में निपुण हो गया था। आदिपुराण में भी आया है कि पुरुष की ७२ कलाएँ होती हैं और स्त्रियों की ६४ कलाएँ। विद्याधर बहुत-सी कलाएँ सीख चुका था। आज साधना से आत्म उद्धार की कला में निपुण बन गए हैं। ऐसे आत्मोद्धार कला विज्ञ को देख सहज ही नतमस्तक हो जाते हैं लोग, मेरा भी उन पावन चरणों को नमन...
आपका
शिष्यानुशिष्य