पत्र क्रमांक-१४३
२७-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
निर्बन्ध किन्तु आगम से बंधे दादा गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल भक्ति से बंधा हुआ नमस्कार करता हूँ... हे गुरुवर! रेनवाल में आपने और आपके लाडले शिष्य ने प्रतिनियत समय पर केशलोंच किए। जिसके बारे में रेनवाल के आपके अनन्य भक्त श्रीमान् गुणसागर जी ने बताया ‘‘रेनवाल में हम लोगों ने ज्ञानसागर जी महाराज और मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के २-२ बार केशलोंच देखे थे। सभी लोगों के कहने पर उन्होंने अपने केशलोंच मंच पर किये थे। जिसको देखने के लिए पूरी जैन समाज एवं अजैन बन्धु भी आये थे। आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के केशलोंच मुनि श्री विद्यासागर जी करते थे और फिर अपना केशलोंच वे स्वयं करते थे। विद्यासागर जी के केशलोंच देखतेदेखते लोगों की आँखों में आँसू आ जाते थे। गौरवर्णी शरीर पर काले-काले धुंघराले बाल और दाड़ी-मूंछ को बड़ी दृढ़ता से उखाड़ते थे। उखाड़ते समय खून भी आ जाता था। दिगम्बर मुनि की इस वीर साधना को कई लोग देख नहीं पाते थे, घबरा जाते थे, वे लोग उठकर चले जाते थे। जिस समय केशलोंच चला करते थे, उस समय रेनवाल के विद्वान् गुलाबचंद जी गंगवाल और बाहर से पधारे हुए विद्वान् ओजस्वी भाषण दिया करते थे।" इस सम्बन्ध में रेनवाल के गुलाबचंद जी गंगवाल जी ने जैन संदेश अखबार में २२-१०-१९७० को समाचार प्रकाशित कराया-
केशलोंच
‘‘किशनगढ़-रेनवाल-गत आश्विन शुक्ला १० रविवार ता. १०-१०-१९७0 को यहाँ पर आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज व मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का केशलोंच हुआ। जिसमें करीब एक हजार व्यक्ति दर्शनार्थ पधारे। संघ के चातुर्मास के कारण यहाँ अपूर्व प्रभावना हो रही है। संघ में उच्च कोटि के आध्यात्मिक व संस्कृत के न्याय ग्रन्थों का बराबर अध्ययन चलता रहता है। अजमेर वाले ब्र.पं. विद्याकुमार जी सेठी भी इस समय यहाँ पधारे हुए हैं। जो आचार्य श्री के सान्निध्य में धर्म ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं। सभी सज्जनों को यहाँ पधारकर धर्मलाभ लेना चाहिए।' इस तरह रेनवाल में मनोज्ञ मुनिराज श्री विद्यासागर जी महाराज का दीक्षोपरान्त नौवां केशलोंच महती प्रभावना के साथ सम्पन्न हुआ। रेनवाल में धर्म की साधना के साथ-साथ धर्मप्रभावना की ध्वजा फहराती रही। ऐसे श्रमण संस्कृति की ध्वजा को फहराने वाले गुरु-शिष्य के चरणों में त्रिकाल वंदन करता हुआ...
आपका शिष्यानुशिष्य