पत्र क्रमांक-१३१
१३-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
कलिकाल जिनमुद्रा धारक परमपूज्य आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के जगत्शरण चरणों में त्रिकाल नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु... हे गुरुवर! शास्त्रों में पढ़ा करते हैं कि चतुर्थकाल में मुनियों के दर्शन आशीर्वाद से संसारी प्राणियों के दु:ख-दर्द दूर हो जाया करते थे किन्तु पंचमकाल में भी जो सच्ची निर्दोष आगमयुक्त साधना करता है। तो उनके दर्शन भी मंगलकारी होते हैं। यह आज हम अनुभव कर रहे हैं। आपका आशीर्वाद जिसे मिल जाता उसकी मनोकामना शीघ्र पूर्ण हो जाती। इस सम्बन्ध में कई बातें हमने आपके भक्तों से सुनी हैं। दूदू के उम्मेदमल जी छाबड़ा ने १२-०२-२०१८ को संस्मरण सुनाया वह मैं आपको बता रहा हूँ-
गुरु आशीर्वाद ने शिष्य की मनोकामना पूर्ण की
‘‘मौजमाबाद में एक दिन मुनि श्री विवेकसागर जी ने आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से कहा कि मेरी सिद्धक्षेत्र की वंदना करने की प्रबल भावना हो रही है। तब गुरुवर बोले-‘राजस्थान में सिद्धक्षेत्र हैं नहीं। मध्यप्रांत में हैं जो काफी दूर हैं।' तो विवेकसागर जी बोले- 'मैं धीरे-धीरे विहार कर वंदना कर लूँगा| जब तक मैं सिद्धक्षेत्र की वंदना नहीं कर लूँगा तब तक मैं गेहूँ से बने भोजन का त्याग करता हूँ। हे गुरुदेव! आप आशीर्वाद प्रदान करें मेरी सिद्धक्षेत्र की वंदना सकुशल हो जाये।' तब गुरुवर ने योग्य मुहूर्त बताया और आशीर्वाद दिया। मुनि श्री विवेकसागर जी ने आशीर्वाद लेकर विहार किया। संघस्थ साधु थोड़ी दूर छोड़ने गए। इस तरह गुरु आशीष से मुनि विवेकसागर जी महाराज की सिद्धक्षेत्र सोनागिरि जी की यात्रा सकुशल पूर्ण हुई।'' इस तरह और भी लोगों ने इस प्रसंग के संस्मरण सुनाये किन्तु वे फिर कभी लिखूंगा। मौजमाबाद के प्रवास में एक और बड़ी प्रभावना हुई जिसके बारे में वहाँ के बड़जात्या जी ने बताया-
मौजमाबाद में धर्म-ध्यान की प्रभावना
“जब आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज संघ सहित मौजमाबाद आये थे तब १९ अप्रैल को महावीर जयंती का महामहोत्सव संघ सान्निध्य में मनाया गया था। सुबह रथोत्सव हुआ फिर कलशाभिषेक हुए थे और दोपहर में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का केशलोंच हुआ। इस अवसर पर क्षुल्लक सिद्धसागर जी एवं मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का मार्मिक प्रवचन हुआ। इसके बाद परमपूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का प्रवचन हुआ था एवं रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ था। उस समय संघ का प्रवास बड़े मन्दिरजी में था। मुनि विद्यासागर जी महाराज दोपहर में छोटे बहरे (तलघर) में ही सामायिक करते थे। दो-तीन बार तो रात्रि में भी वहीं ध्यान लगाकर बैठे रहे।” इस सम्बन्ध में अप्रैल १९७० ‘जैन गजट' में समाचार प्रकाशित हुए। इस तरह आपके पदकमल गाँव-गाँव नगर-नगर नये-नये इतिहास को गढ़ते हुए जैन संस्कृति के संस्कारों को प्रसारित करते रहे और आपके अन्तेवासिन् लाड़ले शिष्य मुनि श्री विद्यासागर जी मानो अपने तीन उद्देश्य सेवा-स्वाध्यायसाधना' को हर स्थिति-परिस्थिति में साधने में लगे हों। ऐसे ऐतिहासिक पदचिह्नों को त्रिकाल स्मरणपूर्वक वंदन करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य