पत्र क्रमांक-१५९
१८-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
चैतन्यानुविधायी आत्मज्योति के प्रकाशक परमपूज्य आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चैतन्य चरणाचरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ... हे गुरुवर! आप गुरु-शिष्य आत्मसाधना के सोपानों पर निरंतर बढ़ते जा रहे थे। समय आपसे बँधकर चलता था। समय की पैनी नजर आप गुरु-शिष्य पर सदा बनी रहती, कारण कि आप गुरु-शिष्य कब कौन सी साधना कर लेते हैं, पता ही नहीं चलता। इस सम्बन्ध में रमेशचंद जी गंगवाल किशनगढ़बताया-हमने मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के २ केशलोंच देखे। एक तो अगस्त माह में (दीक्षोपरान्त बारहवाँ केशलोंच) और दूसरा नवम्बर माह में (दीक्षोपरान्त तेरहवाँ केशलोंच)। इस सम्बन्ध में ‘जैन गजट : पर्वाक' २ सितम्बर १९७१ में मन्नालाल पाटनी का समाचार इस प्रकार है
केशलोंच समारोह
‘मदनगंज-१९-८-७१ भा. कृष्णा १४ गुरुवार को प्रातः ज्ञानमूर्ति श्री १०८ आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज व तरुण मुनि श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज का केशलोंच हुआ। केशलोंच का दृश्य बडा ही प्रभावक रहा। यद्यपि कुछ समय से युवक मुनिराज नेत्र पीड़ा से पीड़ित हैं और एक हाथ की अंगुली भी पकाव ले रखी है मगर ऐसी अस्वस्थ अवस्था में युवक मुनिराज उत्साहपूर्वक शरीर से ममत्व त्याग का प्रत्यक्ष प्रमाण उपस्थित कर अपने केशों को निर्ममत्व भाव से उखाड़ रहे थे।
श्री १०५ आर्यिका अभयमती जी माताजी ने अपने लालित्यपूर्ण भाषण में केशलोंच की महत्ता व त्याग पर प्रकाश डाला। तप व त्याग पर बोलते हुए आचार्य श्री ने भी सारगर्भित प्रवचन दिया। इसी समय अजमेर में दिवंगत पूज्य आर्यिका श्री १०५ वासुमती जी माताजी को श्रद्धांजली अर्पित की गई। भा. शु. २ को चारित्र चक्रवर्ती श्री १०८ आचार्य शान्तिसागर जी महाराज का समाधि दिवस मनाया गया। जिसमें अनेक वक्ताओं ने अपनी विनम्र श्रद्धाजलियाँसमर्पित कीं।" आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के दूसरे केशलोंच का समाचार सत्येन्द्र कुमार जैन ने २ दिसम्बर १९७१ को ‘जैन गजट' में प्रकाशित कराया
केशलोंच
‘‘मदनगंज-किशनगढ़-यहाँ ता. २१-११-७१ को परमपूज्य आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का केशलोंच समारोह पूर्वक हुआ। ता. २३-११-७१ को के. डी. जैन हायर सैकेण्डरी स्कूल में आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी के युवा शिष्य मुनि श्री १०८ विद्यासागर जी का छात्रों के लिए प्रभावशाली उपयोगी भाषण हुआ। इस तरह आप गुरु-शिष्य अपनी मूलगुण एवं उत्तरगुणात्मक साधना में लीन रहते तथा संसारी अज्ञानी प्राणियों के कल्याणार्थ हितोपदेश देते। ऐसे उपकारी गुरु-शिष्य के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य