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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 148 रेनवाल में चातुर्मास का महामहोत्सवी समापन

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१४८

    ०६-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    वर्ष-दर-वर्ष कालपृष्ठ पर कर्मजयी इतिहास लेखक आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल कोटि-कोटि वन्दन...

    हे गुरुवर! १९७0 चातुर्मास सानंद सम्पन्न हुआ समापन कार्यक्रम के बारे में श्री दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने एवं रेनवाल के गुणसागर जी ठोलिया नामक श्रावक ने बताया-

     

    रेनवाल में चातुर्मास का महामहोत्सवी समापन

     

    ‘कार्तिक वदी चतुर्दशी के दिन पूरे संघ ने वार्षिक प्रतिक्रमण किया और अमावस्या के दिन प्रातःकाल संघ सान्निध्य में महावीर निर्वाण महोत्सव मनाया गया। प्रवचन के पश्चात् समाज ने आष्टाह्निक विधान के आशीर्वाद का निवेदन किया और आचार्य गुरुदेव ने आशीर्वाद प्रदान किया। कार्तिक सुदी अष्टमी से आष्टाह्निक महापर्व पर सिद्धचक्र महामण्डल विधान का भव्य आयोजन हुआ। कार्तिक सुदी चतुर्दशी के दिन संघ ने उपवास रखा और चातुर्मास समापन की क्रियाएँ की गयीं, साथ ही पिच्छिका परिवर्तन समारोह हुआ। समाज के पंचों ने आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज को नवीन पिच्छिकाएँ भेंट कीं और गुरुदेव ने क्रमशः स्वयं फिर मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज को, ऐलक सन्मतिसागर जी महाराज को, क्षुल्लक सुखसागर जी महाराज को, क्षुल्लक सम्भवसागर जी महाराज को और क्षुल्लक विनयसागर जी महाराज को अपने हाथ से नवीन पिच्छिकाएँ दीं और उनकी पुरानी पिच्छिकाएँ समाज के चरित्रनिष्ठ, धर्मनिष्ठ, सेवाभावी लोगों को प्रदान की। आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की पुरानी पिच्छिका श्री हीरालाल जी जयचंद जी गंगवाल को एवं मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज की पुरानी पिच्छिका श्री धर्मचंद जी बाकलीवाल को एवं ऐलक सन्मतिसागर जी की पुरानी पिच्छिका श्री गणपतलाल जी पाटनी प्रतिमाधारी को मिली (उपरोक्त जानकारी श्रावक गुणसागर जी ने रेनवाल के लोगों एवं परिवार वालों से प्राप्त की)।

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    गुरुदेव के चमत्कार ने बचाई लाज

     

    पूनम के दिन विधान पूर्ण हुआ इस उपलक्ष्य में रथयात्रा महोत्सव हुआ। इस रथयात्रा महोत्सव में आस-पास के गाँव नगरों से हजारों लोग आये थे। समाज पंचों ने ३-४ हजार लोगों के आने की उम्मीद से भोजन तैयार करवाया था किन्तु उम्मीद से दो-तीन गुना अधिक भीड़ की उपस्थिति देखकर समाज पंच घबरा गये और आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पास गए एवं महाराज से घबराकर बोले-महाराज! आज तो हमारी समाज की इज्जत धूल में मिल जायेगी। महाराज ने पूछा- ‘ऐसी क्या बात हो गई?' तब पंचों ने कहा-महाराज! ३-४ हजार लोगों का भोजन बनवाया और संख्या तो दस हजार से ऊपर दिख रही है। तब आचार्य महाराज बोले- ‘घबराओ नहीं सब ठीक हो जायेगा, सुनो कोठियार के बाहर एक सफेद कपडे का पर्दा लगा दो उसमें कोई भी व्यक्ति प्रवेश न करे। सिर्फ एक व्यक्ति शुद्ध वस्त्र पहनकर उपवास पूर्वक अंदर रहेगा और वही सामान निकाल-निकालकर देगा और ५ बजे के पहले-पहले भोजन हो जाना चाहिए। जाओ निश्चित होकर काम करो।' पंचों ने महाराज को नमोऽस्तु किया और निश्चित होकर आ गए। रथयात्रा के बाद भोजन शुरु हुआ १०-१२ हजार लोगों का भोजन हो गया और ५ बजे भोजन बंद कर दिया गया। ठीक ५ बजे के बाद तेज हवा चलने लगी और देखते ही देखते तेज बारिश आने लगी। यह चमत्कार देख सब लोग खुश हो गए। भोजन बहुतसारा बचा रहा।''

     

    चातुर्मास समापन से सम्बन्धित ‘जैन मित्र' अखबार सूरत में ३ दिसम्बर १९७० गुरुवार को डॉ. ताराचंद्र जैन बक्शी ने समाचार प्रकाशित कराया-

     

    जैन जनगणना प्रचार

     

    किशनगढ़-रेनवाल में आचार्य ज्ञानसागर जी संघ के चातुर्मास समाप्ति पर विशाल समारोह किया गया था, जिसमें सर सेठ भागचंद जी सोनी, डॉ. ताराचन्द्र जैन बक्शी, पं. हीरालाल जी शास्त्री ब्यावर, पं. अभयकुमार जी व लगभग १०० कस्बों से करीब १0000 आदमी सम्मिलित हुए। तब आचार्य श्री ज्ञानसागर जी, श्री भागचंद जी सोनी, डॉ. ताराचन्द्र जैन बक्शी ने आगामी जनगणना में नाम के खाना १० में केवल जैन ही अवश्य लिखाने के लिए तथा भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव एवं तीर्थरक्षा कार्यों में तन, मन, धन से पूर्ण सक्रिय सहयोग देने के लिए सबको प्रेरणा दी। जिसके फलस्वरूप स्थानीय पंचायत ने प्रत्येक विवाह में २१/- तीर्थरक्षा कमेटी को भेजने की घोषणा की। प्रचार मण्डली ने दहेज विरोधी नाटक का प्रदर्शन किया तथा रथयात्रा की बोलियों में लगभग २००००/- एकत्रित हुए।”

     

    इस प्रकार रेनवाल चातुर्मास में आपकी एवं आपके लाड़ले शिष्य मेरे गुरुवर की अन्तर्यात्रा के अनुभव समाज को सौभाग्य से प्राप्त हुए और सामाजिक धार्मिक संस्कृति रक्षा के उत्तरदायित्व निर्वहन करने की प्रेरणा समाज को प्राप्त हुई। ऐसे भाव श्रमण गुरु-शिष्य के चरणों में अपनी विनयांजली समर्पित करता हुआ...

    आपका शिष्यानुशिष्य

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