२१-०१-२०१६
टुकराई (राजः)
लोक-परलोक के ज्ञाता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों की वंदना करता हूँ…
हे गुरुवर! आज मैं आपको विद्याधर के शौक के बारे में बताता हूँ। एक युवा-जवान को देखकर सहज ही उत्कण्ठा हो जाती है कि इसकी कैसी-क्या प्रवृत्ति होगी? आज विद्याधर की युवा अवस्था के बारे में हर किसी को जिज्ञासा बनी हुई है कि वे कैसा क्या करते थे? इसका समाधान जैसा विद्याधर के अग्रज ने बताया वह मैं बता रहा हूँ-
रेडियो से जग को जानने का शौक
‘उस जमाने में दूरदर्शन तो नहीं था, किन्तु कर्ण से ज्ञानार्जन का साधन अवश्य था। तब नया-नया रेडियो का प्रचलन हुआ था। अन्नाजी एक रेडियो खरीद कर लाए थे। विद्याधर को उसको चलाने का और उसमें मराठी में समाचार एवं कहानी संवाद सुनने का शौक हो गया था। वह आकाशवाणी, ऑल इण्डिया रेडियो तथा बी. बी. सी. लंदन स्टेशन के समाचार प्रायः सुनता था, उसे दुनिया जानने की जिज्ञासा बनी रहती थी, किन्तु रेडियो सुनने की आदत नहीं पड़ी थी। इसलिए वह कब छूट गया पता ही नहीं चला।”
इस तरह विद्याधर ज्ञान प्राप्ति के किसी भी साधन-उपाय को छोड़ता नहीं था। चाहे घर पर पिता का स्वाध्याय वाचन हो, विद्यालयीन पढाई हो, मंदिर जी में स्वाध्याय हो या रेडियो हो। विद्याधर की इस सुप्रवृत्ति से शिक्षा मिलती हैं कि वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग शिक्षा के लिए करो किन्तु आदी मत बनो। ज्ञान को जागृत करने की ललक मुझमें भी सतत बनी रहे इस भावना के साथ आशीर्वाद का पिपासु...
आपका
शिष्यानुशिष्य