पत्र क्रमांक - ११५
२५-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
दृढ़संकल्पी अटल तपस्वी गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणयुगलों में कोटिशः नमोऽस्तु करता हूँ... हे गुरुवर! मुनि श्री विद्यासागर जी की विलक्षणता से युवा, प्रौढ़, वृद्ध विद्वान् आदि सभी प्रभावित होते थे। उनकी यह विलक्षणता जन्मजात स्वाभाविक थी, जिसे हम पूर्व में प्रेषित "अन्तर्यात्री : महापुरुष" नामक पत्रों के रत्नमंजूषा में रखे पत्रों में बता चुका हूँ। इस सम्बन्ध में और भी बताना चाहता हूँ जो केसरगंज के श्रीमान् कन्हैयालाल जी जैन ने बताया-
अटल संकल्प
‘‘सन् १९६९ में आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ ने केसरगंज में चातुर्मास किया। एक दिन हम लोग रात्रि में १०:00 बजे आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज की वैयावृत्य कर रहे थे, तब उन्होंने अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी मुनि श्री विद्यासागर जी को सोने के लिए इशारा किया । तब मुनि श्री विद्यासागर जी ने वापिस इशारा किया कि आप विश्राम करें और स्वयं बैठे रहे चिन्तन मनन करते रहे। हम लोग सुबह मुनि श्री विद्यासागर जी के साथ जंगल जाते थे। एक दिन हम लोग जैसे ही पहुँचे, तब आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज मुनि श्री विद्यासागर जी को समझा रहे थे कि ‘‘रात्रि में ज्यादा देर तक जागना ठीक नहीं इससे याद्दाश्त कमजोर हो जाती है।'' तो मुनि विद्यासागर जी बोले-‘‘जितना आप पढ़ाते हैं उतना जब तक स्मरण चिंतन मनन नहीं हो जाता तब तक मैं नहीं सोऊँगा।'' गुरु-शिष्य की ये बातें सुनकर हम सभी श्रेष्ठ शिष्य को देखकर चकित रह गए।'' इसी प्रकार दिल्ली निवासी आपकी भक्त श्राविका कनक जी जैन ने एक संस्मरण लिखकर दिया जो मैं आपको बता रहा हूँ-
मुनि श्री विद्यासागर जी हुए समयसारमय
‘‘सन् १९६९ केसरगंज अजमेर के श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन जैसवाल मन्दिर में आचार्य ज्ञानसागर जी गुरु महाराज ससंघ चातुर्मास कर रहे थे। तब हम लोग सपरिवार दिल्ली से दर्शन करने आए थे। तब गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज समयसार ग्रन्थराज पर प्रवचन देते थे। प्रवचन सुनते हुए मुनि श्री विद्यासागर जी आत्मा की गहराईयों में डूब जाते थे तब उनकी मुखमुद्रा देखकर ऐसा लगता था मानो अध्यात्म अमृत पीकर पूर्ण संतुष्ट मूर्तिवत् ज्ञानध्यान में लीन समयसारमय हो गए हों।''
इस प्रकार आपकी विलक्षणता की तरह मुनिश्री की विलक्षणता किसी से छिपी नहीं रह सकती थी सहज स्वाभाविक जो थी। गुरु-शिष्य के अनन्त गुण विशेषताओं को नमोऽस्तु करते हुए...
आपका
शिष्यानुशिष्य