पत्र क्रमांक-१६३
२४-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
इतिहास पुरुष परमपूज्य दादागुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के ऐतिहासिक चरणाचरण को प्रणाम करता हूँ... हे गुरुवर ! सन् १९७२ को प्रात:काल यूँ लगा कि जैसे समय से पूर्व सूर्य भागकर क्षितिज पर आ गया हो यह सोचकर कि कहीं आप जैसे ऐतिहासिक गुरु-शिष्य के किसी स्वर्णिम पल को देखने से चूक न जाऊँ। हर रोज दिनकर दिनभर आपको देखता किन्तु अस्तांचल में जाने की मजबूरी के कारण खेदखिन्न होता हुआ लाल-लाल हो जाता। सरपट भागकर प्रातः आता तो खुशी में लाल हो जाता किन्तु तब उसके साथी चन्द्र-ग्रह-राशियाँ तो कभी नक्षत्र-तारे उसकी पीड़ा को समझकर उसे सहयोग करते और सुबह उसे सब कुछ बता देते जो उन्होंने रात में आप गुरु-शिष्य को देखा है।
इस तरह १९७२ की किताब में जो कुछ पढ़ने को मिला वह मैं क्रमशः आपको लिख रहा हूँ-
इस प्रकार १९७२ वर्ष ने आपके लगभग ६६९१२ कदमों की यात्रा को देखा है। इसी का वर्णन हम आगे आपको भेज रहे हैं। नमन निवेदित करता हुआ...
आपका शिष्यानुशिष्य