पत्र क्रमांक-१५१
१०-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
सर्वज्ञ प्रभु के पगचिह्नों के शोधार्थी आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पवित्र पगचिह्नों को नमस्कार करता हूँ... हे दादागुरु ! वर्ष १९७० आपके इतिहास को स्वर्णिम पन्नों पर रचकर चला गया और वर्ष १९७१ अपने इतिहास के खाते बही में आपके पल-पल क्षण-क्षण के समाचार को लिखता गया। मुझे रेनवाल के श्रीमान् गुणसागर जी ठोलिया और किशनगढ़ के श्रीमान् दीपचंद जी चौधरी के लेखों से जो कुछ। जानकारी मिली वह मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ-
इस तरह वर्ष १९७१ आप गुरु-शिष्य के साथ २६ ग्राम-नगरों में भ्रमण करता हुआ लगभग १८० कि.मी. चला। सर्दी-गर्मी-वर्षा के दिनों के परीषह देखे जिनको आप गुरु-शिष्य हँसते-हँसते सहन कर रहे थे। साथ ही प्रभावनापूर्ण कई कार्यक्रम देखे और आपके लाड़ले शिष्य की विशिष्ट साधनाएँ देखीं।इस सबका वर्णन हम आगे के पत्रों में आपको बताते रहेंगे। यद्यपि आप सब कुछ जानते हैं तथापि बताने की सुखानुभूति कौन छोड़ना चाहेगा आपके निमित्त मुझे भी ऐतिहासिक जानकारियाँ प्राप्त हो रहीं ऐसे सुखप्रदाता गुरुवर के चरणों में त्रिकाल वन्दन करता हूँ...
आपका
शिष्यानुशिष्य