पत्र क्रमांक-१६७
२८-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
जिनकी धमनियों में तीर्थंकर की आर्षपरम्परा की श्रद्धा समर्पण का संचार हो रहा है ऐसे दादागुरु परमपूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में श्रद्धा-सुमन समर्पित करते हुए नमस्कार करता हूँ... हे गुरुवर! आप अपने पितामह गुरु परमपूज्य शान्तिसागर जी के प्रति अटूट दृढ़ आस्था रखते थे और प्रतिवर्ष उनके समाधि दिवस पर विनयांजलि समर्पित करते। आपकी ही तरह आपके लाड़ले शिष्य मेरे गुरु भी करते और आज आपके शिष्यानुशिष्य भी अनुकरण कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में अजय जी जैन (सी.ए.) कोटा ने ‘जैन गजट पूर्वांक' २१ सितम्बर १९७२ की कटिंग दी जिसमें चम्पालाल जैन का समाचार प्रकाशित है
पुण्यतिथि
‘‘नसीराबाद-भादवा सुदी २ शनिवार ९-९-७२ को परमपूज्य प्रातः स्मरणीय चारित्र चक्रवर्ती स्व. आचार्य श्री १०८ शान्तिसागर जी महाराज की १७वीं पुण्य तिथि आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में विविध आयोजनों के साथ मनायी गयी। श्री ब्र. स्वरूपानन्दजी, श्री १०५ क्षु. आदिसागर जी, श्री १०५ क्षु. पदमसागर जी, श्री १०५ क्षु. विनयसागर के प्रवचन हुए। बाद में बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ने आचार्य श्री के जीवन चारित्र पर स्वरचित कविता द्वारा प्रकाश डाला व उपदेश दिया।' इस तरह आपने हम शिष्यानुशिष्यों को मूल परम्परा के प्रति श्रद्धा-समर्पण के संस्कार दिये हैं। जिससे उन आचार्यों की कृतियों पर विश्वास और उनके तत्त्वों को ग्रहण करके आत्म कल्याणरूप विशुद्धि प्राप्त हो रही है। ऐसे श्रमण संस्कृति पुरोधा गुरु-शिष्य के चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य