तत्व चर्चा करने से तत्व की अनुभूति नहीं होती है। तत्वों को जानकर आचरण में लाने से ही तत्वों की अनुभूति होती है। यह सिद्धान्त हमारे आचार्यों का है। बस इसी बात को आज वर्तमान में परम पूज्य आचार्यश्रीजी चर्या में हमें देखने को मिलता है। वे हमेशा तत्व चर्चा पर नहीं अर्चा पर अधिक विश्वास करते हैं। ऐसा ही एक प्रसंग आचार्यश्रीजी ने सुनाया :-
ईसरी में जिनेन्द्र वणजी की सल्लेखना चल रही थी। कुछ विद्वान लोग आए और बोले- 'हमें कुछ तत्व चर्चा करनी है।' आचार्यश्री ने कहा- 'कैसी चर्चा करनी है?" विद्वान बोले- 'उपयोग से संबंधित चर्चा करनी है।' आचार्यश्री- 'कौनसे उपयोग की चर्चा करनी है?' विद्वान बोले- 'हमें शुद्धोपयोग की चर्चा करनी है।' आचार्यश्री- 'अरे भाई! शुद्धोपयोग की चर्चा करने से उसकी अनुभूति तो होगी नहीं और उसकी चर्चा करने से आप लोगों को अशुभोपयोग और हो जाता है।" विद्वान बोले- 'नहीं, हमें चर्चा जरूर करना है।' आचार्यश्री बोले- 'आप चर्चा करेंगे पर आपको मानना तो है नहीं, फिर चर्चा करने से क्या फायदा है? अपना समय खराब करना है। यदि चर्चा करना है तो पहले अपना मन उसको ग्रहण करने का बनाओ तो कुछ फायदा है।' विद्वान बोले- ‘जो ग्रहण करने योग्य होगी हम करेंगे।'
आचार्यश्री बोले- 'श्रद्धानरहित चर्चा से कोई मतलब नहीं है। आप लोगों को अभी हम पर और भगवान की वाणी पर श्रद्धान नहीं है। पहले उसे अच्छा बनाओ, फिर बाद में चर्चा करेंगे।' इतना कहकर आचार्यश्री अपना प्रतिक्रमण करने बैठ गए। वो लोग चले गए। ऐसे ज्ञानी, तत्व की बात को अपने जीवन में चरितार्थ करने वाले गुरुदेव धन्य हैं।