पत्र क्रमांक-१२८
१०-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
सिद्धान्तसागर में अवगाहित परमपूज्य आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पुनीत चरणों में कोटिशः नमस्कार करता हूँ... हे गुरुवर! आप जब साली ग्राम में प्रवास कर रहे थे तब का एक संस्मरण साली के आपके अनन्य भक्त श्रीमान् पदमचंद बड़जात्या जी ने १२-०२-२०१८ को सुनाया वह मैं आपको बता रहा हूँ-
मुनि विद्यासागर जी ने अंग्रेजी में आरती कराई
हम बच्चे लोग मुनि विद्यासागर जी महाराज के पास बैठते थे तो हम लोगों को वे ज्ञान की बातें सिखाया करते थे। एक दिन उन्होंने भगवान की आरती अंग्रेजी में बनाई और हम लोगों को सिखाई। फिर दूसरे दिन हम लोग रटकर गए। तो उन्होंने वह आरती कराई थी। जब तक वे साली में रहे तब तक रोज हम लोग उनके साथ वह आरती पढ़ते थे।"
इस तरह मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज बच्चों के साथ मनोविनोद में भी ज्ञान की बातें करते थे। जो बड़े-बड़े अंग्रेजी लिखने-पढ़ने-बोलने वाले भी नहीं कर पाते थे, अंग्रेजी में पोयम बनाने का वह कार्य आपके प्रतिभावान् शिष्य कर देते थे। इसी प्रकार हिन्दी भाषा को अच्छी बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते थे। आपके संकेतानुसार उन्होंने बच्चों को माध्यम बनाया और जैसा कि ज्ञान बाँटने से ज्ञान बढ़ता है इस बात को आपसे सीखकर बच्चों के साथ समय साझा करना शुरु कर दिया। इस सम्बन्ध में हरसौली के राजकुमार जी दोसी ने १२-०२-२०१८ को बताया-
मुनि विद्यासागर जी ने लगाई बच्चों की कक्षा
‘‘हमारे गाँव में जब मुनि विद्यासागर जी आये थे तब उनके साथ में उनके गुरु ज्ञानसागर जी महाराज और गुरु भाई मुनि श्री विवेकसागर जी महाराज (मरवा वाले) एवं २-३ ऐलक, क्षुल्लक भी थे। तब हम छोटे थे लगभग १०-१२ वर्ष के। उस समय हमारे गाँव में एक बैण्ड पार्टी थी जो बाहर भी जाती थी। काफी प्रसिद्ध पार्टी थी। उस पार्टी को आगवानी में बुलाया गया था। संघ का ५-६ दिन का प्रवास रहा। सुबह गुरु महाराज ज्ञानसागर जी का प्रवचन होता था। दोपहर में मुनि श्री विवेकसागर जी, मुनि श्री विद्यासागर जी का प्रवचन होता था। मुनि श्री विद्यासागर जी हम बच्चों को देखकर मुस्कुरा देते थे। शाम को गुरु महाराज ने हम बच्चों से कहा-“जाओ विद्यासागर जी के पास बैठो और मुनि श्री विद्यासागर जी को कहा- इनको ‘ज्ञान प्रबोध' पुस्तक पढ़ाओ।' तब हम लोग मन्दिर जी से पुस्तक लेकर आये। हम १०-१२ बच्चों को प्रतिदिन शाम को उस पुस्तक में से २४ तीर्थंकर भगवानों के नाम-चिह्न, बारह भावना, मेरी भावना पढ़ाते और अर्थ समझाते थे। जब गाँव से उनका विहार हुआ तो जाते समय कहा- ‘रोज पढ़ना, याद हो जायेगा।' मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के वे शब्द आज तक कानों में गूंजते हैं। तब हम बच्चे रोज पढ़ते रहे। तब से आज तक वे सब पाठ याद हैं।
पूरा संघ मन्दिरजी की कोठड़ी में रहता था। शाम को हम बच्चे विद्यासागर जी महाराज के साथ चारा (प्याल) को कोठड़ी में बिछाते थे। बच्चे बाहर से प्याल लाते और विद्यासागर जी महाराज अपने वयोवृद्ध गुरुवर के निमित्त प्याल में पिच्छी लगाकर बिछाते जाते थे।'' इस तरह मुनि विद्यासागर जी महाराज अपने सेवाकर्तव्य का पालन करते और आपके संकेतानुसार बच्चों को संस्कार देते। जिससे उनकी हिन्दी अच्छी होती चली गई। यह तो आपने भी महसूस किया ही होगा। ऐसे पुरुषार्थशील गुरु-शिष्य को नमन करता हुआ...
आपका शिष्यानुशिष्य