पत्र क्रमांक-१४०
२४-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
साहित्य सर्जक ज्ञानमूर्ति परमपूज्य आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पवित्र चरणों की रज हमारे मस्तिष्क को पवित्र बनाती जिसे पाकर धन्य हुआ, नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु... हे गुरुवर! ब्रह्मचारी विद्याधर जी के अग्रज भ्राता सदलगा के श्रीमान् महावीर जी अष्टगे ने भी किशनगढ़-रेनवाल में जो देखा व अनुभव किया वह १२-११-२०१५ भीलवाड़ा में बताया, सो मैं आपको बता रहा हूँ-
मुनि श्री विद्यासागर जी पूरे संघ को स्तोत्र पाठ सुनाते
‘‘सन् १९७0 में मैं अकेला ही किशनगढ़-रेनवाल गया था और लगभग २५ दिन रुका था। तब मैंने देखा कि संघ सुबह ३-४ बजे उठकर अपनी धार्मिक क्रियाओं में लीन हो जाता था। दिन निकलने पर मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज सस्वर स्तोत्र पढ़कर पूरे संघ को सुनाते थे। उसके बाद शौच क्रिया के लिए जाते थे।
प्रवचन से पूर्व मंगलाचरण
प्रात:काल गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज का प्रवचन होता था। उससे पूर्व मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज सस्वर मेरी भावना बोलते थे। पहले दो लाईन वे बोलते थे पीछे सभी लोग दोहराते थे। उसके बाद गुरुजी का शास्त्र प्रवचन होता था। रविवार को दोपहर में प्रवचन होता था। उसमें जैन-अजैन बन्धु सभी आते थे। शेष समय में मुनिसंघ शास्त्र स्वाध्याय करता रहता था।
मुनि श्री विद्यासागर जी ने हिन्दी सिखाई
मैं दिनभर क्या करूं? तो मुझे मुनि विद्यासागर जी ने पढ़ने के लिए छोटी-छोटी धर्म की पुस्तकें दीं। वे पुस्तकें हिन्दी में थीं और हमको हिन्दी पूरी सही नहीं आती थी। धीरे-धीरे पढ़ पाता था। जहाँ भी कोई शंका होती तो विद्यासागर जी से पूछता था। वे बहुत अच्छे से समझाते कि इकारान्त शब्द स्त्रीलिंग होते हैं और अकारान्त शब्द पुल्लिग वाची होते हैं। जबकि कन्नड़ में स्त्री को स्त्रीलिंग और पुरुष को पुल्लिग में बोलते हैं। शेष सभी वस्तुओं को नपुंसकलिंग में माना/बोला जाता है। जैसे-गाय आता है, हाथी जाता है, टेबल रखा है, कुत्ता बोलता है। यह सब नपुंसकलिंग हैं। तब थोड़ा-थोड़ा बोलना-पढ़नासमझना आया था मुझे।'' इस प्रकार मेरे गुरुवर हिन्दी सीखकर हिन्दी सिखाने लगे थे और हिन्दी में रचना भी करने लगे थे। ऐसे प्रतिभा सम्पन्न गुरु-शिष्य के अनन्त गुणों को नमस्कार करता हूँ...
आपका
शिष्यानुशिष्य