पत्र क्रमांक-१५५
१४-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
आत्मपरिशीलन निष्ठ योगी गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रियोगपूर्वक नमस्कार करता हूँ... हे गुरुवर! मदनगंज-किशनगढ़ समाज की भक्ति-भावना ने आपके पैर थाम लिए और उनके निवेदन पर आपने अपने लाड़ले शिष्य मुनि श्री विद्यासागर जी का दीक्षा दिवस महोत्सव मनाने का आशीर्वाद प्रदान किया। इस सम्बन्ध में किशनगढ़ के दीपचंद जी चौधरी ने १९९५ में बताया था
मुनि विद्यासागर जी का तृतीय दीक्षा दिवस महोत्सव
“२७ जून आषाढ़ शुक्ला पंचमी दिन रविवार को मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का तृतीय दीक्षादिवस धूम-धाम से मनाया गया और मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज की पूजा हुई एवं मुनिश्री का तथा आचार्य गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज का मार्मिक प्रवचन हुआ। प्रवचन के पश्चात् सकल दिगम्बर जैन समाज मदनगंज-किशनगढ़ ने श्रीफल अर्पित कर चातुर्मास करने का पुरजोर निवेदन किया। समाज की भक्ति-भावना को देखते हुए मौन स्वीकृति देकर गुरुदेव ने ०७ जुलाई १९७१, आषाढ़ शुक्ला १४ बुधवार के दिन संघ सहित उपवास करके आगम विधि-विधान के आलोक में वर्षायोग स्थापन किया। इस सम्बन्ध में ‘जैन गजट' २९ जुलाई १९७१ को वैद्य मन्नालाल पाटनी का समाचार प्रकाशित हुआ
चातुर्मास
‘‘मदनगंज-किशनगढ़ निवासियों के पुण्योदय से प्रातः स्मरणीय ज्ञानमूर्ति आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का ससंघ चातुर्मास यहाँ स्थापित हो गया है। आपके संघ में आपके शिष्य बाल ब्रह्मचारी युवक मुनि श्री १०८ विद्यासागर जी व श्री १०५ ऐलक सन्मतिसागर जी, श्री १०५ क्षु. सुखसागर जी, क्षु. आदिसागर जी, क्षु. विनयसागर जी व पूज्य आर्यिका माताजी अभयमती जी विराज रहे हैं। संघ के त्यागीगण तपस्वी व शान्त प्रकृति के हैं। नित्य प्रति आचार्य श्री का प्रातः सारगर्भित तात्विक प्रवचन होता है व मध्याह्न में विद्वान् युवक मुनि श्री १०८ श्री विद्यासागर जी का ओजस्वी समयोपयोगी भाषण होता है। यहाँ अपूर्व धर्म प्रभावना हो रही है।'' दीपंचद जी चौधरी ने आगे बताया-
मदनगंज-किशनगढ़ ने देखा १९७१ का वर्षायोग
‘‘गुरु-शिष्य की काया की यात्रा तो रुक गई किन्तु ज्ञानयात्रा सतत चलती रही। स्वाध्याय-पठनपाठन-लेखन का कार्य चलता रहा। संघ के सान्निध्य में मुकुट सप्तमी, रक्षाबंधन, पर्युषण पर्व, महावीर निर्वाण महोत्सव एवं कार्तिक अष्टाह्निका में सिद्धचक्र मण्डल विधान तथा पिच्छिका परिवर्तन समारोह आदि सानन्द सम्पन्न हुए।'' इस तरह मदनगंज-किशनगढ़ चातुर्मास सानन्द सम्पन्न हुआ। ऐसे गुरु-शिष्य जो स्वकल्याण के साथ-साथ परकल्याण में भी निमित्त बनने के शुद्धविशुद्ध भावों को प्रणाम करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य