२५७-०१-२०१६
पंचकल्याण महोत्सव, चेची (राजः)
सुगमपथ वीतराग मार्गी आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु...
हे हितचिंतक गुरुवर! जन्म-जन्मान्तरों से प्राणी मित्र विद्याधर स्वयं किसी जीव की हिंसा नहीं करते और न ही परिवार जनों को करने देते थे। इस सम्बन्ध में विद्याधर के अग्रज भ्राता ने बताया-
करुणा के अवतार
‘‘विद्याधर घर वालों को मच्छर भगाने के लिए धुआँ नहीं करने देता था और खटमल मारने की दवाई भी नहीं छिड़कने देता था कहता था कि इससे जीव हिंसा होगी, पाप लगेगा, वो भी तो जीना चाहते हैं। 'तब उसको हम लोग कहते वो अपने को काटेंगे, तो कहता' अपन मरेंगे नहीं।‘ इसी तरह मुझको फसल पर पंप से पाउडर छिड़कने के लिए मना करता था। कहता पाप लगता है, ऐसी खेती ही क्यों करो। केवल गन्ना की खेती करना चाहिए।'
पिताजी उसकी भावनाओं को देखते हुए खेत पर नहीं भेजते थे या कम भेजते थे। उससे खेती का कोई कार्य नहीं कराते थे। जब भी खेत पर विद्याधर जाता था तो मात्र बैठा रहता था। साथ में धर्म की पुस्तक ले जाकर पढ़ता रहता था। एक बार हमने उसको खेत पर भेजा, तो वहाँ पर जाकर बैठ गया और कुछ देर बाद वापस आ गया। मैंने शाम को पूछा-खेत पर गये थे, क्या देखा? तो बोला-‘मजदूर काम कर रहे थे। हमने पूछा कितने लोग थे? तो बोला'१२ थे। हमने पूछा-कितनी महिलाएँ, कितने पुरुष थे? तो बोला ‘मुझे नहीं मालूम।' हमने कहा उनको अलग-अलग मजदूरी देना पड़ती है। तो विद्याधर बोला काम तो सभी बराबर करते हैं ना। तो मजदूरी भी सब को बराबर देना चाहिए।' तब मुझे गुस्सा आया उस पर तो नाराज होकर मौन से बाहर निकल गया। जवाब नहीं देता था।” इस तरह करुण हृदयी विद्याधर आज अहिंसा महाव्रत का पालन कर प्राणी मात्र के सच्चे मित्र बन गए हैं। अहिंसा महाव्रतियों के चरणों में नमोस्तु करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य