पत्र क्रमांक-१६६
२७-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
स्वायत्त, अविनाशी, योगधारी दादागुरु परमपूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल वन्दन करता हूँ...
हे गुरुवर! आपकी भावना हुई कि समाधि के लिए नसीराबाद उपयुक्त स्थान है। न भीड़-भाड है, न भेदभाव है। शान्ति, एकता, प्रेम, श्रद्धा, समर्पण, भक्ति, उदारता का भाव है। अतः सलाह-मशविरा से नसीराबाद में ही वर्षायोग की स्थापना हुई। इस सम्बन्ध में स्थानीय रतनलाल पाटनी ने बताया-
१९७२ वर्षायोग की स्थापना
२५ जुलाई मंगलवार आषाढ़ सुदी चतुर्दशी का इंतजार बड़ी ही बेसब्री से किया जा रहा था और वह दिन आ ही गया। उस दिन पूरे संघ का उपवास था। संघ में गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के दीक्षित शिष्य मुनिश्री विद्यासागर जी, ऐलक श्री सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक श्री सुखसागर जी, क्षुल्लक श्री विनयसागर जी, क्षुल्लक श्री सम्भवसागर जी एवं अन्य संघ के क्षुल्लक श्री आदिसागर जी, ब्रह्मचारी दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) आदि सभी ने प्रात:काल भक्तिपाठ कर विधि पूरी की, इस तरह चातुर्मास की स्थापना हो गई।
चातुर्मास में प्रातःकाल शौचक्रिया के लिए पास के जंगल में जाते थे और उसके बाद ज्ञानसागर जी और विद्यासागर जी योगासन करते थे और ८-९ बजे तक स्वाध्याय करते थे, जिसमें विद्यासागर जी श्लोक पढ़ते थे और आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज उसका अर्थ समझाते थे उसके पश्चात् आहारचर्या होती थी।" इसी प्रकार नसीराबाद के सुमेरचंद जी जैन ने भी २३-०६-१९९५ में लिखकर दिया था सो आपको बता रहा हूँ-
हमारे श्रद्धेय : गुरु ज्ञानसागर जी महाराज
‘‘आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज बड़े ही सरल स्वभावी थे, वे धार्मिक चर्चा के अलावा कोई अन्य चर्चा नहीं करते थे। उन्होंने कभी भी पंथवाद, जातिवाद को कोई बढ़ावा नहीं दिया। इस सम्बन्ध में कोई भी चर्चा करने आता तो वे यही कहते थे कि भैया समाज में एकता को बढाओ जहाँ जैसी व्यवस्था हो वहाँ वैसे चलो। पूजा-पाठ को लेकर विसंवाद मत करो। पूजा-पाठ धर्म नहीं है, ये मात्र धर्म के साधन हैं।' उनको हमने हमेशा संघ में धर्म की किताबें पढ़ाते देखा। इतनी अधिक वृद्धावस्था होने के बावजूद भी पढ़ाने में कोई प्रमाद नहीं करते थे। प्रतिदिन कक्षा का समय सुबह ८ से ९ एवं दोपहर में २ से ४ बजे तक नियत था और आहारचर्या का समय ठीक १० बजे निश्चित था।
आचार्य महाराज ज्ञानसागर जी को हमने किसी भी प्रकार की हठ करते नहीं देखा न ही सुना। वे जब कभी भी किसी व्यक्ति या युवक से किसी भी चीज का त्याग कराते तो कहते थे 'भैया हमें क्या देते हो?' यानी क्या त्याग करते हो। उनकी समझाने की पद्धति बड़ी ही सरल एवं प्रभावोत्पादक थी। उनके प्रवचनों में इतने सरल उदाहरण रहते थे कि हर किसी को उनकी तात्त्विक बातें जल्दी समझ में आ जाती थीं। यही कारण है कि उनके प्रवचनों में जैन अजैन सभी बन्धु आते थे और सभी पर अच्छा प्रभाव पड़ा था। उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर जैन-अजैन विद्वान् उनसे तत्त्वचर्चा करने आते रहते थे। गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज किसी भी प्रश्न का उत्तर एक या दो शब्दों में दिया करते थे, बहुत कम बोला करते थे। जब कभी मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज पढ़ते समय किसी विषय में हठ पकड़ते तो गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज खूब हँसते थे और कहते-'यदि तुम ऐसा कहोगे तो ये-ये बाधाएँ आयेंगी।' फिर पीछे से १-२ दिन बाद मुनि श्री विद्यासागर जी को बात समझ में आ जाती थी, तो वे कक्षा में गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज से कहते-‘महाराज जी! आपने जो कहा था वह सही है, मुझे समझ में आ गया।' तब ज्ञानसागर जी महाराज कहते थे-‘किसी भी विषय में खूब मनन चिंतन कर लो, आगम देख लो फिर अपनी धारणा बनाओ। किसी भी विषय को कहने से पहले खूब सोच-विचार कर लो कि कोई बाधा तो नहीं आ रही है। इस प्रकार हमारी श्रद्धा के श्रद्धेय थे हमारे गुरु ज्ञानसागर जी महाराज।
मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज बहुत सेवाभावी मुनि हैं। जब भी गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज आहार चर्या, शौचक्रिया या लघुशंका के लिए जाते तो मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज उनका हाथ पकड़कर ले जाते थे। वे सेवा करने से कभी थकते नहीं थे। उनकी सेवा एक आदर्श सेवा है। यह सब हमने देखा और अनुभव किया है।'' नसीराबाद में प्रथम बार रक्षाबन्धन महामहोत्सव का कार्यक्रम सानंद सम्पन्न हुआ, इस सम्बन्ध में महावीर जी अतिशयक्षेत्र के पुस्तकालय से प्राप्त ३१-०८-१९७२‘जैन गजट' की छायाप्रति प्राप्त हुई जिसमें चंपालाल जैन का समाचार इस प्रकार प्रकाशित हुआ-
रक्षाबंधन पर्व
‘‘नसीराबाद-श्रावण शुक्ला पूर्णिमा २४-०८-१९७२ को परमपूज्य चारित्रविभूषण आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के संघ के सान्निध्य में रक्षाबंधन पर्व बड़े हर्ष व उल्लास के साथ मनाया गया। प्रातः रक्षाबंधन पूजन एवं मध्याह्न में बड़े मन्दिर में प्रवचन हुए। बाल ब्रह्मचारी युवा मुनि श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज का इतना ओजस्वी भाषण हुआ कि अपार जनसमूह मंत्रमुग्ध हुआ-सा बैठा रहा, अन्य समाज वालों ने भी महाराज श्री के उपदेश से अपने आपको कृतार्थ माना।'' इसी प्रकार मुनि श्री अभयसागर जी महाराज द्वारा प्राप्त ‘जैन सन्देश' की कटिंग जिसमें ३१०८-१९७२ को चंपालाल जैन का समाचार प्रकाशित हुआ-
‘‘नसीराबाद-२४-०८-१९७२ श्रावण शुक्ला १५ को परमपूज्य प्रातः स्मरणीय बाल ब्रह्मचारी आ. श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज जी के ससंघ सान्निध्य में बड़े हर्ष उत्साह एवं उल्लास के साथ मनाया। प्रात:काल श्रीमान् ताराचंद जी सेठी की नसियाँ में रक्षाबंधन पूजन एवं मुनियों की पूजन बड़ी शान्ति से समस्त जैन समाज ने की एवं मध्याह्न काल में बड़े मन्दिर जी में क्षुल्लक श्री १०५ आदिसागर जी के प्रवचन हुए। इस तरह नसीराबाद में आप श्री के प्रभाव से धर्म प्रभावना की गंगा बहने लगी। सम्यक्त्व प्रभावना अंग के धारी गुरु-शिष्य के चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ...
आपका
शिष्यानुशिष्य