पत्र क्रमांक-१०७
१५-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
जिनवाणी तत्त्वोद्घाटक चारित्रविभूषण गुरुवर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में श्रद्धा-भक्ति समर्पित करता हूँ... हे गुरुवर! जब आप नसीराबाद से अजमेर पधारे और आपके साथ में मुनिद्वय, ऐलक, क्षुल्लक, त्यागीगण से भरा-पूरा संघ देखा तो सर सेठ सोनी भागचंद जी साहब ने आपको एक नई उपाधि से अलंकृत किया। इस सम्बन्ध में अजमेर के श्रीमान् छगनलाल जी पाटनी ने १९९४ में मुझे अजमेर में बताया-
ज्ञानमूर्ति अलंकरण
"जब आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज नसीराबाद से अजमेर पधारे तब स्वागताध्यक्ष राय बहादुर सर सेठ भागचंद जी सोनी ने बड़ी ही श्रद्धा भक्ति के साथ भरी सभा में आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज की बड़ी बुलंद आवाज में जयघोष किया और अत्यंत नम्रीभूत हो करके आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के गुणों का बखान किया। तत्पश्चात् उन्होंने आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के सतत ज्ञानाभ्यास को देखते हुए सेठ साहब ने समस्त अजमेर समाज की ओर से 'ज्ञानमूर्ति' अलंकरण से विभूषित किया था। मैं अक्सर सेठ साहब के साथ ही आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के दर्शन करने जाया करता था। तो सेठ साहब दर्शन करते ही जयकार लगाते थे-ज्ञानमूर्ति आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज की जय।"
इस तरह हे दादागुरु! आप तो निरीहवृत्ति के साधक थे किन्तु समाज आपसे अत्यधिक प्रभावित होने के कारण वह आपको अपना गुरु मानती थी और आपकी पहचान स्वरूप वह अपने गुरु को अलंकरणों से अलंकारित कर प्रसन्नता महसूस करती थी। ऐसे निरीह साधक के चरणों में नमोऽस्तु करता हुआ...
आपका शिष्यानुशिष्य