पत्र क्रमांक-१९०
२७-०४-२०१८
ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
स्व-पर हितैषी दादागुरु ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ...
हे गुरुवर ! जिस तरह आप शुद्धोपयोग और शुभोपयोगमयी झूले में झुलते रहते थे। इसी प्रकार मेरे गुरुवर आपको देख-देख न केवल अंतरंग यात्रा करते अपितु अपने आवश्यकों के बाद जो समय होता तो समाज को प्रदान करते २८ मूलगुणात्मक चर्या के साथ-साथ ३६ मूलगुणात्मक चर्या जो आपने सौंपी, उसका वे सूक्ष्मता के साथ निर्वाह करते थे। यह तो आपने भी देख समझ लिया था। एक तरफ तो वे आपकी सेवा का कर्तव्य कर रहे थे। दूसरी तरफ अपनी चर्या का पालन कर आगम की आज्ञा को धारण कर रहे थे। इस सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने बताया “नसीराबाद में जनवरी माह में दीक्षोपरान्त अठारहवाँ केशलोंच किया और फिर अप्रैल माह में दीक्षोपरान्त उन्नीसवाँ केशलोंच भी किया। जिनको नसीराबाद की जैन-अजैन समाज ने देखकर अपने भावों को निर्मल बनाया। अत्यधिक धर्म प्रभावना हुयी। समाज के निवेदन पर आचार्य श्री जी ने महावीर जयंती महोत्सव के लिए अपना आशीर्वाद एवं सान्निध्य देकर धर्म प्रभावना में सहयोग प्रदान किया।''
इस सम्बन्ध में इंदरचंद जी पाटनी (अजमेर) ने ‘जैन गजट' १९ अप्रैल ७३ की एक कटिंग दी। जिसमें ताराचंद सेठी मंत्री का समाचार इस प्रकार प्रकाशित हुआ ‘नसीराबाद-१५-०४-७३ रविवार को श्री महावीर जयंती महोत्सव मनाया गया। प्रातः प्रभातफेरी व मध्याह्न में रथयात्रा निकली। मध्याह्न में ही सदर बाजार में सभा हुई, जिसमें श्री पं. चंपालाल जी के द्वारा मंगलाचरण के बाद श्री भंवरलाल जी ऐरन व श्री ओमप्रकाश जी मंगल का भाषण हुआ। पश्चात् श्री क्षुल्लक स्वरूपानंद जी ने भगवान महावीर के जीवन पर प्रकाश डाला। आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ने जैनधर्म को विश्वधर्म बताते हुए कहा कि जो भी प्राणी इस धर्म को धारण करता है, वह सच्चे सुख को प्राप्त करता है।"
इस तरह आपके प्रिय आचार्य हर समय धर्मध्यान में लगे रहे। ऐसे साधकों के चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ...
आपका
शिष्यानुशिष्य