२२-०१-२०१६
बेगूं (चित्तौड़ राजः)
रत्नत्रय उपासक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के गुणों की उपासना करता हूँ…
हे श्लाघनीय गुरुवर! आज मैं विद्याधर में एवं आपके कीर्ति स्तम्भ शिष्य मेरे गुरु विद्यासागर जी के स्वभाव, व्यवहार, ज्ञान, विचार, जीवन के हर पहलुओं के अनेकों गुणों के चमकने का कारण लिख रहा हूँ। इस सम्बन्ध में विद्याधर के अग्रज भाई ने बताया-
विद्याधर के आदर्श महापुरुष
"जब विद्याधर १५ वर्ष का था तब वाचनालय में जाकर महापुरुषों की आत्मकथा (बायोग्राफी) की पुस्तकें पढ़ता था। वह शिवाजी, कित्तूरचन्नम्मा (अंग्रेजों से लड़ने वाली), टीपू सुल्तान (मैसूर टाईगर), गाँधी जी, रविन्द्रनाथ टैगोर, विनोबा भावे, ईश्वरचंद्र विद्यासागर आदि की पुस्तकें पढ़कर उसमें से अच्छी बातें लिखकर लाता था। फिर छोटे भाई-बहिनों को सुनाता था। माँ को भी सुनाता था। इसके अतिरिक्त पट्टमहादेवी शान्तला, दान चिन्तामणि, भद्रबाहु चरित्र पढ़कर फिर घर पर उसकी कहानियाँ सुनाता था और इन विषयों पर मित्रों से घण्टों-घण्टों चर्चा करता रहता था।” इस तरह विद्याधर के आदर्श महापुरुषों की कथाओं ने विद्याधर में आदर्शों के बीज बोये थे। वे आज पुष्पित पल्लवित होकर वट वृक्ष बन गए हैं और वे हो गए हैं लोक जीवन के आदर्श महापुरुष। उन आदर्शों को प्रणाम करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य