०७-०१-२०१६
अतिशय तीर्थक्षेत्र
चंवलेश्वर पार्श्वनाथ (राजः)
परिपक्व स्वभाव से सुशोभित, साधनारथ के सारथी, गुरुवरश्री ज्ञानसागर जी महाराज के पुनीत चरण कमलों की वंदना कर कृतकृत्य होता हुआ आज आपके द्वारा सृजित सर्वश्रेष्ठ चेतन कृति की सर्वश्रेष्ठता का रहस्य प्रकट कर रहा हूँ। जिससे विद्याधर आज आचार्य विद्यासागर बनकर समाज एवं राष्ट्र उत्थान के सूत्रधार बने हैं। इस सम्बन्ध में बड़े भाई महावीर जी ने बताया-
सूत्रधार से बना : समाज-राष्ट्र कर्णधार
“जब विद्याधर आठवीं कक्षा में पढ़ता था तब विद्यालय में एक नाटक हुआ था जिसका नाम राम-सीता नाटक था। उस नाटक में विद्याधर ने सूत्रधार का रोल किया था। जिससे सभी को उसके अन्दर छिपी नेतृत्व शक्ति का आभास हुआ था। इसी तरह एक बार विद्याधर के मित्र शिवकुमार ने मुझसे कहा था कि विद्याधर बहुत बड़ा महान् व्यक्ति बनेगा। तो मैंने पूछा-तुम्हें कैसे ज्ञात हुआ? तो शिवकुमार बोला—उसके हाथ की अनामिका अँगुलि में त्रिशूल की रेखायें हैं और सामुद्रिक शास्त्र में लिखा है कि त्रिशूल, शंख, चक्र आदि जिसके हाथ में बने हैं। वह महान् पुरुष होता है और वहीं राजा, महाराजा, नेता आदि बनता है। विद्याधर भी एक महान् नेता बनेगा। वह समाज एवं राष्ट्र को दिशा निर्देश देगा।" इस सम्बन्ध में विद्याधर की बहिनें ब्रह्मचारिणी शान्ता जी एवं सुवर्णा जी ने भी एक संस्मरण लिखकर भेजा-
महानता की भविष्यवाणी
‘‘महान् पुरुषों का पुण्य उनके कार्यों के साथ-साथ शरीर में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है और जब वह पूर्व पुण्य को वर्तमान पुरुषार्थ के साथ जोड़ देते हैं तो वह भव्यों के लिए प्रेरणास्रोत बन जाते हैं। विद्याधर के मित्र शिवकुमार ने जब विद्याधर की मुनि दीक्षा का समाचार सुना तो पिताजी (मल्लप्पाजी) के पास आये और कहा-मैं पहले ही जानता था कि विद्याधर महान् व्यक्ति बनने वाले हैं। महात्मा गाँधी जैसे नेता या विनोबाभावे जैसे सर्वोदयी नेता बनेंगे, किन्तु वह तो मोक्षमार्ग के नेता बन गये हैं। उनके हाथ की अनामिका अँगुलि में त्रिशूल का चिह्न है ऐसा बताकर रोते-रोते बोले-विद्याधर हमारे साथ गाड़ी में घूमते थे, शतरंज खेलते थे। एक बार विद्याधर ने अँगुलि में स्याही लगाकर सफेद कागज पर त्रिशूल का चिह्न अंकित करके भी दिखाया था। तभी से मुझे ऐसा आभास हो गया था। मेरा मित्र महान् व्यक्ति बन गया। हम सब धन्य हो गए। बचपन के शुभ लक्षण, लक्ष्य को पाने वाले विलक्षण व्यक्ति की ओर संकेत करते हैं। " इस प्रकार जन-सामान्य व्यक्ति भी विद्याधर की महानता की भविष्यवाणी करने लगे थे। उस महानता के प्रकटीकरण में आपश्री निमित्त बने आपके श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य