पत्र क्रमांक-९७
०५-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
विषयविषयी के भेद से परे आत्मभोग के योगी गुरुवर आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज के पादपद्मों में समर्पित नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु...
हे गुरुवर! अब मैं आपको सन् १९६९ का आपका एवं आपके प्रिय शिष्य मेरे गुरु का लेखाजोखा प्रस्तुत कर रहा हूँ। यदि कोई भूलचूक हो जाए तो सबसे छोटे पोते शिष्य की अज्ञानता को क्षमा प्रदानकर अदृश्यदूत को भेज कर त्रुटियाँ सुधराते जाना। अब मैं अखबारों की कटिंग एवं उस समय के आपके भक्तों से मिली जानकारी के अनुसार उन-उन गाँव-नगरों के लोगों से जो निर्णीत किया सो लिख रहा हूँ-
गुरु-शिष्य के साथ चला-वर्ष १९६९
इस प्रकार वर्ष १९६९, अन्तर्यात्री गुरु-शिष्य के पावन चरणों से लगभग १९१५५२ कदमों के द्वारा लगभग १४६ कि.मी. यात्रायित हुआ। यात्रित होते हुए उसने कई ऐतिहासिक दिन देखे। खट्टीमीठी स्मृतियों को संजोया है। जिसे आपके प्रत्यभिज्ञान के लिए हम क्रमशः भेज रहे हैं। यायावर गुरु-शिष्य के प्रगतिशील चरणों में नमोऽस्तु करता हुआ...
आपका शिष्यानुशिष्य