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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 152 - मारोठ में आचार्य ज्ञानसागर जी

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१५२

    ११-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

    मूलगुण पालन में सदा नियोजित परमपूज्य आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महामुनिराज के पावन चरणों में त्रिकरण युक्त नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु...। हे गुरुवर! काँकरा ग्राम में शीत का भयंकर परिषहजय आपश्री संघ ने किया और दीपचंद जी छाबड़ा ने बताया कि जनवरी में मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज ने दीक्षोपरान्त दसवाँ केशलोंच किया। तब केशलोंच देखकर अजैन समाज काफी प्रभावित हुई थी।

     

    काँकरा से डासरोली श्यामगढ़ गए वहाँ पर भी दिगम्बरत्व की काफी प्रभावना हुई। फिर संघ मारोठ पहुँचा था। मारोठ में ४० परिवारों की समाज ने भव्य आगवानी की । इस सम्बन्ध में श्री क्षेत्र महावीर जी के पुस्तकालय से ‘जैन मित्र' अखबार ४ मार्च १९७१ गुरुवार की एक कटिंग प्राप्त हुई, जिसमें शिवमुखराय शास्त्री मारोठ का समाचार इस प्रकार था

     

    मारोठ में आचार्य ज्ञानसागर जी

    ‘९ त्यागियों के संघ सहित शामगढ़ से ता. १७-०२-७१ को पधारे। गाजे-बाजे से स्वागत हो सभा की गई। उसमें पं. चंपालाल जी व मैंने श्रद्धांजली दी थी। नित्य प्रवचन होते हैं। दिन में मुनि विद्यासागर जी व रात्रि में ब्र. दीपचंद जी प्रवचन करते हैं। पठन-पाठन भी चलता है। धर्म प्रभावना अच्छी हो रही है। ठहरने व भोजन की व्यवस्था है। इसी प्रकार ‘जैन सन्देश' अखबार में ४ मार्च १९७१ को शिवमुखराय शास्त्री जी का समाचार इस प्रकार है

     

    द्वितीय पुण्यतिथि

    ‘‘मारोठ में पूज्य १०८ श्री आचार्य शिवसागर जी महाराज की द्वितीय पुण्यतिथि २५-०२-७१ को सोत्साह मनायी गयी। पूज्य श्री की सुन्दर फोटो एक सुसज्जित पालकी में रखकर सारे बाजार में निकाली गई। जगह-जगह आरती की गई थी और पूज्यश्री के चरणों में श्रद्धांजली समर्पित की गई थी। जिस स्थान पर आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज का संघ ठहरा हुआ है। वहाँ भव्य पाण्डाल में आचार्य श्री की फोटो विराजमान की गई और आचार्य श्री की बड़ी भक्ति से पूजन की गई। तदनन्तर आचार्य १०८ श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में श्रद्धांजलि समारोह प्रारम्भ किया गया। आचार्य महाराज ने अपने दीक्षागुरु के आदर्श जीवन पर बड़े सुन्दर ढंग से प्रकाश डाला और कहा कि हर एक मानव का कर्तव्य है कि वह अपने जीवन को सफल बनाने के लिए समाधिमरण अवश्य करे।' बाद में पूज्य मुनिराज विद्यासागर जी महाराज ने आचार्य १०८ शिवसागर जी महाराज की पावन स्मृति में स्वरचित सुन्दर भक्तिभाव पूर्ण कविता पढ़कर सुनायी। अनेक वक्ताओं ने अपनी-अपनी श्रद्धांजली अर्पित कीं।'

     

    इस तरह हे गुरुवर! आप प्रतिवर्ष अपने गुरु के समाधि दिवस पर बड़े ही भक्तिभाव से उनके गुणों का बखान करते थे और इस बार तो आपके लाड़ले शिष्य मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज ने श्रद्धांजली सभा में सस्वर काव्यमय स्तुति पढ़कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने बताया कि सभी के मुख पर मुनि श्री विद्यासागर जी की काव्य रचना और उनके स्वर की वाह-वाही हो रही थी। यह उनकी तृतीय काव्य रचना अद्वितीय थी। जो उन्होंने रेनवाल में रची थी।

     

    इस प्रकार दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने और भी बताया कि मारोठ समाज के श्रीमान् पण्डित शिवमुखराय जी शास्त्री ने एक दिन बताया कि यहाँ पर समाज ने जीवदया पालक समिति बना रखी है। यह संस्था दि. २३ दिसम्बर १९२२ को स्थापित हुई थी। जिसका मुख्य उद्देश्य मारोठ एवं आस-पास जैन, ब्राह्मण, माहेश्वरी आदि समुदायों के द्वारा घरों में बकरी पाली जाती है किन्तु उनसे उत्पन्न बकरों को बचाया जाना।

     

    निरपराध मूक निरीह बकरों को बलिवेदी से बचाना। इसलिए यह समिति गठित की गई है। इसमें अभी लगभग ६-७ सौ बकरे हैं और अभी तक हजारों बकरों को बचाया जा चुका है। इस समिति के लिए बकराशाला भवन नगर के श्रीमान् रायबहादुर सेठ मगनमल जी, रायबहादुर सेठ हीरालाल जी पाटनी ने बनवाकर ६-०१-१९४३ को जीवदयापालक समिति को सौंपा। यह सुनकर गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज एवं मुनि विद्यासागर जी महाराज अतीव प्रसन्न हुए और खूब आशीर्वाद दिया तथा इस कार्य की प्रशंसा अपने प्रवचनों में कई बार किया करते थे।

     

    श्री शिवमुखराय शास्त्री जी जो श्री गोधा दि. जैन बोर्डिंग हाऊस के अध्यक्ष थे। वे कभी-कभी गुरुजी के पास आकर तत्त्वचर्चा किया करते थे। उन्होंने बताया-पिछले वर्ष १९७० में इस बोर्डिंग की स्थापना हुई है। 

     

    शास्त्री जी ने बताया कि मारोठ में राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय व राजकीय प्राइमरी स्कूल श्री सेठ मगनमल जी हीरालाल जी पाटनी दि. जैन पारमार्थिक ट्रस्ट के भवनों में चल रही है एवं कानमल उम्मेदमल अस्पताल श्री सेठ उम्मेदमल जी चौधरी द्वारा बनाये हुए अस्पताल भवन में राजस्थान सरकार की तरफ से चल रहा है। इसके साथ ही बताया कि श्री सेठ बीजराज जी पाण्ड्या ने संवत् १९८० में एक कबूतरखाना भवन बनवाया था। इसमें सैकड़ों कबूतर, मोर, तोते, चिड़िया आदि पक्षी धान्य चुगते हैं। यह सुनकर मुनि विद्यासागर जी महाराज अत्यधिक प्रभावित हुए। बोले-‘यहाँ तो करुणा का प्रेक्टिकल हुआ

     

    एक दिन पण्डित जी साहब से मुनि श्री विद्यासागर जी बोले-'यहाँ के मन्दिरों का क्या इतिहास है?' तब उन्होंने बताया

    १. गोधाओं के मन्दिर की वेदीप्रतिष्ठा विक्रम संवत् १३८५ में श्री सेठ बेणीराम जी अजमेरा ने करायी थी।

    २. चौधरियों के मन्दिर की प्रतिष्ठा श्री सेठ जीवणरामजी पाटोदी ने संवत् १४८२ में करायी थी।

    ३. सावां के मन्दिर की वेदी प्रतिष्ठा श्री शाह रामसिंह जी ने संवत् १७९४ में करायी थी।

    ४. तेरहपंथी मन्दिर की वेदी प्रतिष्ठा संवत् १८५२ में सेठ परशराम लश्कर वालों ने करायी थी।

    इन चारों ही मन्दिर की गोठे अलग-अलग हैं। इन मन्दिरों में ११वीं-१२वीं शताब्दी की कितनी ही बड़ी मनोज्ञ प्रतिमाएँ विराजमान हैं। तब मुनि विद्यासागर जी बोले-‘इनके दर्शनों से बड़ी शान्ति मिलती है।' तब बीच में मैंने बोला-पण्डित जी साहब आपने इतनी जानकारी दी कृपया इतना और बतायें यहाँ पर समाज कितनी है? तब उन्होंने बताया कि दिगम्बर जैन समाज के ७0 घर हैं इन घरों में से ३० परिवार बाहर रहते हैं किन्तु उनके मकान मारोठ में विद्यमान हैं, वे वर्ष में १-२ बार आते हैं।

     

    इस प्रकार मारोठ वह ऐतिहासिक स्थान है जहाँ समाज ने अहिंसा का प्रेक्टिकल किया है। ऐसे ऐतिहासिक स्थान के दर्शन से आप गुरु-शिष्य बड़े अभिभूत हुए थे। आपके पावन चरणों में अनथक प्रणाम करता हुआ...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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