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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ३९ प्यार की शक्ति

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    २८-०१-२०१६

    पंचकल्याण महोत्सव, चेची (राजः)

     

    धर्मरसायन विद्या के वैद्यराज गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु…

    हे नमस्करणीय गुरुवर! आज मैं आपको आपके लाड़ले शिष्य विद्याधर की प्रिय वस्तु और आज्ञापालन तथा परिश्रम लीनता जैसे गुणों के बारे में बताता हूँ। जैसा विद्याधर के अग्रज भाई ने बताया-

     

    प्यार की शक्ति

    “विद्याधर शुरु से ही माँ से बहुत प्यार करता था। इसलिए माँ की हर बात मानता था। माँ की कभी भी कोई आज्ञा नहीं डाली। वह माँ के कहने पर ज्वार पिसाने जाता, साग-सब्जी लाता, भैसों के लिए चारा डालता, भैसों के लिए भरडा (भूसा, मूंगफली की खल, नमक एवं पानी मिलाना) तैयार करता, भैसों को नदी ले जाता-नहलाता, भैसों के रहने के स्थान पर सफाई करता, भैसों को बाँधता-छोड़ता आदि।घर पर हम लोग बारी-बारी से सफाई करते थे और प्रतिदिन विद्याधर हमारे साथ नदी से पानी लाने के लिए जाता था। कभी भी 'जी' नहीं चुराता था। जो भी कार्य करता था उत्साह पूर्वक करता था और अपने काम स्वयं क्रिया करता था जैसे-अण्डरवियर-बनियान स्वयं धोता था और अपने कपड़ों पर स्त्री (प्रेस) करता था। अपनी सूत की चटाई जिस पर वह सोता था उस पर नाम लिखकर रखता था और चादर भी अलग पहचान बनाकर रखता था। यह सब ८ वर्ष से १७ वर्ष तक यथायोग्य करता रहा।" इस प्रकार विद्याधर ने व्यावहारिक जीवन के कार्य करके माँ से गृहस्थ जीवन की व्यवस्था भी अनायास सीख ली थी। अव्यावहारिक कर्म से बचें इस भावना के साथ...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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