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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 154 - सरल-निरभिमानी आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१५४

    १३-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

    जर्जर काया को परमौदारिक काया तक पहुँचाने का लक्ष्यभूत तपश्चरण करने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूँ... हे गुरुवर! आप जब दांता में थे। तब आपको मदनगंज-किशनगढ़ लाने के लिए दीपचंद जो चौधरी चौका लेकर आपके पास पहुँच थे, किन्तु आप तो कुछ कहते नहीं, तो वे आपके साथ-साथ विहार करते रहे। इस सम्बन्ध में उन्होंने बताया-

     

    ‘‘मैं गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज के साथ-साथ दांता से चला और साथ में चौका भी लगाता रहा। तब रास्ते में कई देहातों में दिगम्बर जैन मन्दिर तो मिले किन्तु जैन गृहस्थ गाँव छोड़कर जा चुके थे। ऐसी स्थिति को देखकर गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज बोले-‘मारवाड़ी लोग पैसों के पीछे दौड़ते हैं। पैसों के लिए कहीं भी चले जाते हैं। इसलिए कहावत बन गई है-‘जहाँ न जाये बैलगाड़ी, वहाँ जाये मारवाड़ी।' यदि इतना पुरुषार्थ मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त करने में कर लिया जाये तो जीवन ही सार्थक एवं सफल हो जाये।' दांता से रुलाणां, खाचरियावास, कुली, मिण्डा, भैसलाना आदि होते हुए फुलेरा पहुँचे थे।'' फुलेरा के बारे में महावीर जी तीर्थक्षेत्र से जैनगजट २० मई १९७१ दिन गुरुवार की एक कटिंग प्राप्त हुई। जिसमें शान्तिस्वरूप गंगवाल मंत्री जी का समाचार इस प्रकार है-

     

    केशलोंच

    ‘‘फुलेरा-सोमवार को पूज्य आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का संघ सहित यहाँ पदार्पण हुआ। संघ में दो मुनि, एक ऐलक, दो क्षुल्लक महाराज तथा ब्रह्मचारी व ब्रह्मचारिणियाँ आदि हैं। प्रातः परमात्मप्रकाश का स्वाध्याय, मध्याह्न को श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज द्वारा प्रवचन तथा रात्रि को श्री १०५ क्षुल्लक जी द्वारा शास्त्र-सभा होती है। गत बुधवार को प्रातः स्मरणीय श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का केशलोंच हुआ। 

    इसी प्रकार ‘जैन गजट' ३ जून १९७१ को शान्तिस्वरूप जैन गंगवाल मंत्री का एक और समाचार प्रकाशित हुआ-

     

    आम जनता के बीच केशलोंच

    “फुलेरा-यहाँ गत रविवार को परमपूज्य श्री १०८ मुनि विवेकसागर जी महाराज का आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के तत्त्वावधान में केशलोंच हुआ। श्री १०८ मुनि विद्यासागर जी, आचार्य महाराज, श्री १०८ मुनि विवेकसागर जी महाराज तथा श्री १०५ क्षुल्लक विनयसागर जी महाराज आदि के प्रवचन और श्री पूर्णचन्द जी वकील साँभरलेक आदि का भाषण हुआ। इस प्रकार फुलेरा में आपका १९ मई बुधवार को एवं मुनि श्री विवेकसागर जी का ३० मई रविवार को केशलोंच हुआ। इसके आगे मदनगंज-किशनगढ़ के श्री दीपचंद जी चौधरी ने बताया “फुलेरा में २९ मई ज्येष्ठ सुदी पंचमी शनिवार को श्रुतपंचमी महोत्सव मनाया गया। फिर यहाँ से नरैना, हाटूपुरा, दांतणा होते हुए साखून पहुँचे थे। साखून में सुन्दर जिनालय है। वहाँ पर समाज ने आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से निवेदन किया कि आपके सान्निध्य में हम लोग मण्डल विधान कराना चाहते हैं। तव सीधे सरल महाराज ने कह दिया विधान आपको करना है हमें नहीं। आप करावो हम तो आशीर्वाद देते हैं। संघ के सान्निध्य में मण्डल विधान सानंद सम्पन्न हुआ।

     

    सरल-निरभिमानी आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज

    उसी समय समाचार मिला कि मदनगंज-किशनगढ़ में परमपूज्य आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज संघ सहित पधार रहे हैं। तब हमने आचार्य गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज से विचार-विमर्श किया के अपने को उनसे पहले पहुँचना है या बाद में। तब सरल स्वभावी निरभिमानी आचार्य श्री ज्ञानसागर जी -हाराज बोले-अपन पहले पहुँचेंगे, वे बड़े हैं, उनकी आगवानी करेंगे और विधान पूरा होने के बाद चार्य महाराज ने विहार कर दिया। साखून से साली पहुँचे, फिर वहाँ से गहलोता, हरमाड़ा होते हुए गभग ११ जून को किशनगढ़ पहुँचे थे। किशनगढ़ में भव्य आगवानी हुई।

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    आचार्य ने की आचार्य की आगवानी

    दो दिन बाद परमपूज्य आचार्य धर्मसागर जी महाराज मदनगंज-किशनगढ़ पधारे। तब आचार्य गुरुदेव ज्ञानसागर जी महाराज, मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज, ऐलक सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक सुखसागर जी, क्षुल्लक विनयसागर जी एवं त्यागीगण सभी ने उनकी आगवानी करने के लिए नगर के बाहर जाकर आगवानी की। सभी ने आपस में नमोऽस्तु, प्रति नमोऽस्तु किया। फिर आचार्य धर्मसागर जी महाराज ने हँसते हुए बड़े ही वात्सल्य भाव से वयोवृद्ध ज्ञानवृद्ध आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज का हाथ थाम लिया और धीरे-धीरे आपस में शिष्टाचार की बात करते हुए मन्दिरजी पधारे । मन्दिर जी में उच्चासन पर विराजमान होने को लेकर आपस में एक दूसरे को आग्रह करने लगे। अंत में धर्मसागर जी महाराज ने २ पाटे बराबर लगाने के लिए कहा। फिर एक दूसरे का हाथ पकड़कर दोनों आचार्य बराबर बैठ गए। उसके बाद समस्त संघ विराजमान हुआ। यह अद्भुत दृश्य देखकर हजारों श्रावकों ने तालियों की गड़गड़ाहट कर दोनों आचार्यों के जयकारे लगाये।'' इसी प्रकार मदनगंज-किशनगढ़ के शान्तिलाल जी गोधा (आबड़ा) ने बताया

     

    एक गुरु के दो शिष्य-विनय में एक से बढ़कर एक

    ‘‘दोनों संघ प्रवचन सभा में पहुँचे तो आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज नीचे वाले पाटे पर बैठने लगे तव आचार्य धर्मसागर जी महाराज बोले-आप ऊपर बैठिए। तब ज्ञानसागर जी महाराज बोले-आप दीक्षा में बड़े हैं, आप ऊपर बैठिए। तब धर्मसागर जी महाराज बोले-ज्ञान बड़ा होता है और आप ज्ञानी हैं। अतः आप ऊपर बैठिए। तब ज्ञानसागर जी बोले-चारित्र पूज्य होता है इसलिए आप बैठिए। तब धर्मसागर जी बोले-हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य हैं, धर्म भाई हैं। अतः हम दोनों ही बराबर बैठेंगे। तब दो पाटे बराबर लगाए गए और दोनों ही महाराज एक दूसरे का हाथ पकड़कर बैठ गए।'' इस सम्बन्ध में ‘जैन गजट' में १७ जून को अभयकुमार जैन एवं २४ जून १९७१ को मोतीचंद सराफ का समाचार प्रकाशित हुआ 

     

    धर्म प्रभावना एवं मंगल मिलन

    ‘‘मदनगंज (किशनगढ़)-संघ शिरोमणि प.पू. १०८ आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज मालपुरा से अजमेर की ओर विहार करते हुए ससंघ पचेवर पधारे। वहाँ संघस्थ पू.श्री १०८ महेन्द्रसागर जी महाराज के केशलोंच सानन्द सम्पन्न हुए। ४ दिन तक मण्डल विधान की पूजन हुई। वहाँ से विहार करके पालड़ी, सेवा, दूदू आदि ग्रामों में धर्म प्रभावना करते हुए १३-६-७१ रविवार को मदनगंज (किशनगढ़) पधारे। पदार्पण के समय अपूर्व दृश्य उपस्थित था। उक्त अवसर पर वयोवृद्ध विशिष्ट विद्वान् मुनिराज पू. श्री १०८ आ. ज्ञानसागर जी महाराज (जो कि २ दिन पूर्व ही यहाँ पधारे हुए थे) ससंघ अगवानी हेतु मार्ग में पहुँचे। इस सत्-समागम से सभी साधुगण एवं नर-नारी बहुत ही हर्षित हुए। तदनन्तर नगर प्रवेश के समय बैंड बाजे एवं विशेष साज-सज्जा के साथ नगर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ जुलूस श्री चन्द्रप्रभु दि. जैन मन्दिर में स्वागत सभा के रूप में परिणत हो गया। सभा में स्थानीय वक्ताओं के अतिरिक्त विदुषी आर्यिका पू. श्री ज्ञानमती माताजी, पू. ज्ञानमूर्ति श्री १०८ आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज एवं आचार्य श्री १०८ धर्मसागर जी महाराज के कल्याणकारी प्रवचन हुए।'' इस तरह आप गाँव-गाँव प्रभावना करते हुए मदनगंज-किशनगढ़ पहुँचे और किशनगढ़ में दीक्षा महोत्सव मनाया गया एवं किशनगढ़ ने दो संघों के वात्सल्य प्रेम को देखा। ऐसे रत्नत्रय धारियों के चरणों में नतमस्तक होता हुआ करबद्ध प्रणाम करता हूँ...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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